आर्य संतोष कुमार वर्मा की रिपोर्ट
भोपाल। जनवरी 2013 में मध्य प्रदेश के एक गाँव में 9 वर्षीय लड़की के गायब होने की घटना ने पूरे क्षेत्र को झकझोर दिया था। इस लड़की को आखिरी बार 21 वर्षीय युवक, अनोखी लाल के साथ देखा गया था। अनोखी लाल गाँव में एक दूध की दुकान पर काम करते थे। पुलिस की जांच के बाद, लड़की की लाश दो दिन बाद उसके पिता को मिली। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में बलात्कार और हत्या की पुष्टि हुई।
गुस्से से भरी भीड़ और मीडिया के दबाव में, पुलिस ने महज 9 दिनों में जांच पूरी कर ली और अनोखी लाल पर आरोप तय कर दिया। फरवरी 2013 में ही ट्रायल कोर्ट ने अनोखी लाल को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुना दी। इसके बाद दो अन्य अदालतों ने भी फांसी की सजा बरकरार रखी।
तेजी से हुआ फैसला और न्याय की त्रुटियाँ
यह मामला 2012 के निर्भया कांड के बाद का था, जब पूरे देश में बलात्कारियों के खिलाफ कड़ी सजा की मांग उठ रही थी। गुस्से में उबलते समाज और मीडिया ने पुलिस और न्यायालय पर दबाव बढ़ा दिया। नतीजतन, अनोखी लाल का मुकदमा इतनी तेजी से चला कि उन्हें और उनके वकील को सही से अपनी बात रखने का मौका भी नहीं मिला।
अनोखी लाल एक गरीब आदिवासी परिवार से थे और उन्हें राज्य सरकार द्वारा नियुक्त वकील मिला, जो मुकदमे की शुरुआत में ही उनसे पहली बार मिले थे। अनोखी लाल ने बताया कि उन्हें कोर्ट की कार्यवाही के बारे में कुछ समझ नहीं आया और जल्द ही उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई।
न्यायिक प्रक्रिया में खामियाँ
अनोखी लाल के मामले में पुलिस के पास कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं था। केवल डीएनए और परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर उन्हें दोषी ठहराया गया। पुलिस की जल्दबाजी में की गई जांच और अदालत की फैसले की तेजी ने कई कानूनी विशेषज्ञों को हैरान कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में इस मामले की पुनः जांच का आदेश दिया, जब यह स्पष्ट हुआ कि मुकदमे में कई खामियाँ थीं। पुनः जांच के दौरान डीएनए रिपोर्ट की बारीकी से समीक्षा की गई, जिसमें यह पाया गया कि पीड़िता के शरीर से मिले डीएनए का अनोखी लाल से कोई संबंध नहीं था। यह डीएनए किसी अन्य व्यक्ति का था।
11 साल बाद निर्दोष साबित हुए अनोखी लाल
2024 में ट्रायल कोर्ट ने अनोखी लाल को 11 साल बाद निर्दोष करार दिया। इस फैसले ने यह साबित किया कि साक्ष्य का गलत विश्लेषण और न्यायिक प्रक्रिया में तेजी के कारण एक निर्दोष व्यक्ति ने 4,033 दिन जेल में बिताए।
अनोखी लाल की जिंदगी में बदलाव
11 साल बाद जेल से बाहर आने पर अनोखी लाल का गाँव और जीवन पूरी तरह बदल चुका था। उन्होंने अपनी मातृभाषा तक भूल दी थी और कई रिश्तेदारों को पहचान भी नहीं पा रहे थे। जेल में रहते हुए उन्होंने पढ़ाई की और 10वीं तक की शिक्षा पूरी की।
अनोखी लाल का कहना है कि ये 11 साल उनके जीवन का सबसे कठिन समय था। उन्होंने आत्महत्या तक करने की सोची थी। वे कहते हैं, “अगर मैंने आत्महत्या कर ली होती, तो सब यही समझते कि मैंने अपराध किया है।”
पीड़िता का परिवार: न्याय की उलझन
पीड़िता के पिता को अनोखी लाल की रिहाई की सूचना किसी अजनबी ने दी। वे अब भी न्याय प्रणाली पर गुस्सा जाहिर करते हैं। उनका कहना है कि गरीबी के कारण वे सही से कानूनी लड़ाई नहीं लड़ पाए। उनका मानना है कि अगर उनके पास सक्षम वकील होता तो शायद न्याय जल्दी मिलता।
उनकी बेटी की मौत का दुख आज भी उन्हें सताता है। उन्होंने समाचार देखना तक छोड़ दिया है क्योंकि ऐसी घटनाएं उनके घावों को फिर से कुरेद देती हैं।
परिवार की कठिनाइयाँ
अनोखी लाल के भाई तेजराम ने बताया कि इस मुकदमे के दौरान उन्हें आर्थिक संकट से जूझना पड़ा। कई बार उन्हें रेलवे प्लेटफॉर्म पर सोना पड़ा क्योंकि होटल में रहने के पैसे नहीं थे। कानूनी खर्चों को पूरा करने के लिए उन्हें अपनी आधी जमीन बेचनी पड़ी।