जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 28 पर्यटकों की मौत ने देश को झकझोर दिया। हमले में धर्म के आधार पर लोगों को निशाना बनाया गया, जिसकी देशभर के मुस्लिम संगठनों और उलेमाओं ने सख्त निंदा की है।
परवेज अंसारी की रिपोर्ट
पहलगाम आतंकी हमला: जब धर्म बना मौत का कारण
जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के बैसरान क्षेत्र में मंगलवार को जो हुआ, उसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया। पहलगाम घूमने आए पर्यटकों पर आतंकियों ने ऐसा हमला बोला, जिसमें 28 निर्दोष लोगों की जान चली गई। चौंकाने वाली बात यह रही कि आतंकियों ने पहले यात्रियों से उनका धर्म पूछा, फिर कलमा और अजान सुनाने के लिए कहा और अंततः उन्हें गोली मार दी।
यह हमला न केवल अब तक का सबसे बड़ा पर्यटक हमला माना जा रहा है, बल्कि इसमें आतंकियों का एक नया टारगेट किलिंग पैटर्न भी सामने आया है—जिसमें धर्म के नाम पर मौत बांटी गई।
मुस्लिम समाज की एकजुट निंदा: आतंकवाद के खिलाफ खड़ा हुआ इस्लामी जगत
जहां इस कायराना हरकत की पूरे देश में निंदा हो रही है, वहीं मुस्लिम समाज और धार्मिक नेताओं ने भी एक सुर में इसका विरोध किया है।
“इस्लाम खून बहाने की इजाजत नहीं देता” – सैफ अब्बास नकवी
शिया मौलाना सैयद सैफ अब्बास नकवी ने इस घटना को इस्लाम को बदनाम करने की साजिश बताया। उन्होंने कहा, “नाम और धर्म पूछकर हत्या करना इस्लाम नहीं, आतंकवाद है। यह पैटर्न पाकिस्तान से आया है और अब भारत को अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है।”
“देश का माहौल बिगाड़ने की साजिश” – मौलाना अरशद मदनी
जमीअत उलमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना मदनी ने इस हमले को देश की सामाजिक एकता पर हमला बताया। उन्होंने कहा, “प्रशासन की विफलता ने ऐसी ताकतों को मौका दिया है। मुसलमानों को आतंक के खिलाफ खुलकर बोलना होगा।”
“धर्म के नाम पर हिंसा इस्लाम के खिलाफ” – एजाज असलम
जमात-ए-इस्लामी हिंद के एजाज अहमद असलम ने कहा, “पैगंबर मोहम्मद ने हमेशा अमन का संदेश दिया। किसी भी मजहब में हिंसा की इजाजत नहीं है। अगर किसी ने इस्लाम के नाम पर हिंसा की है तो वो इस्लाम का दुश्मन है।”
सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश: गहरी साजिश के संकेत
एमजे खान, इंडियन मुस्लिम फॉर प्रोग्रेसिव एंड रिफॉर्म के अध्यक्ष ने इस घटना में धार्मिक रंग देखने को गंभीर चिंता बताया। उन्होंने कहा, “कश्मीर में सुधार की राह पर चल रही आवाम को आतंकियों ने गुमराह करने की कोशिश की है। मुस्लिम समाज को खुद आगे आकर आतंक के खिलाफ मोर्चा खोलना होगा।”
“तालिबानी सोच को कुचलना जरूरी” – मौलाना नोमानी
मौलाना अब्दुल हामिद नोमानी ने इस हमले को पूरी तरह से तालिबानी मानसिकता करार देते हुए कहा, “हिंदू-मुस्लिम के बीच दरार पैदा कर आतंकवादी अपनी साजिशों में सफल होना चाहते हैं। यह साजिश पहले ही बेनकाब हो चुकी है।”
“गैर इंसानी और गैर इस्लामी कृत्य” – कमाल फारुखी की दो टूक
मुस्लिम बुद्धिजीवी कमाल फारुखी ने कहा, “इस्लाम किसी भी मजलूम पर ज़ुल्म करने की इजाजत नहीं देता। ये हमला ना सिर्फ गैर इंसानी है बल्कि इस्लाम के नाम पर किया गया सबसे बड़ा झूठ भी है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि “देश के सेकुलर ताने-बाने पर हमले हो रहे हैं और हमें एकजुट होकर इसका सामना करना होगा।”
धर्म की आड़ में आतंकवाद – देश को तोड़ने की चाल
इस आतंकी हमले ने साफ कर दिया है कि आतंकवादी अब धर्म को ढाल बनाकर नफरत फैला रहे हैं। लेकिन देश के मुसलमानों की प्रतिक्रिया ने एक नई मिसाल कायम की है—जहां मजहब से ऊपर इंसानियत को रखा गया है।
अब समय आ गया है कि सरकार, समाज और सभी धर्मावलंबी मिलकर ऐसी ताकतों के खिलाफ एकजुट हों जो देश को बांटना चाहते हैं। क्योंकि आतंकवाद का न कोई मजहब होता है और न ही कोई इंसानियत।