अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
घोसी उपचुनाव के लिए मतदान से ठीक एक दिन पहले लखनऊ के 10, मॉल एवेन्यू में मेले जैसा दृश्य था। सुबह-सुबह लखनऊ पहुंचे नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय को अस्पताल में भर्ती उस महिला सिपाही से मिलने जाना था, जो सरयू एक्सप्रेस में 30 अगस्त की सुबह संदिग्ध परिस्थितियों में खून से लथपथ पाई गई थी। उस सुबह कांग्रेस कार्यालय को तीन तरफ से बैरिकेड लगाकर पुलिस ने घेर रखा था और केवल एक गाड़ी को जाने की अनुमति थी। यह सूचना लेकर जब कुछ कार्यकर्ता अजय राय के पास पहुंचे तो उन्होंने सख्त लहजे में कहा, “बोल दीजिए उनसे, हमें रोकेंगे तो टकराहट हो जाएगी। कोई धरना-प्रदर्शन करने हम थोड़े जा रहे हैं! ये-वो मत करें, अब पुरानी चीजें नहीं चलेंगी।”
‘पुरानी’ चीजों से राय का इशारा कुछ महीने पहले तक यूपी कांग्रेस में तकरीबन चलन बन चुकी गिरफ्तारियों और दमन की ओर था, जब कांग्रेस कार्यालय से बाहर कदम रखते ही अध्यक्ष और कार्यकर्ताओं को पुलिस उठा लेती थी। पूर्व पीसीसी अध्यक्ष अजय कुमार ‘लल्लू’ को लोगों ने राजनीतिक मंचों पर उतना नहीं, जितना सड़क पर पुलिस की लाठी खाते हुए या सिपाहियों के हाथों टंगे हुए देखा था। इसके ठीक उलट, यूपी विधानसभा चुनाव के बाद जब बृजलाल खाबरी को प्रदेश कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनाया गया, तो सूबे की सड़कें सूनी हो गईं। खाबरी जितना सियासी हलचलों से बेखबर रहे, उतना ही कांग्रेस के कार्यकर्ता अपने अध्यक्ष से भी बेखबर रहे। बहुजन समाज पार्टी से आयात किए गए अध्यक्ष बृजलाल खाबरी के राज में यूपी कांग्रेस के भीतर संघर्ष का दौर कोई एक साल के लिए ठप पड़ गया था। शायद इसी को देखते हुए एक बार फिर आलाकमान ने बीते 17 अगस्त को नेतृत्व परिवर्तन किया और अजय राय को नया अध्यक्ष बनाया।
दो बार नरेंद्र मोदी को चुनावी टक्कर दे चुके ‘काशी की राय’ (अजय राय का ट्विटर अकाउंट) को पीसीसी अध्यक्ष बनाए जाने के महीने भर के भीतर कांग्रेस की सूरत बहुत हद तक बदली सी दिखती है। इसकी गवाही लखनऊ में कांग्रेस मुख्यालय का परिसर दे रहा है जहां गुजरे जमाने के भूले-भटके बुजुर्ग-पुराने कांग्रेसी फिर से उमड़ रहे हैं। बाराबंकी से आए एक पुराने कांग्रेसी और वकील इस बात को साफ स्वीकार करते हैं कि पिछले कुछ साल तक वे राजनीतिक रूप से बिलकुल निष्क्रिय पड़े रहे थे। वे कहते हैं, “मैं आज इसलिए आया हूं क्योंकि अब राय साहब अध्यक्ष हैं।”
घोसी का उपचुनाव
