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संपादकीय

महाकुंभ में भगदड़: आस्था के सैलाब में मौत की त्रासदी

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अनिल अनूप

महाकुंभ भारत के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु एकत्रित होकर आस्था की डुबकी लगाते हैं। यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि प्रशासनिक प्रबंधन और संसाधनों की क्षमता की भी परीक्षा लेता है। हालांकि, इस भव्य आयोजन में कई बार भगदड़ जैसी त्रासदियों ने इसे भयावह बना दिया है। भगदड़ की घटनाएं आमतौर पर भीड़ नियंत्रण की असफलता, अव्यवस्थित यातायात व्यवस्था और आपातकालीन स्थितियों के लिए प्रशासन की अपर्याप्त तैयारी के कारण होती हैं।

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महाकुंभ में आस्था और श्रद्धा का जन-सैलाब उमडऩा ही था। भगदड़ की भी आशंकाएं थीं, क्योंकि कुछ भक्त सीमाओं को लांघने पर उतारू थे। मेले में भीड़ अपरिमित और आशातीत थी। अंतत: रात में ही करीब 2 बजे बैरिकेड लांघन का दुस्साहस किया गया, अनुशासन तोड़ दिया गया, प्रशासन के निर्देशों को नकार दिया गया, नतीजतन भगदड़ मची और श्रद्धालु घायल हुए। कुछ गंभीर घायल भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बताए हैं, लेकिन बुधवार सुबह 11 बजे तक हताहत और घायलों का कोई अधिकृत आंकड़ा घोषित नहीं किया गया था। कुछ अंतरराष्ट्रीय मीडिया एजेंसियों ने मरने वालों की संख्या बताई है, लेकिन हम उसे अंतिम जिम्मेदारी नहीं मानते। यकीनन भगदड़ अप्रत्याशित होगी, तभी प्रधानमंत्री मोदी ने तीन घंटे में ही चार बार मुख्यमंत्री योगी को फोन किए और हालात की जानकारी लेते रहे। गृहमंत्री अमित शाह ने भी फोन पर मुख्यमंत्री से बातचीत कर विस्तृत ब्योरा लिया। प्रधानमंत्री ने महाकुंभ में हुए हादसे को ‘दुखद’ करार दिया है। उन्होंने मृतकों के परिजनों के प्रति संवेदना भी जताई है। साफ है कि कुछ मौतें भी हुई हैं। बहरहाल मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का अनुमान था कि ‘मौनी अमावस्या’ को ‘अमृत स्नान’ करने 9-10 करोड़ श्रद्धालु प्रयागराज में आए। बुधवार सुबह करीब 9 बजे तक करीब 4 करोड़ श्रद्धालु त्रिवेणी और आसपास के घाटों पर स्नान कर चुके थे। भगदड़ भयावह रूप धारण न करे, लिहाजा अखाड़ों के साधु-संतों ने मुख्यमंत्री और प्रशासन से बातचीत कर तय किया कि देश भर से पधारे भक्तों को पहले स्नान करने दिया जाए।

महाकुंभ में हर दिन लाखों श्रद्धालु आते हैं, लेकिन जब प्रमुख स्नान पर्वों पर यह संख्या कई गुना बढ़ जाती है, तो हालात चुनौतीपूर्ण हो जाते हैं। भीड़ का सही अनुमान न लगा पाना प्रशासन की सबसे बड़ी चूक साबित होती है। जब अचानक ही किसी स्थान पर अत्यधिक भीड़ जमा हो जाती है और निकास के लिए समुचित मार्ग उपलब्ध नहीं होते, तो भगदड़ जैसी घटनाएं घटित होती हैं। संकरे रास्तों, अस्थायी पुलों और सीमित यातायात साधनों की वजह से यह समस्या और जटिल हो जाती है। कई बार अफवाहों के कारण भी भगदड़ मच जाती है। किसी अप्रत्याशित घटना की अफवाह, जैसे—पुल गिरने, विस्फोट, आग लगने या किसी वाहन के अनियंत्रित हो जाने की खबर सुनते ही श्रद्धालुओं में दहशत फैल जाती है, जिससे वे जान बचाने के लिए अनियंत्रित रूप से भागने लगते हैं और इस प्रक्रिया में कई लोग कुचलकर अपनी जान गंवा देते हैं।

