google.com, pub-2721071185451024, DIRECT, f08c47fec0942fa0
खास खबर

‘जन्माष्टमी पर अपनी हिंदू दोस्त को गोश्त खिला देती थी, मिलती थी शांति’ : उर्दू लेखिका इस्मत चुगताई ने ख़ुद लिखा… 

IMG-20250425-WA1484(1)
IMG-20250425-WA0826
IMG-20250502-WA0000
Light Blue Modern Hospital Brochure_20250505_010416_0000
IMG_COM_202505222101103700

वंदना लहरिया की रिपोर्ट

जन्माष्टमी के मौके पर उर्दू की लेखिका इस्मत चुगतई की जीवनी के कुछ अंश को बीबीसी ने प्रकाशित किया। ऑटो बायोग्राफी में लेखिका ने खुलासा किया है कि किस तरह से वो अपनी हिंदू पड़ोसन के यहाँ से भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को चुरा लाई थीं और जन्माष्टमी के दिन धोखे से अपनी हिंदू दोस्त सुशी को मांस खिला देती थीं।

बीबीसी द्वारा उर्दू लेखिका इस्मत चुगताई की आत्मकथा ‘कागजी है पैरहन’ के अनुवाद के अनुसार, इस्मत चुगताई लिखती हैं कि क्योंकि उन्हें पता था कि फल, दालमोठ और बिस्कुट में कोई छूत जैसा नहीं था तो वो जन्माष्टमी के दिन अपनी हिंदू दोस्त को धोखे से मांस खिला देती थी। लेखिका का कहना है कि ऐसा करने से उसे काफी शांति मिलती थी।

लेखिका लिखती हैं कि उनके घर में टट्टी का अहाता बनाकर उसके पीछे बकरीद पर बकरे काटे जाते थे और उसके बाद उस माँस को कई दिनों तक बाँटा जाता था। उन दिनों में सुशी घर के अंदर बंद कर दी जाती थी।

बीबीसी द्वारा उर्दू लेखिका इस्मत चुगताई की आत्मकथा ‘कागजी है पैरहन’ के अनुवाद के अनुसार, इस्मत चुगताई लिखती हैं कि क्योंकि उन्हें पता था कि फल, दालमोठ और बिस्कुट में कोई छूत जैसा नहीं था तो वो जन्माष्टमी के दिन अपनी हिंदू दोस्त को धोखे से मांस खिला देती थी। लेखिका का कहना है कि ऐसा करने से उसे काफी शांति मिलती थी।

आप को यह भी पसंद आ सकता है  विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना के अंतर्गत सभी ट्रेड का प्रशिक्षण हुआ समापन

लेखिका लिखती हैं कि उनके घर में टट्टी का अहाता बनाकर उसके पीछे बकरीद पर बकरे काटे जाते थे और उसके बाद उस माँस को कई दिनों तक बाँटा जाता था। उन दिनों में सुशी घर के अंदर बंद कर दी जाती थी।

बीबीसी के मुताबिक, इस्मत चुगताई लिखती हैं कि जन्माष्टमी के मौके पर हिंदुओं में काफी धूमधाम से मनाया जा रहा था। पकवानों की खुशबू को सूँघकर अंदर जाने का मन करता। इतने में सुशी दिखी तो उसने उससे पूछा कि क्या है तो वो बोली कि भगवान आए हैं। लेखिका लिखती हैं कि वो चोरी से सुशी के बरामदे तक पहुँच गईं। इसी दौरान वहाँ पर सभी को टीका लगी रहीं एक औरत उसके माथे पर भी टीका चिपकाती चली गई।

इस्मत के मुताबिक, उन्होंने सुना था कि जहाँ टीका लगता है तो उतना गोश्त जहन्नुम को जाता है। यही सोचकर उसे उन्होंने मिटाना चाहा परन्तु अचानक वह रुक गई। इस बीच माथे पर टीका लगा होने के कारण बेधड़क पूजाघर तक चली गईं और वहाँ चाँदी के पालने में झूला झूल रहे भगवान श्रीकृष्ण को चुरा लिया। हालाँकि, इसी बीच सुशी का नानी ने उन्हें ऐसा करते हुए पकड़ लिया औऱ वहाँ से हटाकर बाहर कर दिया।

आप को यह भी पसंद आ सकता है  रेत पर उकेरी रामायणकालीन सजीव आकृतियां मानो कुछ बोल रही है 

इस बीच कई साल गुजरने के बाद जब इस्मत चुगतई अलीगढ़ से आगरा वापस गई तो वह सुशी की हल्दी की रस्म में गई। इस दौरान वो उसी कमरे में गईं, जहाँ श्रीकृष्ण का मंदिर था। लेखिका ने लिखा कि मैं मुस्लिम हूँ और बुतपरस्ती इस्लाम में गुनाह है।

गौरतलब है कि अस्मत चुगतई उर्दू लेखिका थीं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बदायूँ जिले में वर्ष 1915 में हुआ था और उनकी मृत्यु साल 1991 में हुई थी।

114 पाठकों ने अब तक पढा
samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

[embedyt] https://www.youtube.com/embed?listType=playlist&list=UU7V4PbrEu9I94AdP4JOd2ug&layout=gallery[/embedyt]
Tags

samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की
Back to top button
Close
Close