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अपराध

करोड़ों की हेरा-फेरी बस एक क्लिक में…खबर आपको सावधान करती है क्योंकि आगला शिकार कहीं आप तो नहीं….!!

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

नोएडा: शहर में साइबर क्राइम की एक चौकाने वाली घटना सामने आई है। साइबर अपराधियों ने पहले एक लिंक भेजकर उद्यमी का लैपटॉप को हैक किया। नेट बैंकिंग उपयोग के समय बैंक अकाउंट और अन्य गोपनीय जानकारियां हासिल कीं। इसके बाद जालसाजों ने उद्यमी के बैंक अकाउंट से लिंक मोबाइल नंबर को बंद करवाकर उसी नंबर का दूसरा ई-सिम चालू करवाया। फिर ओटीपी हासिल कर नेट बैंकिंग की मदद से बैंक अकाउंट से 1 करोड़ रुपये ट्रांसफर कर लिए। रकम ट्रैक न की जा सके इसलिए ठगों ने क्रिप्टो करेंसी में बदल कर बड़ा हिस्सा विदेश भेज दिया। ये हाईप्रोफाइल साइबर क्राइम कानपुर और दिल्ली के दो शातिर युवकों ने किया। इनकी पहचान कर साइबर थाना पुलिस ने गिरफ्तार कर पूरे घटना का खुलासा कर दिया है।

साइबर थाना प्रभारी इंस्पेक्टर रीता यादव ने बताया कि आरोपियों की पहचान कानपुर के काकादेव निवासी रितेश चतुर्वेदी उर्फ अमित सिंह और बसंत कुंज (दिल्ली) निवासी रिषभ जैन उर्फ प्रिंस ठाकुर के रूप में हुई है। बीते दिनों फेज दो थानाक्षेत्र के औद्योगिक क्षेत्र स्थित रॉयलएक्स एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के ओनर केपी प्रकाश ने साइबर थाने में ठगी की शिकायत की थी। ठगों ने कंपनी के बैंक अकाउंट में रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर बंद कराकर कंपनी के बैंक खाते से एक करोड़ रुपये की राशि निकाल ली और उसे चार अलग-अलग खातों में ट्रांसफर कर लिया।

बनारस में बनाया था ठिकाना

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दावा था कि पीड़ित ने अपने कंपनी के खाते की गोपनीय जानकारी किसी को नहीं दी थी। फिर साइबर थाने की टीम ने जो जांच शुरू की उसमें कड़ी से कड़ी जुड़ती हुई चली गई। दोनों शातिर जालसाजों ने अपना ठिकाना बनारस में बनाया हुआ था। पुलिस ने इनके कब्जे से एक एसयूवी, 1 लैपटॉप, 11 मोबाइल, 23 डेबिट कार्ड, 25 सिम कार्ड, दो डीएल बरामद किए हैं।

वेब सीरीज के करेक्टर पर रखा था नाम

साइबर क्राइम की इस घटना में डॉर्क वेब के साथ शातिर साइबर क्रिमिनल्स की भी मदद ली गई। पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक ये दोनों आरोपी वॉट्सऐप, टेलीग्राम पर 15 से अधिक साइबर क्रिमिनल्स के ग्रुप में जुड़े हुए थे। दोनों मनी हाइस्ट वेब सीरीज से प्रभावित हैं और अपना नाम सीरीज के पात्र के नाम पर प्रोफेसर और रियो रखा हुआ था। इसी नाम से साइबर क्राइम की दुनिया में अपनी पहचान बना रहे थे। आरोपियों ने पहले कंपनी के उस लैपटॉप को निशाना बनाया जिस पर उद्यमी के बैंक से जुड़े काम होते थे। इसे एक लिंक भेजकर हैक किया। फिर की-लॉगर इंस्टॉल किया। रिमोट पर लैपटॉप लेकर 42 घंटे तक निगरानी की। फिर जब नेट बैंकिंग का उपयोग लैपटॉप से किया गया तो आरोपियों ने अकाउंट आईडी, पासवर्ड और अन्य जानकारी हासिल की।

