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संपादकीय

महाकुंभ की भगदड़ : प्रशासनिक लापरवाही और भीड़ नियंत्रण की असफलता

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अनिल अनूप

बीते शनिवार की रात नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर महाकुंभ जाने वाले श्रद्धालुओं में मची भगदड़ में 18 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। इनमें 13 महिलाएं, 3 बच्चे और 2 पुरुष शामिल थे, जो बेकाबू भीड़ के कुचलने से दम तोड़ बैठे। इसके अलावा, 25 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। प्रत्यक्षदर्शियों और अस्पताल सूत्रों के अनुसार, यह आंकड़ा और भी अधिक हो सकता है। यह घटना केवल एक संयोग मात्र नहीं है, बल्कि प्रशासनिक असफलता और लापरवाही का एक ज्वलंत उदाहरण है।

आस्था के नाम पर अव्यवस्था

महाकुंभ हिंदू संस्कृति का एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है, जहां करोड़ों श्रद्धालु पुण्य प्राप्ति के लिए संगम में स्नान करने आते हैं। यह उत्साह और आस्था का पर्व होता है, लेकिन बीते कुछ वर्षों में ऐसे धार्मिक आयोजनों में भगदड़ की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। यह पहली बार नहीं है जब महाकुंभ या अन्य धार्मिक आयोजनों में प्रशासन भीड़ नियंत्रण में पूरी तरह विफल साबित हुआ है।

बिहार के पटना और अन्य रेलवे स्टेशनों पर भी इसी प्रकार की अराजकता देखने को मिली, जहां बेकाबू भीड़ ने ट्रेनों के वातानुकूलित डिब्बों के शीशे और दरवाजे तोड़ दिए। गुस्साई भीड़ ने रेलवे संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया और यात्रियों की सुरक्षा खतरे में डाल दी। इस तरह की घटनाएं इस ओर इशारा करती हैं कि भीड़ नियंत्रण की कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई गई, जबकि यह पहले से ही अनुमान था कि महाकुंभ के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु यात्रा करेंगे।

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प्रशासनिक विफलता और निष्क्रियता

रेलवे प्रशासन और स्थानीय प्रशासन का दायित्व होता है कि वह ऐसे बड़े आयोजनों के लिए विशेष इंतजाम करे। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि यात्रियों की भीड़ नियंत्रित ढंग से ट्रेनों में चढ़े और कोई भी अव्यवस्था न हो। लेकिन हकीकत यह है कि रेलवे प्रशासन भीड़ प्रबंधन के नाम पर केवल कागजी योजनाएं बनाकर उन्हें लागू करने में पूरी तरह असफल रहता है।

केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस घटना पर संज्ञान लेते हुए दंडात्मक कार्रवाई का आश्वासन दिया है। सीसीटीवी कैमरों में भीड़ के हिंसक चेहरे कैद हो चुके होंगे, लेकिन क्या इससे असल समस्या का समाधान होगा? क्या गरीब और आम आदमी से आर्थिक जुर्माना वसूला जा सकता है? और अगर दोषियों को जेल भी भेज दिया जाए, तो क्या इससे उनकी मानसिकता बदलेगी?

इस तरह की घटनाओं से यह साफ हो जाता है कि सरकार और प्रशासन, दोनों ही बार-बार होने वाली भगदड़ और अव्यवस्था से कोई सबक नहीं लेते। केवल अतिरिक्त ट्रेनों की घोषणा कर देना और कुछ अस्थायी इंतजाम कर देना ही समस्या का हल नहीं है।

आगे की राह: क्या होना चाहिए?

अगर हम बार-बार होने वाली भगदड़ की घटनाओं से सीख नहीं लेते, तो आने वाले वर्षों में यह समस्या और विकराल हो सकती है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए:

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1. भीड़ नियंत्रण की प्रभावी व्यवस्था: रेलवे स्टेशनों और अन्य महत्वपूर्ण स्थलों पर भीड़ नियंत्रण के लिए विशेष ट्रेनिंग प्राप्त सुरक्षा बलों को तैनात किया जाए।

2. ऑनलाइन टिकटिंग और पूर्व योजना: यात्रियों को महाकुंभ के लिए विशेष पास दिए जाएं, ताकि भीड़ को नियंत्रित किया जा सके। बिना आरक्षण के यात्रा पर रोक लगाई जाए।

3. स्मार्ट ट्रैफिक और रेलवे प्रबंधन: स्टेशनों पर डिजिटल स्क्रीन और अनाउंसमेंट सिस्टम का सही तरीके से इस्तेमाल हो, जिससे यात्रियों को सही जानकारी मिल सके और अफरा-तफरी न मचे।

4. सख्त कानूनी कार्रवाई: सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वालों पर कड़ी कार्रवाई हो, ताकि भविष्य में कोई ऐसा करने से पहले सोचे।

5. प्रशासनिक जवाबदेही: अगर कोई भगदड़ या अव्यवस्था होती है, तो उसके लिए संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए और उन पर कड़ी कार्रवाई की जाए।

महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों का उद्देश्य आध्यात्मिकता और सामाजिक सौहार्द्र को बढ़ावा देना होता है, न कि अराजकता और भगदड़ जैसी त्रासदियों को जन्म देना। यह समय की मांग है कि प्रशासन और सरकार मिलकर इस समस्या का स्थायी समाधान निकालें। श्रद्धालुओं की सुरक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए, और इसके लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। अन्यथा, हम हर बार ऐसी दुखद घटनाओं पर केवल शोक व्यक्त करते रहेंगे, लेकिन असल समस्या का समाधान कभी नहीं होगा।

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