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लखनऊ

कहीं आप मिलावटी खून तो नहीं ले रहे…जी हां, “चल रहा है खून का काला धंधा”; खबर पढ़कर चौंक जाएंगे आप

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कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट 

यूपी में ब्लड बैंकों से मिलने वाला खून जान बचाने की जगह जिंदगी भी ले सकता है। यहां खून के काले कारोबार से करोड़ों का खेल हो रहा है। STF लखनऊ के खुलासे के बाद हेल्थ डिपार्टमेंट और FSDA यानी खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन विभाग के कामकाज पर सवाल उठ रहे हैं।

STF को लखनऊ में मिड लाइफ चैरिटेबल ट्रस्ट के ब्लड बैंक में मिले ब्लड बैग पर एक्सपायरी डेट से लेकर डोनर तक का नाम नहीं था। कई ब्लड बैग पर ब्लड ग्रुप तक नहीं लिखा था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह खून किसी मरीज के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता था।

स्लाइन से तैयार करते थे मिलावटी खून

STF और FSDA की शुरुआती जांच में पता चला है कि ब्लड बैंक में मिले ब्लड में मिलावट हुई है। प्राइवेट ब्लड बैंक में ब्लड डोनेट करने वाले कम आते हैं। इससे साफ है कि यह मिलावट और तस्करी का ब्लड है।

यह लोग स्लाइन यानी ग्लूकोज, कांगोरेड को एक ब्लड बैग में मिलाकर तीन बैग तैयार कर लेते थे। जो असली ब्लड की तरह दिखता है। यह मरीज के चढ़ने पर जानलेवा तो साबित नहीं होता, लेकिन फायदा भी नहीं होता।

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खून से एड्स और हीमोग्लोबिन घटने का खतरा

STF टीम की छापेमारी के दौरान ड्रग विभाग के सहायक आयुक्त औषधि मनोज कुमार ने बताया कि ब्लड बैंक का खून सेफ नहीं है। यह मरीजों के हीमोग्लोबिन को बढ़ाने की जगह घटा सकता है। इसकी जांच न होने से एड्स, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियां हो सकती हैं।

FSDA की ड्रग इंस्पेक्टर माधुरी सिंह ने बताया कि कई बैग पर खून के ग्रुप नहीं लिखे थे। इससे साफ है कि ब्लड बैंक वाले किसी को भी किसी ग्रुप का खून दे देते होंगे, जो मरीज के लिए जान लेवा साबित हुआ होगा। साथ ही ब्लड तस्कर खून की कोल्ड चेन का भी ख्याल नहीं रखे। जबकि खून की सुरक्षा के लिए तापमान जरूरी है।

137 ब्लड बैंक STF के निशाने पर

STF सूत्रों के मुताबिक गिरफ्तार नौशाद और असद जयपुर से लखनऊ ब्लड लाते थे। जिसके बाद मांग के हिसाब से यूपी के जिलों की ब्लड बैंक और हॉस्पिटल में इसकी सप्लाई करते थे। नौशाद और असद के मोबाइल से करीब 1150 नम्बर मिले हैं। इनसे अक्सर बात होती थी।

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137 ब्लड बैंक और अस्पताल से जुड़े लोगों पर STF की नजर है। इनके विषय में जानकारी जुटाने के लिए STF की टीम लग गई है।

एसटीएफ के मुताबिक यह लोग पुलिस से बचने के लिए ब्लड को बस और ट्रेन से ब्लड बैग लाते थे। इस दौरान कोल्ड चेन के नियम का भी पालन नहीं करते थे। यह खून कैसे और किसके माध्यम से आ रहा था, इसकी पड़ताल की जा रही है। एसटीएफ के डिप्टी एसपी प्रमेश कुमार शुक्ल ने बताया कि ब्लड बैंक के अंदर गत्ते में ब्लड बैग भरे मिले। इन पर मित्रा कंपनी का स्टिकर लगा था। इन पर न तो डोनर न ही कलेक्शन करने वाले का नाम था। साथ ही सम्बन्धित ब्लड बैंक या अस्पताल का नाम नहीं लिखा था। इन बैग पर एक्सपायरी डेट भी नहीं थी। जिन्हें रखने के लिए कोल्ड चेन का पालन भी नहीं किया गया।

एसटीएफ की जांच के बाद साफ है कि यूपी की चैरिटेबल ब्लड बैंक में खून की क्वालिटी पर भरोसा नहीं किया जा सकता। यूपी में सरकारी, गैर सरकारी और चैरिटेबल ब्लड बैंक की संख्या 629 है। जिसमें 81 चैरिटेबल ब्लड बैंक है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से यूपी में सरकारी ब्लड बैंक 109, प्राइवेट ब्लड बैंक 174, चैरिटेबल ब्लड बैंक 81, स्टैंड एलॉन ब्लड बैंक 12, सरकारी ब्लड सेपरेटर यूनिट 48, प्राइवेट ब्लड सेपरेटर यूनिट ब्लड डोनेशन बस और वैन 180, ब्लड डोनेशन बस और वैन 25 है। जहां लोग ब्लड डोनेट करते हैं। जिसके बाद जरूरत मंद को दिया जाता है।

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एसटीएफ के मुताबिक, पूछताछ में सामने आया है कि नौशाद ने तुलसी ब्लड बैंक जयपुर, पिन्क सिटी ब्लड बैंक जयपुर, रेड ड्रॉप ब्लड सेन्टर जयपुर, गुरूकुल ब्लड सेन्टर जयपुर, ममता ब्लड बैंक चैमू, दुषात ब्लड बैंक, चैमू, मानवता ब्लड बैंक सीकर, शेखावटी ब्लड बैंक चुरू के टेक्नीशियनों के माध्यम से ब्लड लेता था।

एक ब्लड बैग के बदले 700 से 800 रुपए तक देता था। जांच में सामने आया है कि यह लोग लखनऊ के चैरिटेबल ब्लड बैंक बर्लिंगटन चौराहा लखनऊ में भी ब्लड बैग सप्लाई देता था।

उसने यूनिवर्सल ब्लड बैंक संडीला हरदोई, आभा ब्लड बैंक जनपद फतेहपुर, मां अंजली ब्लड बैंक कानपुर, हसन ब्लड सेंटर बहराइच और सिटी चैरिटेबल ब्लड बैंक उन्नाव में भी सप्लाई की थी।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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