हिंदी पत्रकारिता दिवस पर बांदा प्रेस क्लब की संगोष्ठी में एकता, पत्रकार अधिकारों और मूल्यों की रक्षा को लेकर खुला संवाद हुआ। वरिष्ठ और नवोदित पत्रकारों ने मिलकर संगठनात्मक मजबूती पर बल दिया।
संतोष कुमार सोनी के साथ सुशील कुमार मिश्रा की रिपोर्ट
बांदा। हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर बांदा प्रेस क्लब द्वारा होटल सारंग में आयोजित विशेष संगोष्ठी में जिले के वरिष्ठ और नवोदित पत्रकारों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। कार्यक्रम की शुरुआत तिंदवारी तहसील अध्यक्ष की माता जी के निधन और पहलगाम आतंकी हमले में शहीद हुए जवानों की आत्मा की शांति के लिए दो मिनट के मौन से हुई। इसके पश्चात सभी ने मिलकर सामूहिक भोज का आनंद लिया।
आपसी संवाद और एकता पर रहा ज़ोर
इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य था:
पत्रकारों के बीच आपसी समन्वय और संगठन की भावना को प्रोत्साहन देना।
गुटबाज़ी से ऊपर उठकर साझा मंच पर संवाद स्थापित करना।
पत्रकारों की आवाज़ को अधिक प्रभावशाली बनाना।
प्रेस क्लब के महामंत्री सचिन चतुर्वेदी ने संचालन करते हुए आपसी मतभेद भुलाकर एकजुट होने का आह्वान किया। उन्होंने मासिक संवाद बैठक के आयोजन का प्रस्ताव रखा, जिसमें भोजन के साथ खुली बातचीत हो सके। साथ ही, उन्होंने “पत्रकार लोक अदालत” शुरू करने की बात कही, जहाँ पत्रकारों की समस्याओं का समाधान जिम्मेदार अधिकारियों के समक्ष किया जाएगा।
प्रशिक्षण और नवोदित पत्रकारों के लिए नई पहल
सचिन चतुर्वेदी ने बताया कि नवोदित पत्रकारों के लिए वर्कशॉप और प्रशिक्षण सत्रों का आयोजन किया जाएगा, जिससे वे पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांतों को समझ सकें। उन्होंने स्पष्ट किया कि पत्रकारों का वास्तविक संरक्षक उनका अखबार या चैनल होता है, सूचना विभाग नहीं।
भावुकता, आत्ममंथन और समाजसेवा
प्रेस क्लब के अध्यक्ष दिनेश निगम ‘दद्दा’ ने अपने उद्बोधन में बीते दिनों में हुई कटु टिप्पणियों के लिए सार्वजनिक क्षमा मांगी और अब किसी भी पत्रकार के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी न करने का संकल्प लिया। उन्होंने शहीद पत्रकार सुरेश चंद्र गुप्ता के नाम पर बने प्रेस भवन को निजी उपयोग में लाने पर विरोध जताया और इसे प्रेस क्लब को सौंपने की मांग रखी।
उन्होंने महिला पत्रकार सुलोचना तिवारी के साथ हुए अन्याय पर भी गंभीर चिंता जताई और न्याय दिलाने का भरोसा दिया। उन्होंने पूर्व में क्लब द्वारा किन्नर समुदाय व निर्धन बहनों के साथ रक्षाबंधन जैसे पर्व मनाने और भंडारा व प्रसाद वितरण जैसे समाजसेवा कार्यों की भी चर्चा की।
निष्पक्ष पत्रकारिता की पुकार
पत्रकार दीपक पांडे ने कहा, “हमें किसी से डरना या झुकना नहीं चाहिए, पत्रकारिता सच्चाई की आवाज़ है और उसे निर्भीकता से उठाना चाहिए।” वहीं सचिव सुनील सक्सेना ने इसे एक आंदोलन का रूप देने का आह्वान करते हुए कहा कि यदि हम किसी को सत्ता में लाने की ताकत रखते हैं तो उसे हटाने का साहस भी हमारे पास है।
कोषाध्यक्ष राजेंद्र खत्री ने सूचना विभाग की कार्यप्रणाली पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा, “पत्रकार मद का पैसा सूचना विभाग डकार रहा है, जो केवल अपने चहेतों को सम्मान देता है।”
व्यंग्य, चेतना और प्रेरणा
रूपा गोयल की व्यंग्यात्मक कविता “हाँ, मैं पत्रकार हूँ” ने आज की पत्रकारिता पर गहरी चोट की। वहीं रोहित धुरिया ने खबरों की प्रस्तुति में गुणवत्ता की गिरावट पर चिंता व्यक्त की।
राजा त्रिपाठी ने स्पष्ट किया कि यदि पत्रकार संगठित हो जाएं तो शासन-प्रशासन को उनकी बात मानने को मजबूर होना पड़ेगा। वरिष्ठ पत्रकार कमल सिंह ने कहा कि पत्रकारों का हर स्तर पर दोहन हो रहा है – चाहे वो प्रशासन हो या अखबार मालिक।
अनिल सिंह गौतम और मनीष निगम ने महोबा में एक पत्रकार के साथ हुई अभद्रता का ज़िक्र किया और ‘दद्दा’ की तत्परता की प्रशंसा की जिन्होंने उस पत्रकार का पूरा समर्थन किया।
भागीदारी और भविष्य की दिशा
इस संगोष्ठी में सुनील सक्सेना, सचिन चतुर्वेदी, राजेंद्र खत्री, विनय निगम, सुरेश साहू, संध्या धुरिया, साकेत अवस्थी, मनोज गोस्वामी, हिमांशु शुक्ला, माजिद सिद्दीकी, राजेश तिवारी समेत जिले के कई पत्रकारों की सक्रिय भागीदारी रही।
यह संगोष्ठी केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं थी, बल्कि एकता, जागरूकता और आत्म-सम्मान की दिशा में एक ठोस पहल थी। संवाद की ताकत को समझते हुए पत्रकारों ने न केवल समस्याओं की पहचान की, बल्कि समाधान के मार्ग भी खोले। निश्चित रूप से यह कार्यक्रम पत्रकारिता में नई ऊर्जा और उद्देश्य के साथ आगे बढ़ने का संकेत है।