संपादकीय

सप्ताह की दो सुर्खियां उबल रही है….!

अनिल अनूप 

इस सप्ताह दो ख़बरों की चर्चा रही। राजीव गान्धी के हत्यारों की जेल से मुक्ति और आफताब अमीन द्वारा अपनी प्रेमिका श्रद्धा की हत्या। सबसे पहले श्रद्धा की हत्या की चर्चा की जाए। आफताब अमीन और श्रद्धा दोनों मुंबई के रहने वाले थे। गूगल की कृपा से दोनों में दोस्ती हो गई। दोस्ती जरूरत से ज्यादा बढ़ गई। दोनों बालिग़ थे और एक साथ रहने लगे। हर एक रिश्ते का कोई न कोई नाम होता है। जब दो बालिग स्त्री-पुरुष एक साथ रहते हैं तो उससे पूर्व विवाह की रस्म निभानी होती है। उस रस्म के बाद दोनों में पति-पत्नी का रिश्ता बन जाता है। इस रिश्ते में क़ानूनी तौर पर कुछ अधिकार व कत्र्तव्य निहित होते हैं। यूरोप में बहुत से लोगों की विवाह की इच्छा नहीं होती। लेकिन फिर भी वे एक साथ पति-पत्नी की तरह ही रहना चाहते हैं। वहां राज्य ने इस प्रकार के व्यवहार को भी क़ानूनी मान्यता दे रखी है। विवाह से पूर्व इस प्रकार रहने को यूरोप में लिव-इन-रिलेशनशिप कहते हैं। ज़ाहिर है जब यूरोप में यह चलन है तो भारत में भी होना चाहिए। लेकिन भारत में इस रिश्ते को सामाजिक मान्यता नहीं है। परन्तु कुछ समय पहले देश के उच्चतम न्यायालय ने यूरोप की तजऱ् पर लिव-इन-रिलेशनशिप को क़ानूनी मान्यता देकर यह बाधा भी दूर कर दी थी। श्रद्धा ने अपने पिता को पत्र लिख कर बता दिया था कि मैं 25 साल की बालिग़ हूं। मैं आफताब के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहूंगी। मान लेना चाहिए कि अब मैं आपकी पुत्री नहीं हूं। उसके बाद उसका अपने पिता के साथ संबंध टूट गया। आफताब श्रद्धा को लेकर दिल्ली आ गया और किराए के एक मकान में रहने लगे।

आफताब को इस लडक़ी के साथ प्रेम संबंध बनाने के अतिरिक्त छुरा चलाने में भी महारत हासिल थी। लडक़ा तेज दिमाग था। इसलिए उसने गूगल की सहायता से किसी लडक़ी की हत्या करने के बाद सबूत कैसे नष्ट किए जाते हैं, मृत शरीर के टुकड़े कैसे किए जाते हैं, इत्यादि महत्वपूर्ण काम भी जल्दी ही सीख लिए। और उसने ये सारे प्रयोग श्रद्धा पर किए। उसे मार कर उसके बत्तीस टुकड़े कर बड़े फ्रीजर में रख दिए और अनेक दिनों तक एक दो टुकड़े दिल्ली के आसपास के जंगलों में फेंकता रहा। वह इतने दिनों तक श्रद्धा के सोशल अकाउंट को भी आप्रेट करता रहा ताकि किसी को उसकी मौत का संशय न हो। उसके टैलीफोन का उपयोग करता रहा। इतना ही नहीं, श्रद्धा के खाते से अपने खाते में पैसा भी डलवाते रहा। उसके बाद मुम्बई भी चला गया। जब दो महीने तक श्रद्धा के पिता या चाचा का सम्पर्क उससे नहीं हो पाया तो उसके पिता ने पुलिस में बेटी के गुम होने की रपट लिखवाई। पिता को नहीं पता था कि उनकी बेटी को लेकर आफताब दिल्ली जा चुका था। अन्तत: आफताब पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया और सारी कहानी सामने आ गई। अब पुलिस श्रद्धा के शरीर के टुकड़े तलाश करने के लिए जंगलों को छान रही है। लिव-इन-रिलेशनशिप का यह दारुण अन्त हुआ। इस रिलेशनशिप में लडक़ा मुसलमान था और लडक़ी हिन्दू थी और इसका अन्त लडक़ी की हत्या से हुआ। लेकिन दुर्भाग्य से इस प्रकार का यह पहला मामला नहीं है। देश भर में लिव इन रिलेशनशिप के ऐसे अनेकों मामले सामने आ चुके हैं जिनमें लडक़ा मुसलमान है, लडक़ी हिन्दू है।