नए कांग्रेस अध्यक्ष के कारण उपजी इस नई सांगठनिक ऊर्जा का सुबूत घोसी उपचुनाव के परिणाम में देखने को मिला है, जहां कांग्रेस समर्थित समाजवादी प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने भारी मतों से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी और पूर्व मंत्री दारा सिंह चौहान को हरा दिया है। चौहान के प्रचार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित तकरीबन पूरी यूपी कैबिनेट (26 मंत्री और 60 विधायक) मैदान में उतरी थी। भाजपा ने राजभर मतदाताओं को साधने के लिए ओमप्रकाश राजभर, निषादों के लिए संजय निषाद, भूमिहारों के लिए एके शर्मा, कुर्मियों के लिए स्वतंत्रदेव सिंह और आशीष पटेल, ब्राह्मणों के लिए ब्रजेश पाठक, मौर्य-कुशवाहा के लिए केशव प्रसाद मौर्य और पसमांदा के लिए दानिश अंसारी को घोसी में प्रचार के लिए उतारा था। आरोप हैं कि मुसलमानों और यादवों को वोट देने से रोका गया, मतदाता सूची में से कई के नाम काट दिए गए, आखिरी चरण में कुछ ग्राम प्रधानों को उठवा लिया गया, इसके बावजूद भाजपा 42,000 से ज्यादा वोटों से हार गई।
चुनाव परिणाम के बाद ओमप्रकाश राजभर की पार्टी की ओर से वोटों का एक गणित प्रचारित किया गया, जिसमें जातिवार दोनों प्रत्याशियों को मिले वोटों का विवरण है। उस विवरण को देखें, तो पता चलता है कि एक दौर में बसपा ने जैसी सामाजिक गोलबंदी की थी और 2017 के विधानसभा चुनाव में बिलकुल उसी तर्ज पर भाजपा ने गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव एससी के बीच जैसी सोशल इंजीनियरिंग काम किया, वह अब पलटवार कर रहा है। गठबंधन प्रत्याशी सुधाकर सिंह को हर जाति समूह के वोट मिले हैं। खासकर, ध्यान देने वाली बात सवर्णों और दलित वोटों की है, जिसमें राजपूतों और ब्राह्मणों ने 80 प्रतिशत से ज्यादा वोट गठबंधन प्रत्याशी को दिए हैं। करीब आधे वोट भूमिहारों के भी सुधाकर सिंह को गए। दलित वोटों का औसतन 40 प्रतिशत हिस्सा सुधाकर सिंह के खाते में गया है, जो बसपा के लिए चिंताजनक है क्योंकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने घोसी उपचुनाव में अपने लोगों से नोटा का बटन दबाने की अपील की थी।
यूपी कांग्रेस अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष शाहनवाज आलम घोसी के परिणामों का आकलन करते हुए कहते हैं कि “अच्छा हुआ सपा ने किसी यादव को नहीं खड़ा किया।” उनका मानना है कि करीब 15 प्रतिशत सवर्ण, 10 प्रतिशत यादव और 10 प्रतिशत दलित, यादव प्रत्याशी को हराने के लिए किसी को भी वोट कर सकते हैं। इसी वोट ने मिलकर सुधाकर सिंह का बड़ा मार्जिन बनाया है। वे कहते हैं कि यूपी की राजनीति पिछले कुछ साल से सपा-विरोधी वोटों के एक जगह इकट्ठा हो जाने पर केंद्रित रही है। यह पैटर्न घोसी में टूटा है और इसकी बड़ी वजह गैर-यादव प्रत्याशी और कांग्रेस का उसे समर्थन है।
शाहनवाज कहते हैं कि घोसी में अगर सपा पांच-दस हजार वोटों से जीती होती तो माना जाता कि यह विशुद्ध सपा की जीत है। घोसी की जीत इसी लिहाज से भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग के बिखरने का संकेत है। इसका सबक यह है कि विपक्ष यानी ‘इंडिया’ गठबंधन का जो भी प्रत्याशी आए, उसे हर बिरादरी से होना होगा। यही वह बिंदु है जहां कांग्रेस की भूमिका ‘इंडिया’ गठबंधन के लिए यूपी में अहम हो जाती है और यहीं नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की असली चुनौती भी है। इसीलिए, लोकसभा चुनाव में ‘इंडिया’ की कामयाबी का दारोमदार प्रदेश कांग्रेस के चेहरे जितना ही कांग्रेस संगठन के ऊपर भी है।
