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राजनांदगांव

हिंदी साहित्य का गौरव: विनोद कुमार शुक्ल को मिला 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार

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हिंदी साहित्य के प्रख्यात कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल को 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। ‘नौकर की कमीज’ और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ जैसे कालजयी उपन्यासों के रचयिता शुक्ल जी साहित्य में अपनी अनूठी शैली के लिए जाने जाते हैं।

बिलासपुर छत्तीसगढ़। हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि और कथाकार विनोद कुमार शुक्ल को 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई है। साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को सम्मानित करते हुए यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। इस अवसर पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा,

“ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने से मुझे खुशी हुई। मैं अभी भी यह महसूस करता हूं कि मैं बहुत कुछ और लिख सकता हूं। मेरे लेखन के लिए अभी बहुत कुछ शेष है।”

हिंदी साहित्य में विशिष्ट योगदान

1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल हिंदी साहित्य के उन रचनाकारों में से हैं, जिन्होंने अपनी विशिष्ट शैली और भाषा में नए मुहावरे गढ़े हैं। उनके उपन्यास ‘नौकर की कमीज’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’ और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ हिंदी साहित्य की महत्वपूर्ण कृतियों में शामिल हैं। इन उपन्यासों के अनुवाद कई भाषाओं में किए जा चुके हैं और इन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया है।

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उनके कहानी संग्रह ‘पेड़ पर कमरा’, ‘आदमी की औरत’ और ‘महाविद्यालय’ भी पाठकों के बीच विशेष रूप से चर्चित रहे हैं। उनके पहले कविता संग्रह ‘लगभग जयहिंद’ का प्रकाशन 1971 में हुआ था, जिसके बाद से वे साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय रूप से योगदान दे रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान

विनोद कुमार शुक्ल को साहित्य के लिए गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रजा पुरस्कार, वीरसिंह देव पुरस्कार, सृजनभारती सम्मान, रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, दयावती मोदी कवि शिखर सम्मान, भवानीप्रसाद मिश्र पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान और पं. सुन्दरलाल शर्मा पुरस्कार सहित कई प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।

वर्ष 1999 में उनके उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था। इसके अतिरिक्त, हाल ही में मातृभूमि बुक ऑफ द ईयर अवॉर्ड से भी उन्हें सम्मानित किया गया है।

विशेष रूप से, साल 2022 में पेन अमेरिका द्वारा अंतरराष्ट्रीय ख्याति के लिए उन्हें ‘नाबोकॉव अवॉर्ड’ दिया गया था। इस सम्मान को प्राप्त करने वाले वे पहले एशियाई साहित्यकार हैं।

ज्ञानपीठ पुरस्कार चयन समिति का निर्णय

ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चयन सुप्रसिद्ध कथाकार प्रतिभा राय की अध्यक्षता में किया गया है। विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के 12वें साहित्यकार हैं, जिन्हें इस प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा जा रहा है।

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साहित्य में उनकी अनूठी शैली

उनकी रचनाओं में गहराई, संवेदनशीलता और सामाजिक यथार्थ के साथ-साथ कल्पनाशीलता का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है। उनकी प्रमुख काव्य कृतियां ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर’, ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’, ‘अतिरिक्त नहीं’, ‘कविता से लंबी कविता’, ‘आकाश धरती को खटखटाता है’ आदि विशेष रूप से चर्चित रही हैं।

इसके अलावा, बच्चों के लिए लिखी गई उनकी पुस्तकें ‘हरे पत्ते के रंग की पतरंगी’ और ‘कहीं खो गया नाम का लड़का’ भी काफी लोकप्रिय हुई हैं।

हिंदी साहित्य में अमूल्य योगदान

पिछले 50 वर्षों से अधिक समय से सक्रिय साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल की लेखनी ने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। उनके लेखन की शैली सरल, प्रभावशाली और गहरी संवेदनशीलता से भरपूर है, जो पाठकों को भावनात्मक रूप से जोड़ती है।

उनकी कृतियां आधुनिक हिंदी साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी रहेंगी। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाना उनके समग्र साहित्यिक योगदान का एक महत्वपूर्ण मान्यता है, जो हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है।

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➡️हरीश चन्द्र गुप्ता की रिपोर्ट

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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