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देवरिया

श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिन भक्तों को प्रहलाद की कथा सुनाई गई

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इरफान अली लारी की रिपोर्ट

देवरिया। सलेमपुर नगर पंचायत कार्यालय के समीप चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिन कथा वाचक आचार्य श्याम बिहारी चतुर्वेदी ने भक्तों को प्रहलाद की कथा सुनाई।

उन्होंने कहा कि प्रहलाद के पिता ने उनको भगवान की भक्ति करने के लिए रोकने के लिए बहुत प्रयत्न किया, परंतु वह असफल रहा। जब प्रहलाद अपने गुरु के यहां पढ़ने के लिए गए तो वे दैत्य बालको से कहा की देखो हम सबको भगवान की पूजा अर्चना करना चाहिए यही जीवन का सार है,अन्यथा जीवन व्यर्थ है।

कथा वाचक आचार्य श्याम बिहारी चतुर्वेदी ने कहा कि जिसके साथ में भगवान है उसका संसार में कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

भगवान की भक्ति में ही शक्ति है। भागवत कथा सही मार्ग दिखाती है, भक्ति करनी है तो ध्रुव और भक्त प्रहलाद जैसी करो। भगवान ने प्रहलाद के लिए अवतार लेकर हिरण्कश्यप का वध किया था। यदि भक्ति सच्ची हो तो ईश्वरीय शक्ति अवश्य सहायता करती है। भागवत कथा सुनना और भगवान को अपने मन में बसाने से व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन आता है। भगवान हमेशा पने भक्त को पाना चाहते हैं। जितना भक्त भगवान के बिना अधूरा है उतना ही अधूरा भगवान भी भक्त के बिना है।

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उन्होंने कहा कि अहंकार, गर्व, घृणा और ईर्ष्या से मुक्त होने पर ही मनुष्य को ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। यदि हम संसार में पूरी तरह मोहग्रस्त और लिप्त रहते हुए सांसारिक जीवन जीते है तो हमारी सारी भक्ति एक दिखावा ही रह जाएगी। भागवत कथा में प्रहलाद चरित्र पुत्र एवं पिता के संबंध को प्रदर्शित करता है और बताता है कि यदि भक्त सच्चा हो तो विपरीत परिस्थितियां भी उसे भगवान की भक्ति से विमुख नहीं सकता। भयानक राक्षस प्रवृत्ति के हिरण्यकश्यप जैसे पिता को प्राप्त करने के बावजूद भी प्रह्लाद ने अपनी ईश्वर भक्ति नहीं छोड़ी और सच्चे अर्थों में कहा जाए तो प्रह्लाद द्वारा अपने पुत्र होने का दायित्व भी निभाया गया। उन्होंने कहा कि पुत्र का यह सर्वोपरि दायित्व है कि यदि उसका पिता कुमार्गगामी और दुष्ट प्रवृत्ति का हो तो उसे भी सुमार्ग पर लाने के लिए सदैव प्रयास करने चाहिए। प्रह्लाद ने बिना भय के हिरण्यकश्यप के यहां रहते हुए ईश्वर की सत्ता को स्वीकार किया और पिता को भी उसकी ओर आने के लिए प्रेरित किया लेकिन राक्षस प्रवृत्ति के होने के चलते हिरण्यकश्यप प्रहलाद की बात को नहीं मानता। ऐसे में भगवान नरसिंह द्वारा उसका संघार हुआ उसके बाद भी प्रह्लाद ने अपने पुत्र धर्म का निर्वहन किया और अपने पिता की सद्गति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की।

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इस दौरान अखिलेश पांडेय, धनंजय बरनवाल,अजय दुबे वत्स,अतुल श्रीवास्तव, सभासद अशोक गुप्ता, हरिश्चंद प्रसाद, डॉ. पीके दूबे, राजन यादव, विजय गुप्ता, हृदेश द्विवेदी आदि मौजूद रहे।

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Author:

Kamlesh Kumar Chaudhary

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