डॉर्क वेब पर संपर्क के बाद स्वाइप किया सिम

पकड़े गए आरोपियों को बैंक अकाउंट डिटेल हासिल करने के बाद उद्यमी के मोबाइल नंबर पर आने वाले ओटीपी की जरूरत थी। मोबाइल तक पहुंच नहीं बना पा रहे थे। इसलिए उस सिम को स्वाइप करवाकर दूसरा सिम निकालने की साजिश रची। इसके लिए डॉर्क वेब पर एक साइबर क्रिमिनल से इनकी बात हुई। फिर डील के मुताबिक वह नोएडा आया। ये दोनों एक होटल में गए, उस क्रिमिनल ने ही सिम स्वाइप करवाकर दूसरा ई-सिम जारी करवाया। इस अपराधी के पीछे विदेश में बैठा एक अपराधी भी था। ये सिम स्वाइप कैसे हुआ साइबर थाना पुलिस भी नहीं समझ पा रही है। एजेंसियां भी अलर्ट हो गई हैं। विदेश में जिस देश का नाम सामने आ रहा है, उससे भारत के रिश्ते सहज नहीं हैं।

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किराए पर दो अकाउंट लेकर ट्रांसफर की थी रकम

दोनों आरोपियों ने साइबर अपराधियों के ग्रुप से दो बैंक अकाउंट किराये पर लिए थे। इनका मोबाइल नंबर, डेबिट कार्ड, नेट बैंकिंग आईडी भी मिली थी। ये अकाउंट बनारस के थे। सिम स्वाइप कर ई-सिम जारी होते ही शनिवार की शाम को ये अकाउंट नेट बैकिंग अकाउंट में बेनिफिशरी के तौर पर जोड़े गए। फिर अगले दिन रविवार सुबह एक अकाउंट में 82 तो दूसरे में 18 लाख रुपये ट्रांसफर किए। इसके बाद क्रिप्टो करेंसी एक्सचेंज पर फर्जी वॉलेट बनाकर वहां रकम ट्रांसफर की गई। फिर विदेश रकम भी भेजी गई, यह करम सिम स्वाइप करने वाले को बाद में दी गई। इस रैकेट में कुछ और जालसाजों की भूमिका सामने आ रही है पुलिस टीमें जांच में लगी हुई हैं।

सावधानी जो पहले बरतनी चाहिए, ताकि ऐसी नौबत न आए

आप अपने ईमेल पर ज्यादा ध्यान दें. किसी भी अनजान ईमेल आईडी से आने वाले मेल को ओपन न करें।

ऐसे मेल में दिए गए अटैचमेंट्स को भी डाउनलोड न करें।

अगर जरूरी न हो तो अपनी ईमेल आईडी हर जगह या पब्लिक वेबसाइट्स पर शेयर न करें।

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कंप्यूटर या मोबाइल में एक अच्छा एंटी वायरस सॉफ्टवेयर जरूर रखें और समय-समय पर स्कैन करते रहें. ताकि आपको पता चल सके कि सिस्टम में कोई वायरस तो नहीं है।

सावर्जनिक या अपने डिवाइस से अलग दूसरे डिवाइस पर सोशल मीडिया अकाउंट लॉगिन करने से बचें. अगर लॉगिन कर भी लिया है तो लॉगआउट याद करके करें।

कई लोग अगर सिस्टम का उपयोग करते हैं तो उसमें अपना पासवर्ड डालने से पूर्व यह जांच लें कि बैक ग्राउंड में कौन-कौन से प्रोसेस चल रहे हैं।

की-लॉगर सॉफ्टवेयर अगर सिस्टम में पड़ा हुआ है तो उसका भी रनिंग स्टेटस दिखता है, यह समय जरूर बहुत कम होता है।

अगर आपका सिम अचानक बंद हुआ है तो उसकी सुविधा प्रदान करने वाले कंपनी के ग्राहक सेवा प्रतिनिधि से संपर्क स्थापित कर कारण जानें।

साइबर ठगी या अपराध होने पर जितनी जल्दी हो सके नजदीकी पुलिस स्टेशन में पहुंच कर शिकायत दें। केंद्र की हेल्पलाइन 1930 पर कॉल करें।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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