भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह को पॉक्सो एक्ट के केस में बरी कर दिया गया है। अब सवाल है कि क्या वे दोबारा सक्रिय राजनीति में लौटेंगे या फिर किंगमेकर की भूमिका में नजर आएंगे? जानिए पूरे घटनाक्रम का विश्लेषण, उनके राजनीतिक भविष्य की संभावनाएं और विरोधियों की प्रतिक्रिया।
अब्दुल मोबीन सिद्दीकी की रिपोर्ट
पॉक्सो केस में बरी, लेकिन पांच महिला पहलवानों का मामला अब भी लंबित
26 मई 2025 को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज उस केस में बृजभूषण शरण सिंह को बरी कर दिया, जिसमें एक नाबालिग महिला पहलवान ने यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए थे। हालांकि, उनके खिलाफ पांच अन्य महिला पहलवानों द्वारा दर्ज कराए गए मामलों की जांच अब भी जारी है।
महिला पहलवानों का विरोध वर्ष 2023 में जंतर-मंतर पर प्रदर्शन से शुरू हुआ, जहां विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया जैसे प्रतिष्ठित खिलाड़ियों ने उन पर यौन शोषण के आरोप लगाए। नाबालिग पहलवान के पिता द्वारा पॉक्सो एक्ट के तहत लगाए गए आरोपों ने इस मामले को और गंभीर बना दिया था।
राजनीति से दूरी या नई पारी की तैयारी?
बृजभूषण को भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा, और लोकसभा 2024 के चुनाव में भी टिकट से वंचित रहना पड़ा। लेकिन अब जब वे कोर्ट से बरी हो चुके हैं, तो उनके समर्थकों में नया उत्साह देखा गया। अयोध्या और नंदिनी नगर में जोरदार स्वागत इस बात का संकेत है कि वे राजनीति से दूरी नहीं बनाने वाले।
अयोध्या के वरिष्ठ पत्रकार त्रियुगी नारायण तिवारी मानते हैं कि बृजभूषण सिंह फिर से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं, संभवतः अयोध्या से। वे कहते हैं, “जो व्यक्ति देवीपाटन मंडल में दो-दो हेलीकॉप्टर लेकर दौरा कर रहा हो, वो राजनीति से संन्यास नहीं ले सकता।” उनका मानना है कि बृजभूषण अब अपने बेटों के साथ-साथ खुद भी चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में हैं।
राजनीति में किंगमेकर या खुद किंग?
वहीं, लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश वाजपेयी इस बात से सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार, “68 साल की उम्र में, जब उनका एक बेटा सांसद और दूसरा विधायक है, तो वे खुद क्यों चुनाव लड़ेंगे?” उनका मानना है कि अब बृजभूषण सिंह किंगमेकर की भूमिका में रह सकते हैं। वे यह भी याद दिलाते हैं कि बृजभूषण ने स्वयं कहा था कि प्रतीक और करण (उनके बेटे) ही अब राजनीतिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करेंगे।
बाहुबली छवि: वरदान या अभिशाप?
बृजभूषण शरण सिंह की छवि हमेशा एक बाहुबली नेता की रही है। छात्र राजनीति में हैंड ग्रेनेड चलाने से लेकर SP पर पिस्टल तानने तक, उनके किस्से लोककथाओं जैसे हैं। 1996 में टाडा के तहत जेल जाना और फिर भी पत्नी को टिकट दिलवा कर चुनाव जितवाना इस छवि को मजबूत करता है।
गोंडा, देवीपाटन और अब पूरे अवध क्षेत्र में उनका वर्चस्व आज भी बना हुआ है। वे जिस गांव में जाते हैं, वहां लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है। उनके पास 50 से अधिक स्कूल और कॉलेज हैं, ठेकेदारी से लेकर पंचायत राजनीति तक उनकी मजबूत पकड़ है। इस सामाजिक और राजनीतिक नेटवर्क को नकारा नहीं जा सकता।
बीजेपी से अलग राह संभव है क्या?
राजनीतिक जीवन का अधिकांश हिस्सा बीजेपी में बिताने वाले बृजभूषण ने 2009 में समाजवादी पार्टी से भी चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी। हालांकि, 2014 में वे बीजेपी में वापस आ गए और तब से वहीं हैं। अब जबकि दोनों बेटे भाजपा में स्थापित हो चुके हैं, तो उनके पार्टी से अलग जाने की संभावना बेहद कम है।
वरिष्ठ पत्रकार वाजपेयी के अनुसार, “बृजभूषण सिंह को यह समझ है कि अगर वे अब किसी प्रकार की बगावत करते हैं, तो उनके बेटों का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। ऐसे में वे शीर्ष नेतृत्व के फैसले के साथ चलेंगे।”
पॉक्सो से बरी, लेकिन सवाल बाकी
बृजभूषण सिंह ने अदालत के फैसले के बाद कहा कि उनके खिलाफ षड्यंत्र रचा गया था, जिसमें उन्होंने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा का नाम लिया। उन्होंने कहा कि अगर आरोप सिद्ध हो जाते, तो वे स्वयं को फांसी लगा लेते। साथ ही उन्होंने महिला और दलित कानूनों के दुरुपयोग पर भी सवाल उठाए, लेकिन यह भी जोड़ा कि वे इन कानूनों को समाप्त करने की बात नहीं कर रहे।
विनेश फोगाट का तंज
पॉक्सो केस से बरी होने के बाद विनेश फोगाट ने सोशल मीडिया पर तीखा तंज कसते हुए लिखा:
“लश्कर भी तुम्हारा है, सरदार भी तुम्हारा है,
तुम झूठ को सच लिख दो, अख़बार भी तुम्हारा है!
हम इसकी शिकायत करते तो कहां करते,
सरकार तुम्हारी है, गवर्नर भी तुम्हारा है!!”
विनेश फोगाट अब कांग्रेस विधायक हैं, और उनकी नाराजगी यह दिखाती है कि मामला भले ही कानूनी रूप से खत्म हुआ हो, लेकिन सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर विवाद अब भी जिन्दा है।
क्या होगी आगे की राह?
बृजभूषण शरण सिंह के राजनीति में पुनः सक्रिय होने या किंगमेकर बनने का फैसला पूरी तरह बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के हाथ में होगा। उनकी उम्र, बेटों की सियासी विरासत और पार्टी की रणनीति—ये तीन प्रमुख कारक उनके भविष्य को तय करेंगे।
हालांकि, एक बात स्पष्ट है—बृजभूषण सिंह राजनीति से संन्यास नहीं लेने वाले। अगर उन्हें पार्टी से हरी झंडी मिली, तो वे अयोध्या से अगला चुनाव लड़ सकते हैं। और अगर ऐसा नहीं हुआ, तब भी वे अवध की राजनीति में ‘किंगमेकर’ बने रहेंगे—अपने नेटवर्क, बाहुबली छवि और जनसमर्थन के दम पर।