लखनऊ

बहन जी की M चाल, जिसने उडा दिए हैं अखिलेश यादव के होश… जानिए क्या है माया की ये चुनावी रणनीति ❓

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आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट

चुटनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। इसके साथ ही सभी पार्टियों ने चुनाव के लिए कमर कस ली है। वहीं, बहुजन समाज पार्टी (BSP) भी एक्टिव हो गई है। 

पार्टी ने इलेक्शन के लिए अब तक 14 प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया है। बीएसपी ने सबसे ज्यादा मुस्लिम चेहरों पर दांव लगाया है, जिससे अखिलेश यादव की टेंशन बढ़ सकती है।

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बीएसपी ने अब तक जिन 14 प्रत्याशियों को टिकट दिया है। उनमें 5 मुस्लिम, 4 ब्राह्मण, 1 जाट, 1 गुर्जर, 1 ओबीसी, 1 क्षत्रिय और एक दलित उम्मीदवार शामिल है। पार्टी ने पीलीभीत से अनीश अहमद खान, मुरादाबाद से इरफान सैफी, कन्नौज से अकील अहमद पट्टा और अमरोहा से डॉ. मुजाहिद हुसैन को टिकट दिया है, 

समाजवादी पार्टी को हो सकता है नुकसान

बीएसपी के उम्मीदवारों का ऐलान समाजवादी पार्टी के होश उड़ा सकता है। दरअसल, मायावती ने मुरादाबाद और अमरोहा जैसी मुस्लिम बहुल सीट से मुसलमान कैंडिडेट मैदान में उतारा है। ऐसे में माना जा रहा है कि बीएसपी कैंडिडेट इस सीट पर सपा के मुकाबले को मुश्किल बना सकता है। 

जातीय समीकरण साधने की कोशिश

इसके अलावा पार्टी ने कानपुर लोकसभा सीट से कुलदीप भदौरिया को टिकट देकर ठाकुर कार्ड खेला है। वहीं अकबरपुर लोकसभा सीट से बीएसपी ने ब्राह्मण उम्मीदवार पर दांव लगाया है और राजेश त्रिवेदी को मैदान में उतारा है। इसी तरह बीएसपी ने बागपत से गुर्जर समुदाय के प्रवीण बसेला और मेरठ से देवव्रत त्यागी को मैदान में उतारा है। 

4 ब्राह्मणों को टिकट

मुसलमानों के बाद मायावती ने सबसे ज्यादा ब्राह्मणों उम्मीदवरों को टिकट दिया है। पार्टी ने 4 ब्राह्मण मैदान में उतारे हैं। बीएसपी ने जोनल कोऑर्डिनेटर के जरिए इन उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है। कहा जा रहा है कि इन नामों का ऐलान मायावती की सहमति के बाद किया गया है। हालांकि मायावती की तरफ से प्रत्याशियों की कोई सूची जारी नहीं की गई है। 

2019 में 10 सीट जीती थीं बीएसपी

पिछले आम चुनाव में यूपी की 80 सीटों में से बसपा ने 10 सीटों पर ही जीत हासिल की थी। इनमें शाहरनपुर, बिजनौर, नगीना, अमरोहा, आंबेडकर नगर, श्रावस्ती, लालगंज, घोस और गाजीपर का नाम शामिल है। इसमें से गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी को 16 साल पुराने मामले में चार साल की सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद उनकी सांसदी चली गई है। 

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"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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