आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
लखनऊ: 13 सीटों पर निर्विरोध निर्वाचन के बाद विधान परिषद की गणित बदल गई है। कुछ दलों को झटका लगा है, वहीं कुछ की उम्मीदें मजबूत हुई हैं।
सहयोगी के साथ सीटें साझा करने के चलते भाजपा की अपनी सदस्य संख्या कम हो गई है। वहीं, सपा ने सदन में 1/10 सदस्य का आंकड़ा छू लिया है। ऐसे में उसके पार नेता प्रतिपक्ष का पद फिर आएगा।
बसपा विधान परिषद में शून्य हो गई है। विधान परिषद में भाजपा के पहले 82 सदस्य थे। इसमें 10 का कार्यकाल पूरा हो गया। एक सीट उसके सहयोगी अपना दल की खाली हुई थी।
संख्या बल के हिसाब से भाजपा के 10 सदस्य चुने जा सकते थे, लेकिन उसने एक-एक सीटें अपना दल-एस, सुभासपा व रालोद को दे दीं। इसलिए, उसके 7 सदस्य ही पहुंचे और सदस्य संख्या 79 हो गई है।
बसपा के पास विधानसभा में महज 1 सीट है, इसलिए परिषद में खाली हुई सीट पर निर्वाचन तो दूर नामांकन तक संभव नहीं था। ऐसे में उच्च सदन से वह साफ हो गई है। इससे पहले जुलाई, 2022 में कांग्रेस परिषद में शून्य हो चुकी है।
20 महीने बाद दोनों सदनों में होगा नेता प्रतिपक्ष
सदन में किसी भी पार्टी को नेता प्रतिपक्ष का ओहदा हासिल करने के लिए कुल सदस्य संख्या के 1/10 सदस्य होने चाहिए। जुलाई 2022 में सपा की सदस्य संख्या घटकर 9 हो गई थी। इसके बाद सभापति ने सपा की नेता प्रतिपक्ष की मान्यता खत्म कर दी थी। उस समय लाल बिहारी यादव नेता प्रतिपक्ष थे। हाल में जो 13 सीटें खाली हुईं, उसमें सपा की भी एक सीट थी। वहीं, स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस्तीफा दे दिया था। इसलिए, सपा की सीटें घटकर 7 रह गई थीं। 3 सदस्यों के निर्विरोध निर्वाचन के बाद अब सपा के 10 सदस्य हो गए हैं। सपा के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी का कहना है, ‘नेता प्रतिपक्ष की मान्यता के लिए आवश्यक सदस्य संख्या का मानक पार्टी ने पूरा कर लिया है। जल्द इसके लिए सभापति के समक्ष आवेदन किया जाएगा।’ करीब 20 महीने बाद अब दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष होगा।
परिषद की गणित
भाजपा : 79
सपा : 10
निर्दल : 04
अपना दल (एस) : 01
निषाद पार्टी : 01
सुभासपा : 01
रालोद : 01
जनसत्ता दल : 01
शिक्षक दल (गैर राजनीतिक) : 01
रिक्त : 01
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."