अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
यदि आपको पता चले कि मेडिकल की पढ़ाई के दौरान जिस कंकाल की मदद से आपको शिक्षा दी जा रही है, वह एक बच्ची का कंकाल है जिसका नाम और जीवन बहुत प्यारा था, तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी? यह बच्ची उन लोगों में शामिल थी जिन्हें राज्य की पुलिस ने कुछ दशक पहले केवल इसलिए बम से उड़ा दिया था क्योंकि वे काले थे और अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे थे। कोविड-19 के दौरान अमेरिका की पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में फोरेंसिक एंथ्रोपोलॉजी के ऑनलाइन कोर्स के दौरान यही हुआ। एक शिक्षक ने बताया कि पढ़ाने के लिए जिन हड्डियों का इस्तेमाल किया जा रहा था, वे अब भी ‘जूसी’ (juicy) हैं।
इस घटना के बाद छात्रों और ब्लैक अधिकारों से जुड़े संगठनों ने प्रदर्शन किया। तब पता चला कि यह ‘ट्री अफ्रीका’ नाम की उस बच्ची के कंकाल की हड्डी थी जिसके माता-पिता ‘मूव’ (MOVE) आंदोलन से जुड़े थे। ‘ब्लैक पैंथर’ आंदोलन के खत्म होने के बाद यह आंदोलन अस्तित्व में आया था।
13 मई 1985 को अमेरिका के फिलाडेल्फिया में ‘मूव’ के हेडक्वार्टर को करीब 500 पुलिसकर्मियों ने घेर लिया। उन्होंने बिजली और पानी की सप्लाई काट दी और समर्पण के लिए बाध्य करने का प्रयास किया। जब ‘मूव’ सदस्यों ने समर्पण करने से मना कर दिया, तो पुलिस ने हेलीकॉप्टर से बम गिराकर उनके घर को नेस्तनाबूद कर दिया। इस हमले में 13 लोग मारे गए, जिनमें 5 बच्चे थे। बाद में इनकी अस्थियों को राज्य ने उनके परिवार वालों को न देकर खुद जब्त कर लिया और बाद में इन्हें फिलाडेल्फिया स्थित ‘पेन म्यूज़ियम’ (The Penn Museum) को सौंप दिया। वहाँ इनका इस्तेमाल गोरे लोगों को ‘शिक्षित’ करने में किया जाता रहा।
इस घटना ने यह साबित कर दिया कि काले लोगों के जीवन और मृत्यु का कोई सम्मान नहीं किया जाता। उनकी मौत के बाद भी उनका शोषण जारी रहता है। उनकी अस्थियां म्यूजियम में कैद रहती हैं। इस पूरे घटनाक्रम पर आधारित एक डाक्यूमेंट्री ‘Let the Fire Burn’ देखी जा सकती है। पेन म्यूज़ियम जैसी दुनिया के कई म्यूज़ियम में हजारों की संख्या में कंकाल और हड्डियां रखी हुई हैं, जो गुलामों और काले लोगों की हैं, जो अब भी सम्मानजनक विदाई का इंतजार कर रही हैं। ये म्यूज़ियम मानव विकास का निर्दोष इतिहास नहीं बल्कि बर्बर इतिहास की जानकारी देते हैं। इस विषय पर ‘Bone Rooms: From Scientific Racism to Human Prehistory in Museums’ नामक किताब के माध्यम से आप इतिहास की एक दुखदाई यात्रा कर सकते हैं।
1 जून 2020 को कनाडा में वहाँ के मूल निवासियों के 215 बच्चों के कंकाल मिले थे, जिन्हें उनके मां-बाप से छीनकर एक कैथोलिक होस्टल में रखा गया था ताकि उन्हें ‘सभ्य नागरिक’ बनाया जा सके। यहाँ इन बच्चों पर ‘कैलोरी-प्रयोग’ (calorie experiment) किया जा रहा था, जिसके तहत उन्हें बहुत कम भोजन दिया जाता था। इसी कारण उनकी मौत हो गई। आज हमें कैलोरी के बारे में जो भी जानकारी है, उसके पीछे इन मासूमों की मौत को नहीं भूलना चाहिए।
1994 में जब नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने फ्रांस से ‘बार्टमन’ (Baartman) नामक अफ्रीकी महिला की अस्थियां लौटाने को कहा, जो फ्रांस के एक म्यूजियम में पिछले 150 सालों से कैद थीं और वहाँ भी गोरे लोगों को ‘शिक्षित’ करने का साधन थीं। नेल्सन मंडेला के आग्रह के बाद 2002 में ‘बार्टमन’ की अस्थियां वापस उनके देश दक्षिण अफ्रीका भेजी गईं और उन्हें सम्मानपूर्वक दफनाया गया। इस घटना के बाद लोगों को इतिहास के इस भयावह पक्ष के बारे में जानकारी मिली।
अमेरिका में तो मेडिकल साइंस का विकास और भी भयानक है। रात के अंधेरे में चोरी से कब्र से काले लोगों का मृत शरीर निकाल कर उसे चीर-फाड़ कर अध्ययन किया जाता था क्योंकि गोरे लोगों का शव निकालना असंभव था। इसे महापाप माना जाता था।
आधुनिक गायनोकॉलोजी (gynecology) भी पूरी तरह गुलाम काली महिलाओं के शरीर पर हुए क्रूर प्रयोगों पर आधारित है। बड़े-बड़े प्रायोगिक सर्जिकल ऑपरेशन बिना एनस्थीसिया के गुलाम काली महिलाओं को चेन से बांधकर किए जाते थे।
1932-72 के बीच काले अफ्रीकी लोगों पर किए गए ‘Tuskegee Syphilis Study’ को कौन भूल सकता है, जिसमें सिफलिस नामक भयंकर बीमारी से पीड़ित मरीजों का इलाज न करके उन्हें लगातार तड़पाया जाता था ताकि बीमारी के विकास के हर चरण का अवलोकन किया जा सके। सिफलिस से पीड़ित काले लोगों को लगता था कि उनका इलाज हो रहा है, लेकिन ऐसा नहीं था।
दवा कंपनियों ने अपनी दवाओं के प्रयोग के लिए कितने काले, अफ्रीकी, एशियाई लोगों की जान ली है, यह इतिहास का एक भयावह पक्ष है जिस पर अभी बहुत कम बात हुई है। ‘हैरिएट ए वाशिंगटन’ (Harriet A. Washington) की मशहूर किताब ‘Medical Apartheid’ में हमें इसकी एक झलक मिलती है।
दुनिया की तमाम दौलत और चकाचौंध हमारे खून-पसीने से है, और इसी तरह दुनिया का तमाम ज्ञान-विज्ञान भी हमारे ही खून-पसीने से सींचा गया है। यही दुनिया का सबसे बड़ा और अटल ज्ञान है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."