संतोष कुमार सोनी की रिपोर्ट
बांदा स्थित रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज में एक कथित वॉट्सऐप चैट वायरल होने से स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और लापरवाही की गंभीर स्थिति उजागर हुई है। इस मामले ने क्षेत्र में सनसनी फैला दी है और सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता और अनुशासन की कमी को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं।
व्हाट्सऐप चैट का खुलासा
वायरल चैट में मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर करन राजपूत द्वारा संस्थान के प्रिंसिपल पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। चैट में कहा गया है कि ड्यूटी लगाने के लिए पैसे की मांग की जाती है, और इसके लिए रात और दिन की ड्यूटी के लिए अलग-अलग दरें तय हैं। पैसे देने वाले डॉक्टरों और कर्मचारियों को प्राथमिकता दी जाती है। यह खुलासा बेहद चिंताजनक है क्योंकि यह दर्शाता है कि सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में किस प्रकार भ्रष्टाचार जड़ें जमा चुका है।
मरीजों की जान के साथ खिलवाड़
चैट में यह भी बताया गया है कि आईसीयू में लाइट की अनुपस्थिति और वेंटिलेटर की खराबी जैसी बुनियादी समस्याएं हैं, जिससे मरीजों की जान खतरे में पड़ रही है। डॉक्टरों और स्टाफ के बीच तालमेल की कमी भी गंभीर समस्या बन गई है। इसके अलावा, स्टाफ की कमी के चलते एक डॉक्टर ने अहिंसक आंदोलन की धमकी दी है। ये सभी तथ्य मेडिकल कॉलेज के भीतर के खराब प्रबंधन और प्रशासनिक अक्षमता की ओर इशारा करते हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रश्नचिन्ह
ड्यूटी लगाने के लिए रिश्वतखोरी के आरोप न केवल मेडिकल कॉलेज में व्याप्त भ्रष्टाचार को दर्शाते हैं, बल्कि योगी सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की मंशा पर भी सवाल खड़ा करते हैं। इस मामले के प्रकाश में आने के बावजूद उच्च अधिकारियों की चुप्पी और निष्क्रियता मामले की गंभीरता को और बढ़ा देती है। अब तक न तो कोई जांच शुरू हुई है और न ही किसी के खिलाफ ठोस कार्रवाई की गई है।
प्रभावित साख और घटता विश्वास
इस तरह की घटनाएं सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की साख को नुकसान पहुंचाती हैं और मरीजों का विश्वास घटाती हैं। अगर स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार और लापरवाही की यही स्थिति बनी रही, तो इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ेगा।
उपाय और सुधार की आवश्यकता
इस मामले में प्रशासन को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। वायरल चैट की सत्यता की गहन जांच कर दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं। जिन अधिकारियों और कर्मचारियों की संलिप्तता सामने आए, उन्हें निलंबित किया जाए।
1. बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित की जाएं: आईसीयू में लाइट और वेंटिलेटर जैसी जरूरी सुविधाओं को तत्काल बहाल किया जाए।
2. डॉक्टरों और स्टाफ में समन्वय: मरीजों की सुरक्षा के लिए डॉक्टरों और स्टाफ के बीच समुचित समन्वय स्थापित किया जाए।
3. स्वतंत्र निगरानी समिति: अस्पतालों में भ्रष्टाचार और लापरवाही की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति का गठन किया जाए।
4. प्रशासनिक जवाबदेही: उच्च अधिकारियों को अस्पतालों में नियमित निगरानी बढ़ानी चाहिए ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता और ईमानदारी की स्थापना के बिना, जनता का विश्वास बहाल करना मुश्किल होगा। ऐसे मामलों में त्वरित और सख्त कार्रवाई से ही भ्रष्टाचार और लापरवाही पर अंकुश लगाया जा सकता है।