संगठन निर्माण पर जोर
आम तौर से लोगों में यह धारणा है और बार-बार इसे पुष्ट भी किया जाता रहा है कि कांग्रेस के पास यूपी में कोई संगठन नहीं है। नए अध्यक्ष अजय राय इस बात को नकारते हैं। वे मानते हैं कि यूपी के जिलों में संगठन ‘टाइट’ है, बस थोड़ा रद्दोबदल की जरूरत है जिसे जल्द ही अंजाम दिया जाएगा। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संगठन सचिव अनिल यादव का मानना है कि संगठन और वोट दो अलग-अलग चीजें हैं। बहुत सारी पार्टियां हैं जिन्होंने बहुत अच्छे संगठन बनाए लेकिन वोट नहीं ले पाए। शाहनवाज की राय इस मामले में अलहदा है, “कांग्रेस मास सेन्टिमेंट की पार्टी रही है, कोई संगठन नहीं।”
कह सकते हैं कि अजय राय के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद यह ‘मास सेन्टिमेंट’ कांग्रेस और ‘इंडिया’ गठबंधन के हक में जाता दिख रहा है। इसे नापने का कोई ठोस पैमाना भले न हो, लेकिन लंबे समय से सोये पड़े कांग्रेसियों का अचानक जागना एक संकेत जरूर है। बेशक, ऐसे पुराने कांग्रेसियों को आंख मूंदकर पार्टी में लेने से परहेज किया जा रहा है। अनिल यादव कहते हैं, “जिन लोगों ने पार्टी को कोई भी नुकसान पहुंचाया है, किसी भी तरह से, उनकी वापसी अब संभव नहीं है।” इसके बावजूद, संगठन निर्माण की प्रक्रिया में पार्टी किसी को नकार नहीं रही है।
यादव कहते हैं, “पुराने लोगों को हम प्रदेश की कमेटियों में समायोजित करेंगे, अस्सी सीटों पर लोगों को तैनात करेंगे। लक्ष्य है कि एक महीने में हम पूरी पीसीसी देंगे, लगभग 30-40 जिलों के अध्यक्ष बदले जाएंगे। फिर जिला कमेटी, ब्लॉक कमेटी को इस काम में लगा देंगे कि वे समीक्षा बैठक कर के टिकाऊ लोगों को रखें और बाकी को हटाएं।”
यादव मानते हैं कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस में जब निर्मल खत्री अध्यक्ष थे, तब संगठन पर कुछ काम हुआ था। जब प्रियंका गांधी यहां आईं, तो उन्होंने किसी बड़े नेता को महासचिव बनाने की परंपरा खत्म कर दी और सचिव बनाए। सचिवों से कहा गया कि वे अपने क्षेत्र में जाएं और हर जिले से जिलाध्यक्ष के लिए दस-बारह नाम लेकर आएं। अनिल बताते हैं कि कुल 1200 से ज्यादा नाम केवल जिलाध्यक्षों के लिए आए थे। हर जिले के अध्यक्ष के लिए तीन-चार नाम छांटे गए। फिर संगठन के भीतर, जमीनी कार्यकर्ताओं से, पत्रकारों से, सामाजिक कार्यकर्ताओं से अंतिम राय मांगी गई।
यूपी पीसीसी परंपरागत रूप से चार-पांच सौ लोगों की होती थी। प्रियंका गांधी के आने के बाद पहली कमेटी पचास लोगों की बनी, दो उपाध्यक्ष बने जो बाद में बढ़कर आठ हो गए और कमेटी 126 से ऊपर नहीं गई। प्राथमिकता यह थी कि टीम छोटी रहे ताकि जिम्मेदारियों का बंटवारा हो सके। निचले स्तर पर पीसीसी के पुनर्गठन के लिए संगठन सृजन अभियान के नाम से एक अभियान शुरू किया गया।
