उत्तर प्रदेश के बहराइच में एक 8 वर्षीय बच्चा आवारा कुत्तों के हमले का शिकार हुआ। जब जान पर बन आई, तब एक बंदर ने साहस दिखाकर बच्चे की जान बचाई। जानिए पूरी घटना और प्रशासन की भूमिका।
नौशाद अली की रिपोर्ट
बहराइच (उत्तर प्रदेश)। उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहाँ आवारा कुत्तों ने एक मासूम बच्चे पर हमला कर दिया। हालांकि, जिस वक्त बच्चा मौत से जूझ रहा था, उसी समय एक बंदर ने बहादुरी दिखाते हुए उसकी जान बचा ली। यह घटना जिले के रिसिया क्षेत्र स्थित ग्राम तुला मझौवा की है।
खेलते समय हुआ हमला
जानकारी के अनुसार, सचिन (8), पुत्र राजेश, गांव से लगभग 300 मीटर दूर एक आम के बाग में अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था। तभी अचानक चार से पाँच आवारा कुत्तों ने उस पर हमला कर दिया। कुत्तों ने उसे जमीन पर गिराकर बेरहमी से नोच डाला, जिससे उसके हाथ, पैर, कमर और पीठ पर गंभीर घाव हो गए।
बंदर बना जीवनदाता
इसी बीच, आम के पेड़ पर बैठे एक बंदर ने जब बच्चे को तड़पते देखा तो वह तुरंत नीचे कूदा और कुत्तों पर हमला कर दिया। इस अप्रत्याशित हमले से कुत्ते घबरा गए और बंदर को दौड़ाने लगे। तभी तक अन्य बच्चे भी पास आ गए और घायल सचिन को घर ले आए।
परिजनों ने माना हनुमान का अवतार
घटना के बाद सचिन के पिता राजेश ने कहा, “वह बंदर नहीं, हमारे लिए साक्षात हनुमान थे। अगर वह समय पर न आते, तो कुत्ते मेरे बेटे को जिंदा खा जाते।” फिलहाल सचिन का इलाज जिला मुख्यालय के एक प्राइवेट अस्पताल में जारी है और उसकी हालत गंभीर बनी हुई है।
पहले भी हो चुके हैं ऐसे हमले
बहराइच में कुत्तों द्वारा किए गए हमले कोई नई बात नहीं है। महसी और शिवपुर क्षेत्रों में भी पहले कई बार ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। एक समय जब भेड़ियों का आतंक बताया जा रहा था, तब वन विभाग की जांच में यह सामने आया कि अधिकांश हमले वास्तव में आवारा कुत्तों द्वारा किए गए थे।
विशेषज्ञों की राय
नेचर इनवायरमेंट एंड वाइल्ड लाइफ सोसाइटी (NEWS) के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिषेक का कहना है कि कुत्तों के खानपान में बदलाव और गिद्धों की घटती संख्या के कारण कुत्तों का स्वभाव हिंसक होता जा रहा है। अब वे मृत पशुओं को खा रहे हैं, जिससे उनके अंदर आक्रामकता बढ़ रही है।
समाधान क्या है?
अभिषेक के अनुसार, आवारा कुत्तों की बढ़ती आबादी पर रोक लगाने के लिए उनका बधियाकरण आवश्यक है। साथ ही प्रशासन को लगातार निगरानी और कार्रवाई करनी होगी ताकि इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके।
यह घटना न केवल प्रशासन की लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि हमें यह सोचने पर मजबूर भी करती है कि किस हद तक इंसानों और जानवरों के बीच की दूरी खतरनाक बन चुकी है। ज़रूरत है एक ठोस और सतत नीति की, जिससे इंसानों की सुरक्षा के साथ-साथ पशुओं के प्रति भी संवेदनशीलता बनी रहे।