भारत के पारंपरिक पुरुष प्रधान समाज में अब कुछ पति स्वयं अपनी पत्नियों की शादी उनके प्रेमियों से करा रहे हैं। यह घटनाएं मानसिकता में बदलाव को दर्शाती हैं या यह सामाजिक विचलन है? मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्री और विधि विशेषज्ञों की राय के साथ पढ़िए यह विश्लेषणात्मक रिपोर्ट।
चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
कानपुर। भारत जैसे पारंपरिक और पुरुष प्रधान समाज में जब पति स्वयं अपनी पत्नी की शादी उसके प्रेमी से करा रहा हो, तो यह केवल एक व्यक्तिगत घटना नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की दस्तक भी हो सकती है। बीते कुछ वर्षों में ऐसे मामले सामने आए हैं, जिन्होंने रिश्तों की परिभाषा, समाज की सोच और व्यक्ति की स्वतंत्रता को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है।
केस स्टडीज़ जो चौंकाते हैं…
केस-1: कानपुर देहात के रसूलाबाद निवासी योगेश की शादी 15 साल पहले सोनी से हुई थी। लेकिन जब सोनी को विकास से प्रेम हो गया, तो योगेश ने सारे प्रयासों के बाद अंततः दोनों की शादी करा दी।
केस-2: गोंडा के हरिशचंद्र की पत्नी करिश्मा को शिवराज से प्यार हुआ। हरिशचंद्र ने दोनों को साथ देखा, और पंचायत के बाद कोई हल न निकलने पर करिश्मा की शादी शिवराज से करवा दी।
केस-3: फर्रुखाबाद में वैष्णवी और राहुल की शादी दो साल पहले हुई थी। मतभेद के बाद कोर्ट में अलग होने का निर्णय हुआ और वैष्णवी ने वहीं वकील के चैंबर में वीरेंद्र से शादी कर ली, जिसमें राहुल खुद गवाह बना।
इन घटनाओं में एक समानता है—एक परंपरा से हटकर निर्णय, जो कभी सहमति से, तो कभी मजबूरी या प्रतिशोध से लिया गया।
क्या यह मानसिकता में बदलाव है?
मनोवैज्ञानिक डॉ. गणेश शंकर का मानना है कि मोबाइल क्रांति ने आम लोगों को भावनाएं साझा करने और संबंध बनाने की अभूतपूर्व स्वतंत्रता दी है। उनका कहना है:
“शादीशुदा जीवन में संवाद की कमी अक्सर ऐसे रिश्तों की ओर ले जाती है। मोबाइल और इंटरनेट ने भावनात्मक जुड़ाव को बढ़ावा दिया है।”
वे बताते हैं कि इंसानी दिमाग मूलतः स्वतंत्रता चाहता है, लेकिन समाज ने उस पर बंधन लगाए हैं। आधुनिक तकनीक ने मानसिकताओं को वैश्विक बना दिया है। नतीजतन, संबंधों की परिभाषाएं भी बदल रही हैं।
बदलाव या विचलन?
क्राइस्ट चर्च कॉलेज के सहायक प्राध्यापक रमांशंकर सिंह इन घटनाओं को बदलाव नहीं, बल्कि “विचलन” मानते हैं। उनके अनुसार:
“अधिकांश पतियों द्वारा यह निर्णय प्रतिशोध से लिया जाता है। वीडियो बनाकर अपमानित करना, खुद को ‘रास्ते से हटने वाला’ दिखाना—यह भावनात्मक उथल-पुथल का संकेत है।”
वे चेताते हैं कि यह प्रवृत्ति कभी-कभी आत्मघाती बन सकती है।
सांस्कृतिक और सामाजिक असंतुलन का परिणाम
विद्या मंदिर महिला महाविद्यालय, कानपुर की समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. पूर्णिमा शुक्ला कहती हैं:
“यह घटनाएं सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक असंतुलन का नतीजा हैं। पहले महिलाएं अपनी इच्छाएं दबा देती थीं, अब वे विद्रोह कर रही हैं।”
वे मानती हैं कि आत्मनिर्भरता ने महिलाओं को विकल्प दिए हैं। यह बदलाव स्थायी हैं और आने वाले दशक में समाज में और अधिक स्पष्ट दिखेंगे।
क्रिया की प्रतिक्रिया है यह स्थिति
समाजशास्त्री रेनू कपूर इसे “क्रिया की प्रतिक्रिया” बताती हैं। उनके अनुसार:
“जब महिलाएं घर की चारदीवारी से बाहर आती हैं और समान अधिकार चाहती हैं, तब पारंपरिक व्यवस्था के स्तंभ डगमगाते हैं। लेकिन, इसका एक पक्ष यह भी है कि ऐसी घटनाओं को हथियार बनाकर महिलाओं को बदनाम भी किया जा रहा है।”
वे चेतावनी देती हैं कि पारिवारिक संस्थाएं टूटेंगी तो समाज कमजोर होगा। साथ ही वे यह भी कहती हैं कि “हम आत्मिक शांति के लिए अध्यात्म की ओर लौटें।”
क्या यह कानूनी है?
वकील गौरव दीक्षित के अनुसार:
“हिंदू मैरिज एक्ट के तहत बिना तलाक के दूसरी शादी गैर-कानूनी है। हालांकि, विवाह के बाहर संबंध से जन्मे बच्चे को जैविक माता-पिता का दर्जा मिलता है।”
इसका मतलब यह है कि भले ही समाज बदल रहा हो, कानून अभी भी परंपरा के अनुरूप ही खड़ा है।
एक नई सोच की दस्तक या समाज का क्षरण?
इन घटनाओं के पीछे प्रेम, प्रतिशोध, स्वतंत्रता, तकनीकी क्रांति और सामाजिक बदलाव जैसे अनेक कारक काम कर रहे हैं। प्रश्न यह नहीं कि ये घटनाएं सही हैं या गलत, बल्कि यह है कि क्या हम अपने समाज में आने वाले इन परिवर्तनों के लिए तैयार हैं?
संवाद की कमी, संबंधों की जटिलता और स्वतंत्रता की नई परिभाषा—यही है आज की वैवाहिक चुनौतियों का त्रिकोण।