google.com, pub-2721071185451024, DIRECT, f08c47fec0942fa0
जिंदगी एक सफर

9 साल की उम्र में मां की मौत, 15 साल की उम्र में शादी,19 साल की उम्र में 2 बच्चे, 21 साल की उम्र में तलाक और अब खतरों से रोज खेलती हैं

IMG-20250425-WA1484(1)
IMG-20250425-WA0826
IMG-20250502-WA0000
Light Blue Modern Hospital Brochure_20250505_010416_0000
IMG_COM_202505222101103700

सुहानी परिहार की रिपोर्ट 

“पैदा होने के साथ ही स्ट्रगल शुरू हो गया। मैंने एक दिन में 500 रोटियां बनाईं, पैसों के लिए स्पा सेंटर में काम किया। शादियों में डांस किया।

कई दिनों तक लगातार भूखे रहना पड़ा। दो बच्चों का खर्चा-पानी… कहां से हो पाता। इंट्रेस्ट के हिसाब से मुझे काम नहीं मिला। हालात ने काम को अपना इंट्रेस्ट बनाने पर मजबूर कर दिया।

दरअसल, मेरे पास कोई चॉइस नहीं थी। ना तो बड़े खानदान की थी, और ना ही पैसों वाली। औरत और आदमी ने अपना एक अलग दायरा बना लिया है। मुझे इससे आगे निकलना था। सिर्फ ये मेरे हाथ में था… और फिर यहां से शुरू होती है मेरे स्टंट वुमन बनने की कहानी।

आग में कूदना। आग की लपटों के बीच कार की रेस लगाना। बाइक चलाना। स्टंट के लिए शरीर को आग के हवाले करना। 100-200 फीट की ऊंचाई से नीचे जाना। ऊंची बिल्डिंग से गिरना। छलांग लगाना… फिल्मों में एक्ट्रेस जो काम नहीं कर सकती हैं। रिस्क नहीं ले सकती हैं। वो मैं करती हूं।

जब स्टंट वुमन गीता टंडन अपने काम और जिंदगी से रूबरू कराना शुरू करती हैं, तो सामने फिल्मों में आग की लपटों के बीच दौड़ती कार, बाइक, एक्ट्रेस का सीन तैरने लगता है।

गीता कहती हैं, ‘लोग फिल्मों में हमारे स्टंट को देखकर डरते हैं। एंजॉय करते हैं, और चिल्लाते भी हैं। लेकिन वो हम करते हैं। कई बार चेहरे और हाथ जल जाते हैं। हड्डियां टूट जाती हैं। कई महीनों तक बेड पर पड़ी रहती हूं। ये काम पिछले 14 साल से कर रही हूं। इसी ने पहचान दी है।

‘खतरों के खिलाड़ी सीजन-5’ में बतौर कंटेस्टेंट पार्टिसिपेट किया था। मेरा काम ही खतरों से खेलना है। ये ऐसा मौत का दरिया है, जिसका इंश्योरेंस नहीं होता, क्योंकि हम अपनी जान खुद खतरे में डालते हैं।’

गीता अपनी जिंदगी के शुरुआती दिनों में लेकर चलती हैं। सिलसिलेवार तरीके से अपनी कहानी बताती हैं, जिसे शेयर करते हुए आज भी वो ठहर जाती हैं। कई बार अपने आंसुओं को चाहकर भी नहीं रोक पाती हैं।

गीता दबी आवाज में कहना शुरू करती हैं, ‘राजस्थान के कोटा में पैदा होने के साथ ही पापा मुंबई शिफ्ट हो गए थे। 1994 में मां की मौत हो गई, तब 9 साल की थी। सच कहूं तो मेरी लाइफ तभी से शुरू हुई।

मां जब थी तब तो अगल-बगल के अंकल-आंटी भी खूब प्यार करते थे। हाल-चाल पूछ लेते थे, लेकिन मां के जाने के बाद कोई नहीं था, जो हम दो भाई और दो बहनों को दुलार ले।

हम लोगों को घर पर छोड़कर पापा काम पर चले जाते थे। कोई नहीं होता था, जो हम भाई-बहनों का ख्याल रख सके। खुद से खाना बनाना और खाना। इतनी कम उम्र में ही पता चल गया कि जितना काम करोगे, खाना उतना ही मिलेगा।

जब 15 साल की हुई, तो आस-पड़ोस के लोग पापा से कहने लगे, ‘बेटी बड़ी हो गई है। शादी करवा दो’, लेकिन पापा नहीं चाहते थे कि मेरी शादी हो। हालांकि, उन्हें भी लगा कि अच्छा परिवार मिलेगा, तो मेरी किस्मत बदल जाएगी और मुझे भी यही लगा।’

