उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के निजामपुर गांव का एक ऐतिहासिक क्षण—गांव के राम केवल ने पहली बार हाईस्कूल परीक्षा पास कर शिक्षा की नई क्रांति की शुरुआत की है।
ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट
सोचिए एक ऐसा गांव, जहां आज़ादी के 75 साल बाद तक कोई भी हाईस्कूल पास न कर सका हो! लेकिन अब उस सन्नाटे को तोड़कर गूंज उठी है एक कामयाबी की गूंज।
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में स्थित निजामपुर गांव में एक ऐसा ही इतिहास रचा गया है। यहां के राम केवल पुत्र जगदीश ने पहली बार हाईस्कूल बोर्ड परीक्षा पास कर पूरे गांव के माथे पर गर्व की चमक बिखेर दी है।
गांव जहां आज तक न किसी ने हाईस्कूल पास किया, न सपना देखा
निजामपुर गांव, बनीकोडर ब्लॉक और रामसनेहीघाट तहसील के अंतर्गत आता है। अहमदपुर टोल प्लाज़ा के पास बसा यह गांव अब तक शैक्षिक रूप से पिछड़ा माना जाता था। यहां के युवा रोज़गार की तलाश में दूर-दराज़ निकल जाते थे, लेकिन शिक्षा की लौ गांव तक नहीं पहुंची थी।
2025 का साल इस गांव के लिए बदलाव का प्रतीक बन गया। राम केवल ने न केवल परीक्षा पास की, बल्कि पूरे गांव के लिए प्रेरणा की मिसाल बन गए।
मिशन पहचान बना बदलाव की चाबी
राम केवल की सफलता यूं ही नहीं आई। इसके पीछे है उनका अथक परिश्रम और ‘मिशन पहचान’ जैसी सरकारी शैक्षिक योजना की अहम भूमिका। बेहद सीमित संसाधनों और आर्थिक चुनौतियों के बीच, राम केवल ने यह साबित कर दिया कि सपने अगर मजबूत हों, तो साधन मायने नहीं रखते।
खुशियां ही खुशियां, गांव ने मनाया जश्न
राम केवल की उपलब्धि ने पूरे निजामपुर गांव में जैसे उत्सव का माहौल बना दिया। परिवार के आंसू गर्व से छलक पड़े, तो गांव वालों ने ढोल-नगाड़ों से उनका स्वागत किया। यह पल सिर्फ एक छात्र की जीत नहीं थी, बल्कि पूरे गांव की सामाजिक सोच में आई नई जागरूकता का प्रतीक था।
डीएम से मिला सम्मान, बनी राज्य स्तर की खबर
बाराबंकी के जिलाधिकारी शशांक त्रिपाठी ने राम केवल को सम्मानित किया और उनके उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि यह केवल एक परीक्षा पास करने की बात नहीं है, बल्कि यह बदलाव की शुरुआत है, जिसकी गूंज दूर तक जाएगी।
क्या अब निजामपुर बदलेगा?
राम केवल ने जो चिंगारी जलाई है, अब उम्मीद है कि वह पूरा गांव बदलने का माध्यम बनेगी। बच्चे पढ़ाई की ओर आकृष्ट हो रहे हैं, और माता-पिता अब शिक्षा को गंभीरता से ले रहे हैं।
राम केवल की यह कहानी सिर्फ निजामपुर की नहीं, बल्कि उन हजारों गांवों की है, जहां शिक्षा अब भी संघर्ष का नाम है। लेकिन यह एक मिसाल है कि जब कोई आगे बढ़ता है, तो उसके पीछे पूरा समाज चल पड़ता है।