अनिल यादव बताते हैं, “पहले जो लोग जिला कमेटी के इर्द-गिर्द घूमते थे वे पदाधिकारी बन जाते थे। उस परंपरा को खत्म किया गया। इसके लिए एक मॉडल पर हमने काम किया- एक जिलाध्यक्ष, पांच उपाध्यक्ष, जितनी विधानसभाएं उतने महासचिव, जितने ब्लॉक उतने सचिव, एक कोषाध्यक्ष और एक जिला प्रवक्ता।”
चुनावी प्रोग्राम का सवाल
अगर एक महीने के भीतर कांग्रेस अपने संगठन को दुरुस्त कर भी लेगी, तो प्रदेश स्तर पर संगठन का प्रोग्राम क्या होगा? अजय राय ऐसे हर सवाल का केवल एक जवाब देते हैं, “संघर्ष।” संगठन में हालांकि कुछ ठोस प्रोग्राम लोकसभा चुनाव के मद्देनजर तैयार किए जा रहे हैं। ये प्रोग्राम तीन-चार किस्म के हैं।
पहला, दलित संपर्क का एक बड़ा कार्यक्रम है जो संभवत: दलित गौरव महासंपर्क या महासंवाद अभियान के नाम से चलाया जाना है। हर विधानसभा में 100 प्रभावशाली दलितों से पार्टी संपर्क करेगी, खासकर ऐसे लोग जो बसपा के पुराने काडर हैं जो हताश-निराश बैठे हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस पार्टी यूपी में लगभग ऐसे चार लाख दलित बौद्धिकों से संवाद करेगी और पार्टी में उन्हें जोड़ने के लिए सम्मेलन करेगी।
अब तक जातिगत जनगणना पर कांग्रेस ने प्रदेश के 18 मंडलों में सम्मेेलन करवाया है। अनिल यादव के मुताबिक हर मंडल में पांच सौ से हजार लोगों को पार्टी ने रीचआउट किया है। अब जाति जनगणना पर एक प्रदेशस्तरीय सम्मेलन का कार्यक्रम प्रस्तावित है।
इसके अलावा, प्रदेश कांग्रेस की योजना किसानों के लिए एक अभियान शुरू करने की है। पूरे पूर्वांचल और बुंदेलखंड में सूखे की स्थिति है। इसे देखते हुए एक अभियान चलाने की योजना है जिसमें सरकार से पूरे प्रदेश को सूखाग्रस्त घोषित करने और किसानों को मुआवजा देने की मांग की जाएगी।
बसपा की पहेली
संगठन और प्रोग्राम के स्तर पर खुद को मजबूत करने में लगी यूपी कांग्रेस, सपा और राष्ट्रीय लोकदल के बीच लोकसभा की सीटों का बंटवारा और बसपा के साथ आगामी चुनावी रिश्ते- ये दो सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है। अतीत गवाह है कि अंत में सारी कहानी यहीं पर आकर फंसती है। इन सवालों पर अजय राय स्पष्ट कहते हैं कि ये सब मसले राष्ट्रीय नेतृत्व तय करेगा।
लंबे समय से ट्विटर के माध्यम से अपनी राजनीति चला रही पार्टी सुप्रीमो मायावती ने घोसी उपचुनाव परिणाम के पांच दिन बाद तक उस पर एक शब्द नहीं लिखा था। ‘इंडिया’ गठबंधन की पहली चुनावी जीत पर उनकी यह रहस्यमय चुप्पी ही यूपी की राजनीति को अप्रत्याशित बनाती है। माना जा रहा है कि संसद के विशेष सत्र के बाद यह चुप्पी शायद टूटे और यूपी का चुनावी धुंधलका धीरे-धीरे साफ हो।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."