नौशाद अली की रिपोर्ट
गोंडा। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत उद्यान विभाग द्वारा आयोजित एक मेले में किसानों को कृषि संबंधी योजनाओं और तकनीकों की जानकारी दी गई। इस अवसर पर जिलाधिकारी (डीएम) नेहा शर्मा ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार द्वारा किसानों की प्रगति और उत्पादन में वृद्धि के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनका लाभ किसानों को सीधे मिल रहा है। उन्होंने किसानों से इन योजनाओं का अधिकतम लाभ उठाने का आह्वान किया।
सम्मान और प्रेरणा
इस कार्यक्रम में उत्कृष्ट कार्य करने वाले किसानों और विभाग के कर्मठ कर्मचारियों को डीएम नेहा शर्मा ने सम्मानित किया। इस दौरान किसानों को आधुनिक तकनीकों के साथ कृषि में नवाचारों को अपनाने पर जोर दिया गया। विशेष रूप से फसलों में मल्चिंग की प्रक्रिया के महत्व को समझाया गया, जिससे मिट्टी की सेहत में सुधार होता है और फसल की उपज बढ़ती है।
मल्चिंग का महत्व
मल्चिंग कृषि की एक उपयोगी तकनीक है जिसमें गन्ने की सूखी पत्तियों, पेड़ों की पत्तियों, पुआल या सूखी घास की एक परत खेतों में फसलों की कतारों के बीच बिछाई जाती है। यह पत्तियां धीरे-धीरे सड़कर जैविक खाद में बदल जाती हैं, जिससे मिट्टी में कार्बनिक तत्वों की मात्रा बढ़ती है। इससे मिट्टी की जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है, जिससे सिंचाई की आवश्यकता कम हो जाती है। साथ ही, मिट्टी में पोषक तत्वों की आपूर्ति होती है और रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम होता है, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है।
मल्चिंग की प्रक्रिया
मल्चिंग के लिए एक एकड़ खेत में लगभग 25 कुंतल गन्ने की सूखी पत्तियां, पुआल, पेड़ों की पत्तियां या सूखी घास की आवश्यकता होती है। इन अवशेषों को फसलों की दो लाइनों के बीच 8 से 10 सेंटीमीटर मोटी परत के रूप में बिछाना चाहिए। गन्ने की फसल में, पेड़ी वाली गन्ने की कटाई के तुरंत बाद मल्चिंग करना फायदेमंद होता है। नए गन्ने की बुवाई के बाद, गन्ने के जमने पर मल्चिंग करनी चाहिए ताकि मिट्टी को पर्याप्त पोषण मिल सके।
पत्तियां जलाने से होने वाला नुकसान
डीएम ने किसानों को खेतों में फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान के प्रति भी आगाह किया। उन्होंने बताया कि एक ग्राम मिट्टी में 10 से 35 करोड़ लाभकारी जीवाणु और 1 से 2 लाख तक लाभकारी फफूंद होते हैं, जो पत्तियां जलाने से नष्ट हो जाते हैं। इससे मिट्टी की जलधारण क्षमता घटती है, सिंचाई की जरूरत बढ़ती है, और मिट्टी में मौजूद लाभकारी कीट और सूक्ष्मजीव समाप्त हो जाते हैं। इससे फसलों का उत्पादन कम हो जाता है और मिट्टी की उर्वरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
इस मेले के माध्यम से किसानों को जागरूक किया गया कि मल्चिंग तकनीक को अपनाकर वे न केवल अपनी फसल की उपज बढ़ा सकते हैं, बल्कि मिट्टी की सेहत को भी बनाए रख सकते हैं। साथ ही, अवशेष जलाने से बचने की सलाह दी गई ताकि पर्यावरण और मिट्टी दोनों का संरक्षण किया जा सके।