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समाज के असली नायक और चरित्र निर्माण के पथप्रदर्शक “शिक्षक”

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मोहन द्विवेदी

गाइ कावासाकी ने कहा है, “यदि आपको किसी को ऊंचे स्थान पर रखना है, तो शिक्षकों को रखें। वे समाज के असली नायक हैं।” भारत में हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस पर हम अपने शिक्षकों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होंने अपने छात्रों के लिए कर्तव्यनिष्ठा से काम किया है। इस अवसर पर हम उन शिक्षकों को सम्मानित करते हैं, जिन्होंने अपने विद्यार्थियों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए। लेकिन इसी समय, कुछ ऐसे शिक्षकों का भी स्मरण होता है, जिनकी अनुचित गतिविधियों और नकारात्मक सोच के कारण पूरे शिक्षक समुदाय को आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य चरित्र निर्माण होता है, जिससे व्यक्ति में साहस, दृढ़ता, बुद्धिमत्ता और विवेक का विकास होता है। इन गुणों के साथ ही व्यक्ति अपने लक्ष्यों की ओर अग्रसर होता है।

संस्कृत साहित्य में कहा गया है, “वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च। अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततः तु हतो हतः॥”, जिसका अर्थ है कि चरित्र की रक्षा यत्नपूर्वक करनी चाहिए, क्योंकि धन तो आता-जाता रहता है, परंतु यदि चरित्र नष्ट हो जाता है, तो सब कुछ नष्ट हो जाता है। दुर्भाग्यवश, हम हर साल ऐसे मामलों का सामना करते हैं, जहां कुछ शिक्षकों के अनैतिक आचरण से पूरे शिक्षकीय समाज पर सवाल उठते हैं। 

आज के शिक्षकों के सामने एक चुनौती यह भी है कि वे अपने छात्रों में न केवल उच्च सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का संचार करें, बल्कि उन्हें जीवन के संघर्षों से निपटने की भी ताकत और साहस दें। अध्यापकों की जिम्मेदारी केवल पढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें अपने छात्रों के समग्र विकास के लिए विभिन्न गतिविधियों में भी शामिल करना होता है। हालांकि, बीते कुछ वर्षों में शिक्षा व्यवस्था में भारी बदलाव आया है, जिससे अध्यापकों पर अतिरिक्त दबाव बढ़ा है। 

आज स्कूलों में पाठ्यक्रम अत्यधिक भारी हो गए हैं। छोटे बच्चों का बस्ता अत्यधिक भारी होता है और प्राइमरी स्कूलों में अध्यापकों की कमी है। इसके साथ ही, बच्चों के लिए भ्रमण कार्यक्रमों का अभाव भी उनके सर्वांगीण विकास को प्रभावित करता है। खेल, वाद-विवाद, भाषण, संगीत जैसी गतिविधियों का आयोजन भी केवल औपचारिकता बन कर रह गया है, जिससे हम वास्तविक शैक्षिक लक्ष्यों से बहुत दूर हैं। 

लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद हमें आगे बढ़ना है। एक अच्छे शिक्षक की पहचान विनम्रता, धैर्य और दृढ़ता से होती है। शिक्षक में यह क्षमता होनी चाहिए कि वह बच्चों को जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार कर सके और उनका सही मार्गदर्शन कर सके। तभी शिक्षक समाज में सार्थक बदलाव ला सकते हैं और अपने छात्रों के आदर्श बन सकते हैं।

शिक्षक दिवस की शुरुआत

भारत में शिक्षक दिवस की शुरुआत 1962 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के अवसर पर की गई थी। डॉ. राधाकृष्णन एक महान शिक्षक, दार्शनिक और भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे। जब उनके कुछ शिष्यों ने उनका जन्मदिन मनाने की इच्छा जताई, तो उन्होंने कहा कि उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाना ही उनके लिए सबसे बड़ा सम्मान होगा।

अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस 

विश्व स्तर पर शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को मनाया जाता है। इसे संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा 1994 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षकों के योगदान को सम्मानित करना और उनकी भूमिका पर ध्यान केंद्रित करना है।

शिक्षकों के बिना जीवन अधूरा है। हर व्यक्ति के जीवन में एक गुरु या शिक्षक का होना आवश्यक है। हमें हमेशा शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए और उनकी सीखों को अपने जीवन में उतारना चाहिए। हमारे जीवन में कई शिक्षक आते हैं, जो विभिन्न तरीकों से हमारा मार्गदर्शन करते हैं और हमें जीवन की कठिनाइयों के लिए तैयार करते हैं। जब एक विद्यार्थी अपने शिक्षक से यह कहता है कि “आपके कारण मैं इस मुकाम तक पहुंचा हूं”, तो यह उस शिक्षक के लिए सबसे बड़ी प्रशंसा होती है।

शिक्षक दिवस का मुख्य उद्देश्य शिक्षकों के महत्व और उनकी भूमिका पर ध्यान केंद्रित करना है। शिक्षक समाज का वह स्तंभ हैं जो केवल अकादमिक ज्ञान नहीं देते, बल्कि छात्रों में अनुशासन, नैतिकता और जीवन की दिशा भी तय करने में मदद करते हैं। शिक्षक समाज में प्रेरणा के स्रोत होते हैं और आने वाली पीढ़ियों को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं।

अलग-अलग देशों में शिक्षक दिवस

भारत में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है, लेकिन दुनिया के विभिन्न हिस्सों में इसे अलग-अलग तारीखों पर मनाया जाता है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में शिक्षक सप्ताह मई के पहले मंगलवार को मनाया जाता है। चीन में शिक्षक दिवस 10 सितंबर को होता है, जबकि थाईलैंड में यह 16 जनवरी को मनाया जाता है।

डॉ. राधाकृष्णन का शिक्षा दर्शन 

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने शिक्षा को जीवन की नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम माना। वे शिक्षा को केवल नौकरियों या व्यवसाय के लिए नहीं, बल्कि व्यक्ति को समग्र रूप से विकसित करने का साधन मानते थे। उनका मानना था कि एक शिक्षक का कार्य केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि छात्रों को स्वतंत्र विचारक बनाना है।

शिक्षक दिवस का सांस्कृतिक महत्व

शिक्षक दिवस न केवल शिक्षकों को सम्मानित करने का दिन है, बल्कि यह दिन छात्रों और शिक्षकों के बीच के अनूठे संबंध को भी दर्शाता है। इस दिन छात्र अपने शिक्षकों के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं, जो इस दिन को और भी विशेष बनाता है।

इस शिक्षक दिवस पर, सभी शिक्षकों, विद्यार्थियों और “समाचार दर्पण 24” के पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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