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लडक़ा लडक़ी पर मुसलमान बनने के लिए दबाव डालता है। लडक़ी के इन्कार करने पर लडक़ी का अन्त या तो उसकी हत्या से हुआ, या फिर शेखों के हरम में हुआ। इस प्रकार के रिश्ते को क्या लिव इन रिलेशनशिप कहा जा सकता है? समाज ने इस प्रकार के रिश्ते को लव-जिहाद का नाम दिया। केरल हाईकोर्ट ने भी इस प्रकार के एक मामले का निपटारा करते हुए सरकार को लव जिहाद के मामलों की छानबीन करने की सलाह दी थी। क्या एक संगठित गिरोह लव जिहाद का संचालन कर रहा है? क्या उस गिरोह में आफताब जैसे अनेकों युवक इसी धन्धे में लगे हुए हैं? आतंकवादी संगठन पूरी योजना से युवक-युवतियों को अपने जाल में फंसाते हैं और बाद में उनका दुरुपयोग अपने उद्देश्य के लिए करते हैं। कहीं इसी प्रकार अनेकों आफताब देश भर में अनेक श्रद्धाओं को अपने जाल में फंसाने के काम में तो नहीं लगे हुए। आफताब लव जिहाद के इस बड़े गिरोह की केवल एक कड़ी हो? सरकार को इस पूरे मामले की जांच हत्या की धाराओं के अन्तर्गत करनी ही चाहिए। साथ ही लव जिहाद के हिसाब से भी करनी चाहिए ताकि इनके पीछे के मगरमच्छ भी पकड़ में आ सकें। 

दूसरा मामला पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गान्धी के हत्यारों को जेल से छोडऩे का है। वैसे तो सोनिया गान्धी और उनका परिवार काफी लम्बे अरसे से अपराधियों को जेल से छुड़ाने के काम में लगा हुआ था। तमिलनाडु की सरकारें भी इस काम में लगी हुई थीं। सोनिया गान्धी की बेटी तो जेल में जाकर बाक़ायदा एक अपराधी नलिनी से मिलकर भी आई थीं। जब इस गुप्त भेंट का हल्ला हो गया तो प्रियंका गान्धी ने स्पष्टीकपण दिया था कि वह मानवता के नाते मिलने गई थीं। अब उतने साल बाद सोनिया गान्धी परिवार की मेहनत रग लाई तो निश्चय ही उनको संतोष हुआ होगा।

लेकिन उन दिनों जब नलिनी से मिलने प्रियंका गान्धी गई थीं और यह भेद खुल गया था, यक्ष प्रश्न उठा था कि आखिर सोनिया गान्धी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारों को छुड़ाने के लिए लालायित क्यों हैं? सुब्रह्मण्यम स्वामी ने तो यह सवाल उठाते हुए इसकी पूरी जांच करने की मांग की थी और वे इस जांच के लिए कोर्ट कचहरी के भी चक्र लगाते रहे। लेकिन सोनिया गान्धी जानती हैं कि उनके इस व्यवहार से देश में उनके खिलाफ प्रतिक्रिया हो सकती है। अब जब उनको अपराधियों को छुड़ाने के अभियान में सफलता मिल गई है तो देशवासियों के ग़ुस्से से होने वाले नुक़सान को रोकने के लिए रणनीति बनाना भी जरूरी था। इसलिए कांग्रेस ने कहा कि राजीव गान्धी के हत्यारों को छोडऩे संबंधी सोनिया परिवार की राय उनकी व्यक्तिगत राय है, कांग्रेस उससे सहमत नहीं है। कांग्रेस अपराधियों को छोडऩे का विरोध करती है। इतना ही नहीं, वह इसके विरोध में न्यायालय तक भी जाएगी। वैसे आजकल तमिलनाडु में कांग्रेस और डीएमके की गहरी दोस्ती है। डीएमके ने अपराधियों के छूट जाने का बाक़ायदा प्रस्ताव पारित कर स्वागत किया है। देखना होगा कांग्रेस अपराधियों को छोड़े जाने के खिलाफ न्यायालय कब जाती है? लेकिन समाप्त हो रहे 2022 का यह सबसे बड़ा चुटकुला होगा कि कांग्रेस सोनिया गांधी से किसी विषय पर सहमत नहीं है।

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