उन्नाव के रामपुर गढ़ौवा गांव में “स्कूल चलो अभियान” के अंतर्गत शिक्षकों ने किया घर-घर संवाद। ग्रामीण बोले—प्राइवेट स्कूल में फीस देने के बावजूद शिक्षा कमजोर, परिषदीय विद्यालयों पर बढ़ा भरोसा।
ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट
उन्नाव(औरास)। स्कूल चलो अभियान के तहत रामपुर गढ़ौवा गांव में जब परिषदीय विद्यालय के सैकड़ों छात्र-छात्राएं रंग-बिरंगे परिधानों में रैली लेकर निकले, तो पूरे गांव का माहौल शिक्षा के रंग में रंग गया। शिक्षकों और विद्यार्थियों के उत्साहपूर्ण प्रयास ने न सिर्फ बच्चों को बल्कि अभिभावकों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया।
घर-घर संवाद से खुली शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई
रैली के दौरान शिक्षक-शिक्षिकाओं ने हर घर जाकर बच्चों के नामांकन की जानकारी जुटाई और साथ ही शिक्षा से जुड़ी समस्याओं पर भी चर्चा की। इसी क्रम में कई अभिभावकों ने अपना दर्द साझा किया। एक मजदूर पिता ने कहा, “महीनों पेट काटकर बच्चे को प्राइवेट स्कूल में डाला, लेकिन ना शिक्षा ठीक मिली, ना स्कूल की मान्यता पक्की निकली।”
प्राइवेट स्कूलों की हकीकत आई सामने
कई प्राइवेट स्कूल, जिनमें बच्चों को दाखिला दिलाया गया था, वे या तो बिना मान्यता के चल रहे थे या वहां अप्रशिक्षित लोग पढ़ा रहे थे। शिक्षक डॉ. प्रदीप कुमार वर्मा ने बताया कि ऐसे विद्यालयों की जांच जारी है और कई को नोटिस भी जारी हो चुके हैं।
सरकारी स्कूलों की सुविधाएं बनीं भरोसे की वजह
जिन अभिभावकों के बच्चे परिषद के विद्यालयों में पढ़ रहे हैं, उन्होंने सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं जैसे—मुफ्त पाठ्यपुस्तकें, ड्रेस, मिड-डे मील—की तारीफ की। एक किसान ने कहा, “फसल अच्छी नहीं हुई, पर किताबें मुफ्त मिलीं तो राहत महसूस हुई।”
लड़कियों की पढ़ाई पर विशेष बल
अभियान के दौरान शिक्षकों ने ग्रामीणों से बेटियों की पढ़ाई पर विशेष ध्यान देने की अपील की। उन्होंने कहा कि “कमजोर बुनियाद पर ऊंचे मकान नहीं बनते, बच्चों का भविष्य शिक्षा पर निर्भर है।”
यह अभियान केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक ठोस कदम है। शिक्षकों के इस प्रयास से न केवल नामांकन बढ़ने की उम्मीद है, बल्कि ग्रामीणों में शिक्षा को लेकर जागरूकता भी गहराई है।