google.com, pub-2721071185451024, DIRECT, f08c47fec0942fa0
आज का मुद्दा

बैसरन ; वो वादी जो सुकून देती थी, अब सिसकियों से भरी है

IMG-20250425-WA1620
IMG-20250425-WA1484(1)
IMG-20250425-WA0826
IMG-20250502-WA0000
Light Blue Modern Hospital Brochure_20250505_010416_0000
Green Modern Medical Facebook Post_20250505_080306_0000
IMG-20250513-WA1941
107 पाठकों ने अब तक पढा

बैसरन घाटी, जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य और ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’ जैसे उपनाम से प्रसिद्ध है, अब एक भीषण चरमपंथी हमले की पीड़ा झेल रही है। इस हमले में 26 लोगों की मौत ने पर्यटन की उम्मीदों पर ताले लगा दिए हैं।

जहाँ शांति की घास लहलहाती थी, वहाँ अब ख़ौफ़ की चुप्पी पसरी है।

अरमान अली की रिपोर्ट

मंगलवार को जम्मू-कश्मीर की सुरम्य बैसरन घाटी में जो कुछ घटित हुआ, उसने इस स्वर्ग सरीखी धरती को एक दहला देने वाले दुःस्वप्न में बदल दिया। इस हमले में कम से कम 26 निर्दोष लोग जान गंवा बैठे—एक ऐसा मंजर जिसे न इस वादी ने पहले देखा था, न महसूस किया था।

बैसरन घाटी: वह वादी जो सुकून की मिसाल थी

अनंतनाग ज़िले में स्थित पहलगाम से महज पाँच से छह किलोमीटर की दूरी पर बसी बैसरन घाटी समुद्र तल से लगभग 7500 से 8000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। चारों ओर चीड़ और देवदार के घने जंगलों से घिरी यह घाटी गर्मियों में हरे-भरे घास के मैदानों और जंगली फूलों से लदी होती है, जबकि सर्दियों में यह बर्फ़ की चादर ओढ़ लेती है। शायद इसी सम्मोहक सौंदर्य के कारण यह स्थान सैलानियों के बीच ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’ के नाम से मशहूर हो चुका है।

सैलानियों की पहली पसंद—अब डर की परछाई में

पहलगाम के स्थानीय होटल व्यवसायी जावेद अहमद बताते हैं, “जो भी पर्यटक पहलगाम आता है, वह बैसरन जाने की इच्छा ज़रूर रखता है।” लेकिन अब, यह पथरीली, उबड़-खाबड़ और रोमांचक यात्रा—जो पहले एडवेंचर का अनुभव कराती थी—एक भयावह स्मृति में बदल गई है।

बैसरन घाटी की खूबसूरती दिखाई देती तस्वीर

बैसरन पहुँचने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं है, बल्कि घोड़े या खच्चर से ही पहुँचना पड़ता है। यही असुविधा इस घाटी की आत्मा बन चुकी थी—प्रकृति की गोद में एकांत का सुख। परंतु अब वही एकांत असुरक्षा में बदल चुका है।

प्राकृतिक सुंदरता और फिल्मों का चहेता स्थल

बैसरन के दृश्य सिनेमा की स्क्रीन पर भी बार-बार छाए हैं। सलमान ख़ान की ‘बजरंगी भाईजान’, ‘हैदर’, और ‘हाईवे’ जैसी फिल्मों की शूटिंग इसी वादी और इसके आसपास की घाटियों में हुई थी। यह वादी एक ऐसा फ्रेम बन गई थी, जहाँ हर फ़्रेम कविता लगती थी। लेकिन अब, वह फ्रेम खून से धुंधला हो गया है।

अमरनाथ यात्रा और बैसरन की धार्मिक प्रासंगिकता

यही नहीं, पहलगाम अमरनाथ यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव भी है। हर वर्ष हज़ारों श्रद्धालु यहाँ से यात्रा की शुरुआत करते हैं। इस वर्ष की यात्रा 3 जुलाई से आरंभ होनी है, और अभी से सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त किया जा रहा था। लेकिन इसी दौरान यह हमला होना पूरे क्षेत्र की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगा गया है।

आख़िरी साँसें लेता पर्यटन उद्योग

पहलगाम में प्रतिदिन लगभग दो से तीन हज़ार पर्यटक पहुँचते थे, जिनमें से 90 प्रतिशत बैसरन ज़रूर जाते थे। अब, वही पर्यटक जम्मू-कश्मीर को अलविदा कह रहे हैं। होटल कारोबारी जावेद अहमद की बातों में पीड़ा साफ़ झलकती है, “हमने कभी सोचा नहीं था कि पर्यटक भी निशाना बन सकते हैं। यह हमला हमारे पर्यटन उद्योग की रीढ़ पर वार है।”

इतिहास में दर्ज अन्य हमलों की परछाई

यह कोई पहली घटना नहीं है। साल 2000 में नुवान बेस कैंप पर हमला, 2002 में चंदनबाड़ी और 2017 में कुलगाम की घटनाएँ अब एक त्रासद श्रृंखला बन चुकी हैं। और अब, बैसरन इस त्रासदी का नया अध्याय बन गया है।

क्या फिर बहाल होगा सैलानियों का विश्वास?

अभी यह कहना कठिन है कि बैसरन फिर कब सैलानियों की चहल-पहल से भर पाएगा। मगर उम्मीद यही है कि कुदरत की यह नायाब देन अपने घावों को समेटकर एक दिन फिर मुस्कराएगी—और सैलानियों का स्वागत उसी आत्मीयता से करेगी, जैसे वह सालों से करती आई है।

samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

[embedyt] https://www.youtube.com/embed?listType=playlist&list=UU7V4PbrEu9I94AdP4JOd2ug&layout=gallery[/embedyt]
Tags

samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close
Close