उसके बाद दबाव कम होने पर ही अखाड़े ‘अमृत स्नान’ करेंगे। अंतत: वह ‘प्रतीकात्मक स्नान’ ही कर पाए। अमूमन व्यवस्था यह होती है कि पहले शंकराचार्य और फिर अखाड़ों के साधु-संत, तय समय के अनुसार, स्नान करते हैं, फिर आम श्रद्धालु का नंबर आता है, लेकिन इस बार महाकुंभ में भक्तों के सैलाब ने विश्व-कीर्तिमान बना दिए, नया इतिहास लिखा गया और आस्था, अध्यात्म के तमाम रिकॉर्ड टूट गए। मंगलवार तक करीब 20 करोड़ भक्त संगम त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगा चुके थे और करीब 17 करोड़ ने अयोध्या के राम मंदिर में अपने प्रभु राम के दर्शन किए। ऐसा रहा सनातन का आस्थामय कीर्तिमान..! नतीजतन अयोध्या तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव चंपत राय को सार्वजनिक अपील करनी पड़ी कि उप्र के श्रद्धालु 15-20 दिन बाद दर्शन करने आएं, क्योंकि कुंभ में जाने वाले अयोध्या आकर भी दर्शन-लाभ लेना चाहते हैं। उन्हें दर्शन करने दिए जाएं, क्योंकि वे दूरदराज से पधार रहे हैं। बहरहाल औसतन 1.21 करोड़ भक्तों ने हररोज संगम में आस्था की डुबकी ली और निर्वाण के पुण्य अर्जित किए। इतनी भीड़ का प्रबंधन और नियंत्रण ही ‘वैश्विक उदाहरण’ बन गया। अमरीकी कंपनी नासा ने अंतरिक्ष से उस आस्था-सैलाब की तस्वीरें भी वैश्विक कीं। इन लम्हों तक कोई भगदड़, कोई घटना, आपदा अथवा हादसा सामने नहीं आया, हालांकि कुंभ-आयोजन में हादसे होते रहे हैं। स्वतंत्र भारत के सर्वप्रथम कुंभ 1954 में तो व्यापक त्रासदी सामने आई थी, जब भगदड़ में करीब 800 मौतें हुई थीं। इस बार भी भगदड़ के बाद मुख्यमंत्री और साधु-संतों को आह्वान करने पड़े कि जो भक्त जिस घाट के करीब हैं, वे वहीं स्नान करें। उन्हें संपूर्ण पुण्य-लाभ मिलेगा। ये आह्वान विवशता के प्रतीक भी हो सकते हैं। कुछ मुख्यमंत्रियों ने भी मौत के अनौपचारिक आंकड़े जारी किए हैं। यह देशहित या श्रद्धालु-हित में नहीं है। महाकुंभ जैसे सनातन और आध्यात्मिक आयोजन पर राजनीति करने से बचना चाहिए। यह गरीबी, बेरोजगारी, रोटी और बच्चे के स्कूल न जा पाने की विवशताओं का भी पर्व नहीं है। यह विशुद्धत: आस्था, श्रद्धा, भक्ति, सत्य, समर्पण आदि का दैवीय महाकुंभ है, जो 144 सालों के बाद आया है और हमारी जिंदगी में दोबारा इसका आगमन असंभव है।

महाकुंभ में पर्याप्त बुनियादी सुविधाओं की कमी भी भगदड़ का एक बड़ा कारण बनती है। अत्यधिक भीड़ होने पर भोजन, पानी, चिकित्सा सुविधा और शौचालय जैसी आवश्यक सेवाओं का अभाव श्रद्धालुओं में असहजता पैदा करता है, जिससे वे जल्दी बाहर निकलने की कोशिश करते हैं और व्यवस्था चरमरा जाती है। कई बार प्रशासनिक लापरवाही और सुरक्षा में चूक भी इन घटनाओं को जन्म देती है। कुंभ मेले में लाखों लोगों की भीड़ को संभालने के लिए सुरक्षा बलों की पर्याप्त तैनाती आवश्यक होती है, लेकिन यदि पुलिस बल और स्वयंसेवक आवश्यक संख्या में उपस्थित नहीं होते, तो भीड़ अनियंत्रित हो जाती है और भगदड़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

