जहाँ फूल मुस्काने थे, वहाँ लहू बरसा—पहलगाम की घाटी पूछ रही है: “और कितने कफ़न चाहिए?”

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22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में हुए आतंकी हमले में 22 से अधिक पर्यटकों की मौत हुई। पहलगाम में हुए इस हमले ने सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

अरमान अली की रिपोर्ट

श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में स्थित प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पहलगाम में आज उस समय मातम पसर गया जब आतंकियों ने निहत्थे पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलीबारी कर दी। प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार, इस आतंकी हमले में 22 से अधिक लोगों के मारे जाने की आशंका है, जबकि दर्जनों लोग घायल हुए हैं। यह हमला राज्य की पर्यटन सुरक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।

घटना स्थल: शांत घाटी में खौफ की चीखें

हमला दोपहर लगभग 2 बजे हुआ, जब पर्यटकों से भरी एक बस बैसरन घास के मैदान से लौट रही थी। इसी दौरान घात लगाए आतंकियों ने जंगल की ओर से ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हमला इतने अचानक और तेज़ था कि किसी को संभलने तक का मौका नहीं मिला। हमले के वक्त क्षेत्र में 80 से अधिक पर्यटक मौजूद थे।

आतंकी हमला: सुरक्षा में भारी चूक या सुनियोजित साजिश?

हालांकि पहलगाम क्षेत्र को आम तौर पर शांत और सुरक्षित माना जाता है, लेकिन इस हमले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आतंकी संगठन अब पर्यटन को भी निशाना बनाने लगे हैं। सुरक्षा सूत्रों के अनुसार, हमला लश्कर-ए-तैयबा या TRF (The Resistance Front) जैसे संगठनों का काम हो सकता है। यह वही संगठन हैं जिन्होंने पिछले वर्षों में अमरनाथ यात्रियों और कश्मीरी पंडितों को भी निशाना बनाया था।

शहीदों और घायलों की जानकारी

  • 22 से अधिक पर्यटकों की मौत की पुष्टि स्थानीय प्रशासन ने की है।
  • 15 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हैं, जिनका इलाज श्रीनगर के SKIMS और अनंतनाग जिला अस्पताल में चल रहा है।
  • मृतकों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली और गुजरात के पर्यटक शामिल हैं।
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केंद्र और राज्य सरकार की प्रतिक्रिया

गृह मंत्री अमित शाह ने इस हमले को “कायरतापूर्ण और अमानवीय” बताते हुए कहा है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर इस हमले की निंदा करते हुए मृतकों के परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की है।

केंद्र सरकार ने NIA और IB की संयुक्त टीम को तुरंत घटनास्थल पर रवाना कर जांच शुरू कर दी है। राज्य प्रशासन ने पहलगाम और आसपास के क्षेत्रों में ऊंचे स्तर की सुरक्षा अलर्ट जारी कर दी है।

स्थानीय जनता में आक्रोश और भय

हमले के बाद स्थानीय व्यवसायियों और होटल मालिकों में भय का माहौल है। पहलगाम के पर्यटन व्यवसाय पर इसका गंभीर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है। कई यात्रियों और टूर ऑपरेटरों ने अपनी यात्राएं रद्द कर दी हैं।

एक स्थानीय निवासी फैजान अहमद ने बताया:

“हम यहां रोज़गार के लिए पर्यटकों पर निर्भर हैं, लेकिन अब लगता है जैसे सब कुछ खत्म हो गया हो।”

हालिया आतंकी गतिविधियों से जुड़ी कड़ियाँ

इससे पहले जून 2024 में भी एक तीर्थयात्री बस पर हमला हुआ था जिसमें 9 श्रद्धालुओं की मौत और 33 घायल हुए थे। तब भी यही संदेह था कि विदेशी फंडिंग से पोषित आतंकी संगठन कश्मीर की शांति को भंग करने की कोशिश कर रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने इसे निंदनीय बताते हुए आतंक के विरुद्ध भारत के प्रयासों का समर्थन किया है। वहीं, अमेरिका और फ्रांस ने भी इसे मानवता के विरुद्ध अपराध करार दिया है।

कश्मीर की फिजाओं में फिर फैला मातम

पहलगाम का यह हमला न केवल जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था के लिए चुनौती है, बल्कि यह दर्शाता है कि आतंक अब पर्यटन और निर्दोष नागरिकों को भी निशाना बना रहा है। ऐसे समय में जबकि कश्मीर घाटी में पर्यटकों की आमद बढ़ रही थी, यह हमला एक गहरा झटका है।

शहीदों को श्रद्धांजलि: दर्द की परतों में दबा देश का आत्मसम्मान

इस खौफनाक हमले में जान गंवाने वाले वे लोग थे जो केवल कुछ दिनों के लिए प्रकृति की गोद में सुकून की तलाश में आए थे। वे न सैनिक थे, न रणनीतिकार—वे आम नागरिक थे, जो अपने हिस्से की खुशी खोजने निकले थे, और लौटे तो तिरंगे में लिपटे हुए।

हम हर एक जान के लिए जवाबदेह हैं

इस दुखद क्षण में देश केवल आक्रोशित नहीं है, वह आत्मचिंतन भी कर रहा है। सवाल यह नहीं कि हमला क्यों हुआ—सवाल यह है कि अब हम क्या करेंगे?

क्या यह घटना भी अन्य हमलों की तरह वक्त की गर्द में खो जाएगी?

क्या सरकार केवल शोक संदेशों और घोषणाओं तक सिमट जाएगी?

या फिर यह देश एक ठोस नीति के साथ आतंक के विरुद्ध निर्णायक मोर्चा खोलेगा?

राष्ट्र की पुकार: क्या हम जागेंगे या फिर भूल जाएंगे?

कश्मीर की हसीन वादियाँ अब खून से रंग चुकी हैं। पहलगाम की वो वादियाँ जहाँ कभी कवि कविता ढूंढ़ते थे, अब मातम और चीखों की कहानियाँ कह रही हैं।

इन निर्दोष मृतकों को सच्ची श्रद्धांजलि तब ही होगी जब:

  1. देश की सुरक्षा नीति ज़मीनी स्तर पर मजबूत की जाए।
  2. स्थानीय प्रशासन और इंटेलिजेंस एजेंसियों की जवाबदेही तय हो।
  3. सिर्फ आतंकी नहीं, बल्कि उन्हें पालने वाले विचारधारात्मक स्रोतों पर भी कार्रवाई हो।

श्रद्धांजलि नहीं—संकल्प चाहिए

हर बार हम श्रद्धांजलि देते हैं। फूल चढ़ाते हैं। मोमबत्तियाँ जलाते हैं। पर क्या अब वक्त नहीं आ गया कि हम सिर्फ मोमबत्तियाँ नहीं, इरादे जलाएं?

देश को आतंक से नहीं, असंवेदनशीलता से डरना चाहिए।

इसलिए आज, एक आम नागरिक से लेकर सरकार तक, हर किसी को आत्ममंथन करना होगा—

  • कि हम कब तक कश्मीर की घाटियों में लहू बहने देंगे?
  • कब तक माताओं की गोद सूनी होती रहेगी?

samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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