चुन्नीलाल प्रधान की खास रिपोर्ट
मेवात, जो हरियाणा के नूंह, राजस्थान के अलवर और भरतपुर, तथा उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में फैला हुआ है, एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार चर्चा का कारण दैनिक भास्कर में प्रकाशित एक विशेष रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट को दो महिला पत्रकारों, प्रेरणा साहनी और पूजा शर्मा ने तैयार किया है, जिन्होंने जमीनी हकीकत जानने के लिए मेवात के भीतर जाकर वहां की परिस्थितियों को उजागर किया।
लड़कियों की जिंदगी में डर का साया
रिपोर्ट मुख्य रूप से अलवर जिले के मेवात इलाके की लड़कियों की जिंदगी के हालात बयां करती है। यहाँ लड़कियों की सुरक्षा के लिए उनके परिवार किस हद तक जाते हैं, यह जानकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं।
लड़कियों को घर की चारदीवारी से बाहर कदम रखने के लिए मुँह पर नकाब डालना अनिवार्य कर दिया गया है। कई जगहों पर बच्चियों को लड़कों जैसे कपड़े पहनाए जाते हैं ताकि कोई उन्हें पहचान न सके। इस इलाके में डर और असुरक्षा का माहौल इस कदर है कि लड़कियों की पहचान को छिपाने के लिए घरों में कपड़े तक अंदर सुखाए जाते हैं, ताकि यह न पता चले कि उस घर में लड़कियाँ रहती हैं।
बुजुर्ग महिला का अनुभव
पत्रकारों की मुलाकात एक बुजुर्ग महिला से हुई जिन्होंने बताया कि उनके घर में चार पोतियाँ हैं, लेकिन वे सभी लड़कों जैसे कपड़े पहनती हैं। यह सब इसलिए ताकि बाहर के लोग उन्हें लड़का समझें और किसी भी तरह की अनहोनी से बचा जा सके।
समाज में डर और पर्दे का राज
इलाके की यह सच्चाई सामने आई है कि दिन के उजाले में भी लड़कियों के लिए स्वतंत्रता का कोई मतलब नहीं है। लड़कियों को डर के साये में जीने के लिए मजबूर कर दिया गया है। उनकी शिक्षा, स्वतंत्रता और भविष्य इस माहौल के कारण प्रभावित हो रहे हैं।
सवाल खड़े करती रिपोर्ट
यह रिपोर्ट मेवात के उस पहलू को सामने लाती है, जिसे अधिकांश लोग अनदेखा कर देते हैं। रिपोर्ट यह दिखाती है कि किस तरह अपराध, सामाजिक बंधन और डर ने लोगों की जिंदगी को पूरी तरह बदल कर रख दिया है। लड़कियों के प्रति यह असुरक्षा और समाज में व्याप्त भय मेवात जैसे क्षेत्रों में लड़कियों के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है।
यह रिपोर्ट समाज और प्रशासन दोनों के लिए एक चेतावनी है। ऐसे हालातों को बदलने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि लड़कियों को एक सुरक्षित और स्वतंत्र जीवन मिल सके।
मेवात में लड़कियों की सुरक्षा: डर और असुरक्षा का माहौल
मेवात के इलाकों में लड़कियाँ बाहर तो निकलती हैं, लेकिन उनकी आजादी कई परतों में बंधी होती है। पहला, वे कभी अकेले नहीं निकलतीं, हमेशा समूह में चलती हैं। दूसरा, वे अपने मुँह को पूरी तरह से ढककर रखती हैं, ताकि कोई उनकी पहचान न कर सके। यदि कहीं जाने के लिए उन्हें टैम्पो का इंतजार करना पड़े, तो वे केवल भरे हुए टैम्पो में ही बैठती हैं। खाली टैम्पो में बैठने का मतलब है डर कि कोई अकेला पाकर उनके साथ कुछ गलत कर सकता है।