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इतिहास में देखें तो महाकुंभ में भगदड़ की कई घटनाएं घट चुकी हैं। 1954 के प्रयागराज महाकुंभ में भगदड़ के कारण लगभग 800 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी। यह स्वतंत्र भारत में हुई सबसे बड़ी भगदड़ में से एक थी। इसके बाद 1986 में हरिद्वार कुंभ, 2003 में नासिक कुंभ और 2013 में प्रयागराज कुंभ के दौरान भी इसी तरह की घटनाएं सामने आईं, जिनमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई और हजारों घायल हुए।

भगदड़ की घटनाओं को रोकने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने आवश्यक हैं। सबसे पहले, भीड़ नियंत्रण के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जाना चाहिए। सीसीटीवी कैमरों की निगरानी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित भीड़ विश्लेषण प्रणाली और डिजिटल मैपिंग से श्रद्धालुओं की आवाजाही को नियंत्रित किया जा सकता है। ड्रोन की मदद से मेले के पूरे क्षेत्र की निगरानी की जानी चाहिए ताकि भीड़ का सही विश्लेषण कर स्थिति को नियंत्रित किया जा सके। इसके अलावा, प्रवेश और निकास मार्गों को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिए। पर्याप्त निकास मार्गों की व्यवस्था से भगदड़ की संभावना को कम किया जा सकता है। यातायात को एक दिशा में नियंत्रित करने के लिए वन-वे सिस्टम लागू करना भी एक प्रभावी उपाय साबित हो सकता है।

कुंभ मेले में अफवाहों को रोकने के लिए प्रशासन को सूचना तंत्र को मजबूत करना होगा। लाउडस्पीकर, डिजिटल डिस्प्ले और मोबाइल संदेश सेवाओं के माध्यम से श्रद्धालुओं तक सही जानकारी पहुंचाई जानी चाहिए। साथ ही, सोशल मीडिया और अन्य संचार माध्यमों पर कड़ी निगरानी रखकर झूठी खबरों के प्रसार को रोका जाना चाहिए। बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बनाना भी भगदड़ की रोकथाम में मदद कर सकता है। स्नान घाटों, प्रमुख मार्गों और आश्रय स्थलों पर पर्याप्त जल आपूर्ति, चिकित्सा सुविधाएं और विश्राम केंद्रों की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। आपातकालीन चिकित्सा केंद्रों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए और एंबुलेंस सेवाओं को हमेशा तैयार रखना चाहिए ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति में त्वरित मदद मिल सके।

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सुरक्षा व्यवस्था को और अधिक सख्त करने की जरूरत है। श्रद्धालुओं की आवाजाही को नियंत्रित करने के लिए बैरिकेडिंग, उचित संकेतक और प्रशिक्षित सुरक्षाकर्मियों की तैनाती अनिवार्य होनी चाहिए। पुलिस, एनडीआरएफ और अन्य आपदा प्रबंधन बलों को हाई अलर्ट पर रखा जाना चाहिए ताकि किसी भी आपात स्थिति में तुरंत कार्रवाई की जा सके। इसके अलावा, श्रद्धालुओं को भी जागरूक करने की जरूरत है। उन्हें संयम और अनुशासन बनाए रखने की सलाह दी जानी चाहिए और भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में छोटे बच्चों और बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखने के निर्देश दिए जाने चाहिए।

महाकुंभ जैसे भव्य आयोजन को सुरक्षित और सफल बनाने के लिए प्रशासन और श्रद्धालुओं, दोनों की समान जिम्मेदारी बनती है। अगर सरकार और आयोजन समिति सही योजना बनाकर और अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करके इस मेले को व्यवस्थित करें, तो भगदड़ जैसी घटनाओं को रोका जा सकता है। महाकुंभ न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह सुशासन और प्रशासनिक क्षमता की भी परीक्षा है। यदि इन सुझावों को प्रभावी रूप से लागू किया जाए, तो महाकुंभ को सुरक्षित और अनुशासित बनाकर इसे विश्व स्तरीय आयोजन का रूप दिया जा सकता है।

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samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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One Comment

  1. इस प्रकार की त्रासदी के अनेक कारण है।
    1 भारतीय जन मानस में अनुशासन का अभाव.
    2प्रशासनिक व्यवस्था में विफलता.
    3वीआईपी कल्चर.
    4आस्था पर अंधविश्वास हावी.
    5पूर्व की गलतियों से सबक नहीं लेना.

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