गीता कहती हैं, ‘शादी से पहले सोचती थी, नया घर होगा। नए लोग और अच्छा खाना खाने को मिलेगा। पर ऐसा कुछ हुआ नहीं। ससुराल वाले प्रताड़ित करने लगे। कुछ साल तक ऐसा चलता रहा। मुझे लगा कि बच्चे होने के बाद शायद सब ठीक हो जाएगा, लेकिन कुछ नहीं बदला।

21 की उम्र बीत रही थी। एक दिन आत्महत्या करने का भी ख्याल आया, लेकिन मुझे पता था कि यदि मैं मर गई, तो जैसे हालात मेरे हैं, मेरे बच्चों का भी वही होगा।

दो बच्चों के साथ अपनी बहन के यहां रहने के लिए चली आई, लेकिन पति मार-पिटाई करके घर ले आता था। कहता था, ‘कौन है तुम्हारा। किसके पास रहोगी। यदि तुम अलग हो भी गई, तो गलत काम ही करोगी।’ लेकिन मैंने घर छोड़ने का फैसला कर लिया। कई दिनों तक गुरुद्वारे में रही। फिर बहन के यहां रहने लगी। मैं उतनी पढ़ी-लिखी नहीं हूं। कोई मुझे नौकरी नहीं देता था।

अपनी बहन के साथ हर रोज सुबह-सुबह ऑफिस के चक्कर लगाती थी कि कहीं कोई काम मिल जाए, लेकिन कई महीनों के बाद भी कोई काम नहीं मिला।

एक दिन चलते-चलते रास्ते में एक मेस दिखा। वहां रोटी बनाने का काम मिल गया। हर रोज 250 रोटियां सुबह और 250 रोटियां शाम को बनाती थी। यहां काम बस इसलिए करती थी कि घर पर भी खाना ले जा सकूं।

तब तक पापा को पैरालिसिस अटैक हो चुका था। कुछ महीने बाद हम लोग दूसरी जगह शिफ्ट हो गए। वहां देखती थी कि हर रोज कुछ लड़कियां तैयार होकर कहीं जाती थीं। एक दिन मैं भी उनके साथ चली गई। स्पा सेंटर में काम करना था। एक दिन में ही छोड़कर चली आई।

चलते वक्त उसके मालिक ने कहा, ‘पति है नहीं। क्या करोगी जिंदगी में इन चीजों के अलावा।’ सच कहूं तो उस दिन पूरी रात मैं सोचती रही कि क्या जिसका पति नहीं होता, तलाक हो जाता है,,पति-बच्चों की मौत हो जाती है। तो क्या एक औरत गलत काम करके ही पैसे कमा सकती है?

बड़ी मशक्कत के बाद मुझे एक काम मिला। जागरण की कोई शूटिंग थी, उसमें मुझे खड़े होना था। शाम को शूटिंग खत्म होने के बाद 400 रुपए मिले। मैं तो चौंक गई। वहीं पर मेरी पहचान कुछ ऐसे लोगों से हुई, जो फिल्मों में स्टंट करते थे।

उनमें से एक ने कहा, ‘तुम लड़कों जैसी हो। स्टंट का काम किया करो। पैसे भी मिलेंगे और काम भी।’ चूंकि नाचने का काम सीजन के हिसाब से होता था, तो मैंने उनकी कम्युनिटी जॉइन कर ली।

इसके बाद गीता ने स्टंट को बतौर करियर चुन लिया। वो कहती हैं, ‘बच्चों को घर में बंद करके शूटिंग पर जाती थी। घर का खर्च, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई सब कुछ इसी से चलने लगा। 2008 से स्टंट कर रही हूं। जिस वक्त इस इंडस्ट्री में आई थी, तो लड़कियों से स्टंट नहीं करवाए जाते थे। बहुत कम लोग थे। जब सेट पर स्टंट के लिए जाती थी, तो लोग बोलते थे, ‘लड़की है नहीं कर पाएगी।’

‘अब तक दो बार चेहरा जल चुका है। तीन बार स्पाइनल फ्रैक्चर हो चुका है, लेकिन मुझे पता है कि सिर्फ इसी काम में अपना 100% दे सकती हूं। इसी से घर चलता है।

आज कई सीरीज के लिए काम कर रही हूं। फायर ब्रिगेड बेस्ड स्टोरी आ रही है, उसमें स्टंट कर रही हूं। हिंदी फिल्मों, सीरियल्स के अलावा बंगाली और साउथ की फिल्मों में भी स्टंट करती हूं। मुझे एक्टिंग का भी शौक रहा है, लेकिन उस तरह के कभी अच्छे रोल नहीं मिले। यदि मिलेंगे तो जरूर करूंगी।’

104 पाठकों ने अब तक पढा
samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

[embedyt] https://www.youtube.com/embed?listType=playlist&list=UU7V4PbrEu9I94AdP4JOd2ug&layout=gallery[/embedyt]
Tags

samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की
Back to top button
Close
Close