google.com, pub-2721071185451024, DIRECT, f08c47fec0942fa0
संपादकीय

अंबेडकर के नाम पर राजनीति: दलितों की हालत सुधारने या वोट बटोरने की चाल?

IMG-20250425-WA1484(1)
IMG-20250425-WA0826
IMG-20250502-WA0000
Light Blue Modern Hospital Brochure_20250505_010416_0000
IMG_COM_202505222101103700

अनिल अनूप

भारत में दलित वोट बैंक हमेशा से राजनीतिक दलों के लिए एक महत्वपूर्ण सत्ता साधन रहा है। समय-समय पर, यह देखा गया है कि दलितों की वास्तविक सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने के बजाय, राजनीतिक दल केवल इस मुद्दे को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करते हैं। विशेषकर जब बात अंबेडकर के नाम की होती है, तो राजनीतिक दल अपनी असल नीयत छिपाने के लिए इसे एक हथियार के रूप में उपयोग करते हैं। हाल ही में संसद में अंबेडकर को लेकर जो विवाद हुआ, वह इसी राजनीति का एक उदाहरण है।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा अंबेडकर का नाम लेकर दिया गया बयान और उस पर विपक्ष का विरोध, यह दिखाता है कि कैसे दलितों के नाम पर राजनीति होती है। अमित शाह के भाषण में अंबेडकर का नाम लेकर उन्होंने यह कहा कि आजकल अंबेडकर का नाम लेना एक फैशन बन गया है, जो विपक्ष के लिए एक अवसर बन गया। विपक्षी दलों ने इस बयान को अपमानजनक करार दिया और शाह के इस्तीफे की मांग की। हालांकि, यह भी सच है कि इन दलों को न तो अंबेडकर के सिद्धांतों से कोई खास लगाव है, न ही उन्हें दलितों के वास्तविक उत्थान की कोई चिंता है। उनका उद्देश्य केवल चुनावी लाभ प्राप्त करना होता है।

राजनीतिक दलों के लिए दलित वोट बैंक हमेशा से एक हथियार रहा है। मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) इसका एक प्रमुख उदाहरण है। उत्तर प्रदेश में उनके शासन के दौरान सरकारी योजनाओं का दुरुपयोग और खुद की मूर्तियां लगवाने का मामला एक बड़ा घोटाला बना था। लोकायुक्त की रिपोर्ट ने इस घोटाले का खुलासा किया, लेकिन इसके बावजूद इन दलों की असलियत पर कोई सवाल नहीं उठाए गए। इसके साथ ही, जब हम देखे कि राजस्थान में कांग्रेस के शासन में दलितों के खिलाफ अत्याचार बढ़े, तो यह भी साबित होता है कि राजनीतिक दलों को असल में दलितों की मदद करने से कोई लेना-देना नहीं है। इन दलों की प्राथमिकता केवल चुनावी लाभ है, न कि दलितों के वास्तविक कल्याण के लिए काम करना।

आप को यह भी पसंद आ सकता है  42 वीं राष्ट्रीय जूनियर शूटिंगबाल चैम्पियनशिप का सवाई मानसिंह स्टेडियम के इंडोर मे समापन हुआ

सवाल उठता है कि दलितों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या आज भी दलितों की हालत पहले जैसी बनी हुई है, या उनके जीवन स्तर में कोई सुधार हुआ है? सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार की वजह से दलितों के लिए बनाई गई योजनाओं का कोई खास लाभ नहीं मिल पाया है। हालांकि, आरक्षण जैसी व्यवस्था ने दलितों के लिए कुछ अवसर पैदा किए, लेकिन अधिकांश दलित आज भी बुनियादी सुविधाओं और समानता के अधिकार से वंचित हैं। आंकड़े यह बताते हैं कि सरकारी नौकरियों में आरक्षित पदों का एक बड़ा हिस्सा हर साल खाली रह जाता है, और देशभर में दलितों का एक बड़ा हिस्सा आज भी अपने पारंपरिक कामों में फंसा हुआ है।

यदि राजनीतिक दलों को वाकई दलितों की चिंता होती, तो वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी विचार करते, जिसमें महादलितों के लिए अलग से आरक्षण देने और क्रीमीलेयर को आरक्षण से बाहर करने की सिफारिश की गई है। लेकिन इन राजनीतिक दलों ने इस पर न तो कोई गंभीर चर्चा की और न ही इस पर कोई ठोस कदम उठाया। उनका केवल एक ही उद्देश्य है – चुनावी लाभ प्राप्त करना, चाहे इसके लिए वे दलितों के नाम पर राजनीति क्यों न करें।

आप को यह भी पसंद आ सकता है  "लुलु मॉल" में फंस गए योगी ; पहले उद्घाटन फिर पढाई नमाज, हिंदू संगठन भी हो रहे लामबद्ध, वीडियो ?

आजादी के 77 साल बाद भी दलितों की हालत में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। इस समय की जरूरत यह है कि दलितों के कल्याण के लिए ठोस और वास्तविक कदम उठाए जाएं, न कि सिर्फ चुनावी लाभ के लिए उनके नाम का इस्तेमाल किया जाए। दलितों को वास्तविक अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसे मौलिक अधिकार मिलें, तभी वे समाज के मुख्यधारा में समाहित हो पाएंगे और उनकी स्थिति में कोई सच्चा सुधार हो सकेगा।

816 पाठकों ने अब तक पढा
samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

[embedyt] https://www.youtube.com/embed?listType=playlist&list=UU7V4PbrEu9I94AdP4JOd2ug&layout=gallery[/embedyt]
Tags

samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

3 Comments

  1. जब तक देश के 70% महादलित को उपजाति वर्गीकृत आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है तब तक बाबा साहब के नाम मात्र खोखली राजनीति ही साबित होगी।

  2. देश में चारों तरफ खुब राजनीति हो रही है लेकिन संविधान और डॉक्टर अंबेडकर की भावनाओं के अनुसार देश के सतर प्रतिशत महादलित आबादी आज भी दीनहीन है। उपजातीय वर्गीकृत आरक्षण की उपादेयता पर कोई भी दल अपनी जबान नहीं खोल रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close
Close