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संपादकीय

विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का बिखराव : लोकतंत्र के लिए चेतावनी

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अनिल अनूप

भारतीय राजनीति में गठबंधनों का बनना और टूटना एक सामान्य प्रक्रिया है। हाल के दिनों में विपक्ष का बहुचर्चित गठबंधन ‘इंडिया’ टूटने की कगार पर है। यह घटनाक्रम न केवल विपक्ष की राजनीतिक एकता पर सवाल उठाता है, बल्कि लोकतंत्र के लिए भी यह एक गंभीर संकेत है। गठबंधन के घटक दलों के अलग-अलग रास्ते अपनाने और क्षेत्रीय राजनीति की प्राथमिकताओं के बीच, ‘इंडिया’ अब एक निष्प्राण संरचना प्रतीत हो रही है।

गठबंधन का स्वरूप और उसकी कमजोरियां

‘इंडिया’ गठबंधन का जन्म तानाशाही और नफरत की राजनीति के खिलाफ हुआ था। इसका उद्देश्य भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करना था, लेकिन शुरू से ही इसमें एक ठोस ढांचा और सुसंगत रणनीति का अभाव दिखाई दिया। गठबंधन के पास न कोई सचिवालय था, न समन्वय समिति, और न ही एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम। यह कमजोरी लोकसभा चुनाव के दौरान भी स्पष्ट हुई, जब विभिन्न दलों ने क्षेत्रीय राजनीति में एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा।

दिल्ली विधानसभा चुनाव और ‘इंडिया’ के अंतर्विरोध

दिल्ली विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव) ने आम आदमी पार्टी (आप) का समर्थन किया। लेकिन यह समर्थन सिर्फ प्रतीकात्मक है, क्योंकि इन दलों का दिल्ली में कोई ठोस जनाधार नहीं है। फिर भी, यह कदम गठबंधन के भीतर के अंतर्विरोधों को उजागर करता है। यह स्पष्ट हो गया है कि ‘इंडिया’ के घटक दलों के पास एक समान दृष्टिकोण का अभाव है, और वे अपने-अपने राजनीतिक हित साधने में लगे हैं।

क्षेत्रीय राजनीति और कांग्रेस की चुनौतियां

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क्षेत्रीय दलों का कांग्रेस से अलग होना नई बात नहीं है। द्रमुक, झामुमो, तृणमूल और समाजवादी पार्टी जैसे दल, जो कांग्रेस के वोट बैंक पर निर्भर रहे हैं, अब कांग्रेस के साथ जुड़ने से हिचक रहे हैं। महाराष्ट्र में ‘महाविकास अघाड़ी’ गठबंधन के अनुभव ने कांग्रेस को अंदरूनी तनाव और विरोधाभास का सामना कराया। इसी तरह, पंजाब और हरियाणा में कांग्रेस और आप के बीच की प्रतिद्वंद्विता ने विपक्ष की एकता को कमजोर किया।

गठबंधन की नियति: वर्तमान और भविष्य

वर्तमान स्थिति में ‘इंडिया’ का बिखराव तय है। हालांकि, गठबंधनों का टूटना और बनना भारतीय राजनीति की अनिवार्य प्रक्रिया है। संभव है कि 2029 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी दल फिर एकजुट हों। लेकिन यह तभी संभव होगा, जब गठबंधन के लिए एक सुसंगत दृष्टिकोण, साझा रणनीति और नेतृत्व की स्पष्टता हो।

लोकतंत्र के लिए संदेश

‘इंडिया’ का बिखराव विपक्ष की कमजोरियों को तो उजागर करता ही है, साथ ही यह भारतीय लोकतंत्र के लिए भी एक चेतावनी है। एक सशक्त और संगठित विपक्ष लोकतंत्र की रीढ़ है। यदि विपक्ष एकजुट नहीं होगा, तो सत्तारूढ़ दल की जवाबदेही तय करना मुश्किल हो जाएगा।

विपक्षी दलों को समझना होगा कि गठबंधन केवल चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखने का माध्यम है। यदि गठबंधन केवल अवसरवादी राजनीति तक सीमित रहेगा, तो उसका अस्तित्व टिकाऊ नहीं होगा। समय आ गया है कि विपक्ष अपनी गलतियों से सबक ले और भारतीय लोकतंत्र के हित में एक मजबूत, दीर्घकालिक और सुसंगत गठबंधन का निर्माण करे।

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Author: samachardarpan24

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One Comment

  1. छोटी-छोटी पार्टियों को अपना अस्तित्व बचाने के लिए क्षेत्रीय पार्टियों को यह उनकी मजबूरी है, कांग्रेस पार्टी का साथ छोड़ना उन छोटी पार्टियों के लिए घातक भी है क्योंकि कांग्रेस पार्टी लोकसभा में99 अ अपनने दम पर सीट लेकर के बैठी है इसको लोकसभा चुनाव से पहले किसी की जरुरत नहीं है l कुछ हद तक सोचें की इंडिया गठबंधन से निकलकर तीसरा मोर्चा लेकिन उसे तीसरे मोर्चे का अस्तित्व भी कांग्रेस पार्टी पर ही निर्भर रहेगा,

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