ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट
कानपुर में सीएमओ की कुर्सी पर कब्जे को लेकर हाईवोल्टेज ड्रामा। हाईकोर्ट के स्टे ऑर्डर के सहारे दफ्तर में घुसने वाले डॉ. हरिदत्त नेमी की दबंगई सिर्फ 30 घंटे चली। राज्य सरकार ने तुरंत सख्ती दिखाई और उन्हें पुलिस की मौजूदगी में बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब सीएमओ दफ्तर में पहरा कायम है।
हाईकोर्ट से स्टे का आदेश लेकर आए डॉ. हरिदत्त नेमी ने बुधवार को जब कानपुर के सीएमओ कार्यालय में कदम रखा, तो जैसे पूरा माहौल एक सत्ता परिवर्तन की स्क्रिप्ट में बदल गया। उनकी एंट्री फिल्मी थी— मुस्कुराते हुए, नेम प्लेट को निहारते हुए और बिना किसी संकोच के सीधे सीएमओ की कुर्सी पर कब्जा करते हुए। लेकिन, यह सत्ता केवल 30 घंटे ही टिक सकी। गुरुवार दोपहर को पुलिस की सख्त मौजूदगी में उन्हें उस कुर्सी से उठाकर बाहर कर दिया गया, जिस पर बैठने के लिए उन्होंने कानूनी आदेश का कवच ओढ़ा था।
योगी सरकार की सख्ती और सत्ता के समीकरण
दरअसल, डॉ. नेमी की ‘कमांडो स्टाइल’ ज्वाइनिंग से असहज हुई सरकार ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) पार्थसारथी सेन शर्मा ने राज्यपाल की स्वीकृति के साथ विभागीय जांच के आदेश जारी कर दिए। आदेश में स्पष्ट निर्देश थे कि डॉ. नेमी से किसी भी दस्तावेज पर हस्ताक्षर न कराए जाएं। इसके बाद मौजूदा सीएमओ डॉ. उदयनाथ ने मातहतों को निर्देशित कर दिया कि नेमी से दूरी बनाए रखें। आदेश के जारी होते ही डॉ. नेमी का दफ्तर में समर्थन तेजी से घट गया। हावभाव से जो नेता नजर आ रहे थे, वो कुछ ही घंटों में अलग-थलग पड़ गए।
पुलिस की ‘क्लोजिंग एंट्री’ और चेहरा लटकाकर विदाई
गुरुवार दोपहर 3:30 बजे जैसे ही एसीपी अभिषेक पाण्डेय की अगुवाई में पुलिस टीम सीएमओ दफ्तर पहुंची, माहौल पूरी तरह बदल गया। दरवाजे बंद किए गए और भीतर समझाइश का दौर चला। डॉ. नेमी ने कोर्ट का स्टे ऑर्डर दिखाते हुए अड़ने की कोशिश की, लेकिन जब भाषा सख्त हुई तो उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी। बाहर निकलते समय उनके चेहरे पर वही मायूसी थी जो किसी बर्खास्त राजा की हो सकती है।
कुर्सी की जिद, लेकिन आदेशों की दीवार
हालांकि डॉ. नेमी ने यह तर्क दिया कि जब जांच आदेश आया है, तो पहले उन्हें निलंबित किया जाना चाहिए था। उन्होंने यह भी जोड़ा कि कोर्ट का आदेश अब सर्वोपरि है, लेकिन सरकार की स्पष्ट मंशा के सामने यह दलील टिक न सकी। अब सीएमओ दफ्तर में एक दारोगा और सिपाही तैनात कर दिए गए हैं ताकि दोबारा कोई विवाद न हो।
मीटिंग से सन्नाटे तक – नेमी के इर्द-गिर्द बदलता समीकरण
डॉ. नेमी गुरुवार सुबह भी पूरे आत्मविश्वास के साथ दफ्तर पहुंचे। उन्होंने बैठक बुलाई, कुछ फाइलें देखीं और दस्तखत भी किए। लेकिन दोपहर होते-होते जैसे ही हिदायतनामा जारी हुआ, उनके चारों ओर का समर्थन छंटने लगा। एसीएमओ और अन्य वरिष्ठ अधिकारी तटस्थ मुद्रा में आ गए। नेमी का कमरा दोपहर बाद पूरी तरह सन्नाटे में बदल चुका था।
‘जय भीम’ की गूंज और राजनीतिक संभावनाएं
जैसे ही डॉ. नेमी दफ्तर से निकले, कुछ समर्थक जय भीम के नारे लगाते हुए पहुंचे और माला पहनाकर सम्मान जताया। ‘दलित उत्थान समिति’ के लोगों ने इसे एक मनुवादी सिस्टम से टकराने की जंग करार दिया। इस समर्थन के बाद राजनीतिक गलियारों में भी चर्चा तेज हो गई है कि क्या डॉ. नेमी अब राजनीति की राह पर आगे बढ़ेंगे। सपा से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, अगर डॉ. नेमी चाहें तो 2027 विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट मिल सकता है।
अब फिर अदालत की राह, लेकिन प्रशासन सतर्क
पुलिस द्वारा कार्यालय से निकाले जाने के बाद डॉ. नेमी ने संकेत दिए हैं कि वे फिर अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे और कोर्ट की अवमानना की याचिका दायर करेंगे। साथ ही उन्होंने मौजूदा सीएमओ की नियुक्ति को नियमविरुद्ध बताया और आरोप लगाया कि उनके खिलाफ एक भ्रष्टाचार-सिंडिकेट सक्रिय है। फिलहाल, सीएमओ कार्यालय में पुलिस की निगरानी जारी है और प्रशासन हर हाल में दोबारा टकराव की संभावना को खत्म करना चाहता है।
प्रशासनिक गरिमा बनाम व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा
डॉ. हरिदत्त नेमी का यह पूरा घटनाक्रम न सिर्फ एक प्रशासनिक पद के दुरुपयोग की मिसाल बन गया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर गया कि लोकतंत्र में कानून से ऊपर कोई नहीं। चाहे वो अदालत की शरण में ही क्यों न गया हो, सरकारी तंत्र की गरिमा और अनुशासन को चुनौती देना आसान नहीं।