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संत कबीर नगर

एक साथ एक ही परिवार मे 7 मौत पूरे गांव में नहीं मनी दीपावली ; हर चेहरा उदास और हर ओर बिखरी थीं मातमी लहर

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

संत कबीर नगर। “हादसा यूं गुजर गया कोई, जैसे हर घर में मर गया कोई” किसी शायर की कही गयी ये लाइनें ढोढ़ई गांव में पसरे सन्नाटे पर समीचीन बैठती है। जहां जल निगम में सहायक अभियंता व गांव के निवासी विनोद के पूरे परिवार की कार दुर्घटना में मौत हो गयी। पांच मौतों के बाद दीपोत्सव के बावजूद हर घर में सन्नाटा पसरा दिखा। गांव के हर व्यक्ति के चेहरे पर पसरी गम की लकीरें इस बात की गवाह थीं कि हर व्यक्ति इस घटना से खुद को जोड़ रहा है। विनोद के परिवार में अब कोई नहीं बचा है, लेकिन उनके घर पर उमड़ी भीड़ यह बता रही थी कि संकट की इस घड़ी में पूरा गांव एक साथ है। गांव के सभी लोगों ने यह निर्णय किया कि वह दीपावली पर अपने घर में दीप नहीं जलाएंगे और इस बार गांव में दीपावली पर दीप नहीं जले।

एक साथ सात मौतों से सदमे में हैं लोग

रविवार की रात ढोढ़ई गांव के लोगों के लिए तब गम की रात में तब्दील हो गयी, जब बस्ती जनपद के मुंडेरवा थाना क्षेत्र के खजौला पुलिस चौकी के पास हुई मार्ग दुर्घटना की जानकारी हुई। इसमें कार सवार गांव के निवासी और जल निगम लखनऊ में सहायक अभियंता विनोद कुमार (38) पुत्र बलिराज का पूरा परिवार काल के गाल में समा गया। विनोद अपनी मां सुरसती (67) पत्नी नीलम (35) बेटी श्रेया गौतम (14) तथा बेटे यथार्थ गौतम (13) के साथ दीपावली पर घर आ रहे थे। लखनऊ से पूरा रास्ता तो उन्होंने तय कर लिया लेकिन घर से मात्र 15 किलोमीटर दूरी पर हुई दुर्घटना में पूरा परिवार काल के गाल में समा गया।

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भांजे लवकुश ने दी मुखाग्नि तो सिसक उठे लोग

विनोद अपने परिवार के इकलौते वारिश थे। उनके अलावा उनके परिवार में एक बड़ी बहन उषा ही बची हैं। उनकी शादी जिले के तेनुहारी अव्वल (कटाई) गांव में हुई है। उषा के परिवार के सभी लोग रात में ही मौके पर पहुंच गए। परिवार के पांच लोगों को मुखाग्नि उषा के 21 वर्षीय पुत्र लवकुश कुमार ने दी तो सभी लोग अनायास ही सिसक उठे।

पिता की मौत के बाद मां को लखनऊ ले गए थे विनोद

विनोद के पिता बलिराज की मौत पिछले 14 सितंबर को हो गयी थी। पिता के ब्रह्मभोज के बाद घर में अकेली बची मां सुरसती को वह अपने साथ लखनऊ लेकर चले गए थे, ताकि उनकी सेवा में कोई कमी न रह जाए। उनके पट्टीदार डल्लू, गौरीशंकर, सुनील कुमार ने बताया कि उनकी सुरसती से फोन पर बात हुई थी तो उन्होंने बताया था कि दीपावली पर घर आएंगी। लेकिन उन्हें क्या पता था कि वह पूरे परिवार के साथ कफन में लिपटकर वापस लौटेंगी।

बीस वर्ष पूर्व हुई थी विनोद की शादी

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गांव के पूर्व प्रधान संतोष राणा बताते हैं कि विनोद का विवाह करीब 20 वर्ष पूर्व कोतवाली खलीलाबाद के बस्ती देवा गांव में नीलम देवी के साथ हुआ था। नीलम बहुत ही मिलनसार और कुशल गृहणी थीं। विनोद की नियुक्ति 2008 में लखनऊ में जल निगम के अवर अभियंता के रूप में हुई थी। वहां से उनका स्थानांतरण प्रयागराज हुआ और सहायक अभियंता बनने के बाद वे पांच वर्षों से लखनऊ में कार्यरत थे। वह इंदिरा नगर सेक्टर दो में निवास कर रहे थे।

हर महीने गांव आते थे विनोद

विनोद के पिता बलिराज को गांव से बहुत प्यार था। इसलिए वह अपनी पत्नी सुरसती के साथ गांव पर ही रहते थे। वहीं विनोद ने भी गांव व माता-पिता का मोह नहीं छोड़ा था। लखनऊ में रहने के बावजूद विनोद हर महीने गांव जरूर आते थे। माता-पिता तथा गांव के लोगों के साथ कुछ समय बिताने के बाद वापस चले जाते थे।

हर चेहरे पर दिखी गम की लकीरें

गांव में जो भी था उसके चेहरे पर गम की लकीरें साफ देखी जा सकती थीं। परिवार के लोगों को याद करके अनायास ही उनकी आंखों से आंसू आ जाता था। पूर्व प्रधान संतोष राणा कहते हैं कि विनोद के अन्दर करुणा, दया और प्रेम का संगम था। वह किसी को दुखी नहीं देख सकते थे। पट्टीदार व पड़ोसी डल्लू कहते हैं कि विनोद की मां सुरसती हमेशा सभी के सुख-दुख में भागीदार बनती थीं। लखनऊ जाते समय सारे पड़ोसियों से मिलकर गयी थीं और घर को देखने के लिए कहा था। बजरंगी की आखों से तो अनायास ही आंसू निकल जा रहे थे। वह कह रहे थे कि ऐसा लग रहा है कि उनके परिवार का ही कोई मर गया है। गौरीशंकर विनोद की मिलनसार प्रवृत्ति के कायल थे जबकि बजरंगी को विनोद के बच्चों से बहुत स्नेह था।

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samachardarpan24
Author: samachardarpan24

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