घर के भीतर भी लड़कियों की सुरक्षा को लेकर हालात सामान्य नहीं हैं। पिता, भाई और अन्य पुरुष घर के बाहर पहरा देते हैं, यह सोचकर कि यदि दरवाजे से उनकी नजर हट गई, तो कोई जबरदस्ती घर में घुसकर बेटियों को नुकसान पहुँचा सकता है। बच्चियों की सुरक्षा के इस भय के कारण उनकी शादी बेहद कम उम्र, यानी 14 साल से पहले ही कर दी जाती है।
रेप और अपराध: भयावह आँकड़े
यह डर निराधार नहीं है। डॉ. रवि माथुर, जो मेवात में वरिष्ठ मेडिकल ऑफिसर रह चुके हैं, बताते हैं कि उनके पास हर साल रेप के 250 से अधिक मामले आते थे। इनमें से कई मामलों में हैवानियत इतनी चरम पर होती थी कि अपराधी जानवरों को भी नहीं छोड़ते थे।
डॉ. पूनम चौहान, जो क्षेत्र में महिला अपराधों की विशेष जाँच इकाई (SIUCAW) की इंचार्ज हैं, कहती हैं कि उन्होंने कुछ ही महीनों में 70 से ज्यादा पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा) के मामले देखे हैं। उनका मानना है कि अपराध तब तक कम नहीं होंगे, जब तक लड़कों को सिखाया और संवेदनशील नहीं बनाया जाएगा।
जब रिपोर्टिंग कर रहीं महिला पत्रकार रेप के मामलों में कुख्यात क्षेत्रों, जैसे रामदढ़ और नौगाँव, की ओर बढ़ीं, तो उन्हें सलाह दी गई कि वे रात के अंधेरे में उन इलाकों में न जाएँ। यह सलाह इस बात का प्रमाण है कि इन क्षेत्रों में खतरा कितना गंभीर है।
डेमोग्राफी और अपराध का संबंध
मेवात की परिस्थितियों को समझने के लिए इसके डेमोग्राफिक बदलाव और उनसे जुड़े अपराधों पर नजर डालनी होगी। 2020 में मेवात की बढ़ती मुस्लिम आबादी और घटती हिंदू आबादी को लेकर चर्चा हुई थी। रिपोर्ट्स ने खुलासा किया था कि 103 गाँव हिंदूविहीन हो चुके हैं, जबकि 84 गाँवों में केवल 4-5 हिंदू परिवार ही शेष हैं।
जस्टिस पवन कुमार की जाँच समिति ने बताया था कि मेवात में धर्मांतरण, लव जिहाद, मारपीट, पलायन और महिलाओं के अपहरण की घटनाएँ आम हैं। जबरन धर्म परिवर्तन और दुष्कर्म की घटनाओं की तुलना पाकिस्तान से की गई थी, और इसी कारण मेवात को “मिनी पाकिस्तान” तक कहा गया।
जनसंख्या के आँकड़े
2011 की जनगणना के अनुसार, मेवात में मुस्लिम आबादी 79.20% है, जबकि हिंदू मात्र 20.37%। 2025 के आंकड़ों से भी यही ट्रेंड जारी है। यहाँ डेमोग्राफी में आया यह बड़ा बदलाव अपराध और असुरक्षा के बढ़ने का एक कारण हो सकता है।
ताजा घटनाएँ
2024 की घटनाओं में 100 से अधिक गोवंशों को तस्करों के चंगुल से छुड़ाया गया, और सरकारी ट्यूबवेल से पानी भरने पर मुस्लिम महिलाओं द्वारा दलितों को पीटने की खबर सामने आई। हिंदुओं की जलाभिषेक यात्रा पर हमले, पुलिस पर भीड़ के हमले, और दलित उत्पीड़न की घटनाएँ इस क्षेत्र में आम होती जा रही हैं।
समाधान की तलाश
यह स्पष्ट है कि मेवात जैसे इलाकों में अपराधों और असुरक्षा के मामलों में कमी लाने के लिए केवल कड़े कानून पर्याप्त नहीं होंगे। समाज में गहरी जड़ें जमाए इस डर और असमानता को खत्म करने के लिए शिक्षा, सामाजिक जागरूकता, और कानून का सख्ती से पालन आवश्यक है। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब सोच में ही बदलाव न हो, तो मेवात जैसे क्षेत्रों में हालात कैसे सुधरेंगे?
(यह रपट दैनिक भास्कर की पत्रकार के रिपोर्ट के आधार पर समाचार दर्पण समाचार विभाग द्वारा संपादित भाषा में लिखी गई है।)