ज्ञान से मूल्यांकन तक : शिक्षा और परीक्षा की यात्रा

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मोहन द्विवेदी

शिक्षा और परीक्षा, ये दो शब्द एक-दूसरे के पूरक हैं। शिक्षा का अर्थ केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के सर्वांगीण विकास का माध्यम भी है। शिक्षा का उद्देश्य केवल जानकारी प्रदान करना नहीं, बल्कि व्यक्ति को आत्मनिर्भर और विवेकशील बनाना भी है। इसी प्रकार, परीक्षा एक ऐसा माध्यम है, जिससे यह जांचा जाता है कि विद्यार्थी ने अपनी शिक्षा को कितनी गहराई से आत्मसात किया है। परीक्षा केवल अंकों की गणना तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह विद्यार्थियों की समझ, तर्कशक्ति और व्यावहारिक ज्ञान को भी परखने का साधन होनी चाहिए।

शिक्षा का व्यापक स्वरूप

शिक्षा केवल विद्यालयों और महाविद्यालयों तक सीमित नहीं है। यह जीवनभर चलने वाली एक प्रक्रिया है। व्यक्ति अपने अनुभवों, पर्यावरण, समाज और विभिन्न परिस्थितियों से भी शिक्षा ग्रहण करता है। शिक्षा केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि व्यवहारिक ज्ञान, नैतिक मूल्यों और जीवन जीने की कला भी सिखाती है। शिक्षा एक विशाल वटवृक्ष के समान है, जिसकी अनेक शाखाएँ विभिन्न व्यवसायों के रूप में विस्तारित होती हैं। डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, अध्यापक, प्रशासक, नेता—सभी ने शिक्षा के मार्ग से ही अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त की है।

परीक्षा का महत्व और चुनौतियाँ

परीक्षा, शिक्षा की कसौटी होती है। यह विद्यार्थियों की ज्ञान-अर्जन क्षमता को जांचने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। परीक्षा के बिना मूल्यांकन अधूरा है। प्राचीन काल से लेकर आज तक, परीक्षा की प्रणाली में कई बदलाव हुए हैं, लेकिन इसका उद्देश्य वही रहा है—विद्यार्थी के ज्ञान, योग्यता और कौशल का आकलन। हालांकि, वर्तमान समय में परीक्षा का भय विद्यार्थियों और अभिभावकों के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है।

अभिभावक अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर अत्यंत सजग रहते हैं। वे बच्चों की दिनचर्या, खान-पान, स्वास्थ्य, पढ़ाई और अनुशासन पर पूरा ध्यान देते हैं। परीक्षा के दिनों में यह चिंता और अधिक बढ़ जाती है। परीक्षा का तनाव केवल बच्चों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि माता-पिता भी इसके प्रभाव में आ जाते हैं। कई बार परीक्षा के दबाव में बच्चे घबराहट और मानसिक तनाव का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में परीक्षा को सहज बनाने के लिए अभिभावकों और शिक्षकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है।

परीक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण

परीक्षा को एक सहज और स्वाभाविक प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। यह समझना आवश्यक है कि परीक्षा केवल अंक प्राप्त करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह सीखने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है। यदि कोई विद्यार्थी एक परीक्षा में असफल होता है, तो उसे निराश होने के बजाय पुनः प्रयास करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। असफलता भी एक अनुभव है, जो भविष्य में सफलता का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

विद्यार्थियों को परीक्षा के डर से मुक्त करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं

1. मानसिक संतुलन बनाए रखना: परीक्षा के दौरान योग, ध्यान और खेलकूद को दिनचर्या में शामिल करना चाहिए।

2. संतुलित अध्ययन योजना: परीक्षा की तैयारी को अंतिम समय तक टालने के बजाय नियमित रूप से पढ़ाई करनी चाहिए।

3. अभिभावकों की सकारात्मक भूमिका: माता-पिता को बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने के बजाय उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।

4. शिक्षकों की सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि: शिक्षकों को विद्यार्थियों को परीक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

शिक्षा और परीक्षा का गहरा संबंध है। शिक्षा, व्यक्ति को समाज में एक योग्य नागरिक के रूप में स्थापित करने का कार्य करती है, जबकि परीक्षा उसके ज्ञान और कौशल को परखने का माध्यम है। परीक्षा को तनावपूर्ण बनाने के बजाय इसे एक स्वाभाविक प्रक्रिया के रूप में स्वीकार करना चाहिए। विद्यार्थियों को यह समझाने की आवश्यकता है कि परीक्षा ही जीवन का अंतिम लक्ष्य नहीं है, बल्कि यह एक माध्यम है, जिससे हम अपने सीखने की प्रक्रिया को परख सकते हैं। यदि हम शिक्षा और परीक्षा को संतुलित दृष्टिकोण से देखेंगे, तो न केवल विद्यार्थी बल्कि पूरा समाज लाभान्वित होगा। (लेखक शिक्षाविद हैं, “जीएम एकेडमी“, सलेमपुर, देवरिया के प्रधानाचार्य  और समाचार दर्पण .कॉम के कार्यकारी संपादक की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं।) 

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