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संपादकीय

….दिल्ली भी जीत ली ; मोदी के विजय रथ की पूर्णता?

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अनिल अनूप

27 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद दिल्ली की सत्ता पर बीजेपी की वापसी हुई है। यह जीत केवल एक राज्य में सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश है, जो पूरे देश में गूंजेगा। सालों तक दिल्ली में संघर्ष करने के बाद आखिरकार भारतीय जनता पार्टी ने इस सूखे को समाप्त कर दिया, और इसका श्रेय किसी को जाता है तो वह हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।

दिल्ली – भाजपा के लिए सबसे कठिन मोर्चा

बीजेपी ने 2014 में मोदी लहर के साथ देशभर में विजय पताका फहराई, लेकिन दिल्ली में विधानसभा चुनाव उसके लिए एक अबूझ पहेली बना रहा। 2015 में जब देशभर में बीजेपी राज्यों की सत्ता में आ रही थी, तब दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) ने 70 में से 67 सीटें जीतकर भाजपा को करारी शिकस्त दी। यह हार भाजपा के लिए एक बड़ा झटका थी, क्योंकि ठीक एक साल पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सातों सीटों पर भाजपा की प्रचंड जीत हुई थी।

2015 के विधानसभा चुनाव के बाद केजरीवाल का कद राष्ट्रीय राजनीति में तेजी से बढ़ा। पंजाब, गोवा, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल जैसे राज्यों में आम आदमी पार्टी ने अपने पंख फैलाने शुरू कर दिए। पंजाब में पार्टी ने सरकार भी बना ली। केजरीवाल का आत्मविश्वास इतना बढ़ा कि वे खुद को पीएम मोदी के मुकाबले के नेता के रूप में प्रस्तुत करने लगे।

2020 में भी पीएम मोदी का जादू नहीं चला

2019 में जब भाजपा ने 303 सीटों की प्रचंड जीत के साथ मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाया, तब भी दिल्ली में विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। केजरीवाल एक बार फिर विजयी हुए और 62 सीटें जीतकर भाजपा को महज 8 सीटों पर समेट दिया। यह हार बीजेपी के लिए इसलिए भी परेशान करने वाली थी क्योंकि दिल्ली की जनता लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 50% से अधिक वोट देती थी, लेकिन विधानसभा में वह अरविंद केजरीवाल के पक्ष में चली जाती थी।

2020 की हार के बाद भाजपा ने अपनी रणनीति में बदलाव किया। पार्टी जान गई कि उसे दिल्ली में जीतने के लिए सिर्फ मोदी के करिश्मे पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि स्थानीय मुद्दों और मजबूत संगठन पर भी ध्यान देना होगा। दिल्ली को जीतने के लिए भाजपा को संघर्ष, धैर्य और रणनीतिक बदलाव की जरूरत थी – और यही हुआ।

बीजेपी की जीत – रणनीति और धैर्य का परिणाम

भाजपा उन राज्यों में तब तक संघर्ष करती है जब तक कि वह सत्ता हासिल न कर ले। इसका उदाहरण ओडिशा, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में देखने को मिला है, जहां बीजेपी ने अपने संगठन को मजबूत किया और जनाधार बढ़ाया। दिल्ली में भी पार्टी ने अपनी रणनीति बदली, संगठन को मजबूत किया और अंततः सत्ता में वापसी की।

इस जीत में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई मोदी सरकार की योजनाओं और भाजपा की प्रचार रणनीति ने। गरीबों के लिए फ्री राशन योजना, पीएम आवास योजना, मुफ्त इलाज और सामाजिक योजनाओं ने भाजपा को आम जनता के करीब लाने का काम किया। वहीं, राम मंदिर निर्माण, राष्ट्रवाद और दिल्ली के हिंदू मतदाताओं में बढ़ती भाजपा की लोकप्रियता ने भी अहम भूमिका निभाई।

क्या अब बीजेपी अजेय हो गई है?

दिल्ली की जीत के साथ भाजपा ने एक और किला फतह कर लिया है। 2014 से अब तक देश के ज्यादातर राज्यों में भाजपा सत्ता में आ चुकी है, और इस जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राजनीतिक प्रभाव और मजबूत होगा। दिल्ली भाजपा के लिए एक मनोवैज्ञानिक बाधा थी, जिसे उसने अब पार कर लिया है।

लेकिन सवाल यह है कि अब पीएम मोदी के लिए क्या बाकी रह गया है? क्या भाजपा अब हर राज्य में अजेय हो गई है? निश्चित रूप से नहीं। राजनीति में कोई भी पार्टी अजेय नहीं होती, और दिल्ली की यह जीत भाजपा के लिए एक सीख भी है कि संघर्ष, धैर्य और सही रणनीति से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।

निष्कर्ष – अब अगला लक्ष्य क्या?

दिल्ली की सत्ता पर कब्जा जमाकर भाजपा ने यह साबित कर दिया कि जहां मोदी हैं, वहां मुमकिन है। लेकिन क्या यह जीत स्थायी रहेगी? केजरीवाल का करिश्मा पूरी तरह खत्म हो गया है या वह वापसी करेंगे? क्या कांग्रेस पूरी तरह हाशिए पर चली गई है?

इन सवालों के जवाब भविष्य में मिलेंगे, लेकिन फिलहाल यह स्पष्ट है कि दिल्ली भाजपा के लिए सिर्फ एक राज्य नहीं, बल्कि उसकी राष्ट्रीय रणनीति का अहम हिस्सा थी। अब जब दिल्ली भी जीत ली गई है, तो अगला लक्ष्य पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और दक्षिण भारत के अन्य राज्य होंगे, जहां भाजपा अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है।

दिल्ली जीतकर भाजपा ने अपनी राष्ट्रीय ताकत को और मजबूत किया है, लेकिन राजनीति में हर जीत नई चुनौतियों का आगाज भी होती है। भाजपा और पीएम मोदी अब अगले राजनीतिक लक्ष्यों की ओर बढ़ेंगे, क्योंकि राजनीति में कोई भी विजय अंतिम नहीं होती – हर जीत सिर्फ अगली लड़ाई की तैयारी होती है।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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One Comment

  1. अब करिश्माई राजनीति पीछे छूट गई है सामने वाले की कमजोरी और स्वयं की रणनीति ही विजय को तय करती है।

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