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कृषि

20 हजार हेक्टेयर में फैले ताल सलोना ने बदली ग्रामीणों की जिंदगी, कमलगट्टा बना मुख्य रोजगार का साधन

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जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में जल संसाधनों का प्रमुख स्रोत बने दो बड़े तालों में से एक, सगड़ी तहसील क्षेत्र के अजमतगढ़ में स्थित ताल सलोना, न सिर्फ अपने विशाल क्षेत्रफल के लिए जाना जाता है, बल्कि यह ताल आसपास के गांवों के लोगों के लिए आजीविका का मुख्य साधन भी है। लगभग 20 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ यह ताल, जल का एक महत्वपूर्ण स्रोत होने के साथ-साथ कमल की खेती के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां उगने वाले कमल के फूल और कमलगट्टे का व्यापार न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि देश-विदेश में भी तेजी से बढ़ रहा है।

ग्रामीणों की रोजी-रोटी का आधार

ताल सलोना का क्षेत्रवासियों के जीवन में खास महत्व है। यह ताल उनके रोजगार का सबसे बड़ा साधन है। क्षेत्र के स्थानीय निवासी सुखदेव के अनुसार, ताल में उगने वाले कमलगट्टे की मांग बनारस और अन्य क्षेत्रों में बहुत अधिक है। खासकर, कुकुरही, भीटी शाहखजुरा, ऊंजी और विजयीपुर जैसे गांवों के ग्रामीणों के लिए कमलगट्टे का कारोबार आजीविका का प्रमुख हिस्सा बन चुका है।

ताल सलोना का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

ताल सलोना का इतिहास काफी पुराना है, और इसे स्थानीय लोग अपने सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों के लिए भी उपयोग में लाते हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस तालाब का जल पवित्र माना जाता है, और इसके किनारे कई धार्मिक अनुष्ठान और उत्सव आयोजित किए जाते हैं। यहां का शांत वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में भी उभरने का अवसर प्रदान करता है।

कमलगट्टे की बढ़ती मांग और बाजार में दाम

पहले यहां उगाए जाने वाले कमलगट्टे का इस्तेमाल केवल स्थानीय स्तर पर होता था, लेकिन अब इसका व्यापार बनारस, कोलकाता समेत देश के कई हिस्सों में फैल चुका है। बाजार में कमलगट्टे की मांग इतनी बढ़ गई है कि बनारस की मंडियों में यह ₹150 से ₹200 प्रति किलो की दर से बिक रहा है। यही कारण है कि यहां के लोगों के लिए कमलगट्टा एक प्रमुख रोजगार का साधन बन गया है।

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विदेशों में भी बढ़ी डिमांड

अजमतगढ़ और बनारस में कमलगट्टे का व्यापार करने वाले शंभू और अशोक ने बताया कि सितंबर और अक्टूबर के महीने में यह कमलगट्टे बनारस और कोलकाता की मंडियों में भेजे जाते हैं। इन मंडियों से इन्हें चीन और थाईलैंड समेत अन्य देशों में निर्यात किया जाता है। खासकर चीन में रहने वाले भारतीयों के बीच कमलगट्टे की बहुत मांग है। इसके पौष्टिक गुणों के कारण विदेशों में भी इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है।

कमल के फूल और गट्टों की खेती से किसानों को फायदा

कमल गट्टा मुख्यतः कमल के फूलों से प्राप्त होता है। इस ताल में कमल के फूलों की भी अच्छी पैदावार होती है, जिससे किसानों को दोहरा लाभ मिलता है। एक ओर जहां वे कमल के फूल बेचकर मुनाफा कमाते हैं, वहीं दूसरी ओर कमलगट्टे की बिक्री से अतिरिक्त आय होती है। ताल सलोना के चलते यहां के किसानों को खेती में विशेष लाभ मिल रहा है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार आया है।

कमलगट्टा: पोषण और स्वास्थ्य का खजाना

ताल सलोना में पाए जाने वाले कमलगट्टे का पोषण संबंधी महत्व भी बहुत अधिक है। इसे “मखाना” के नाम से भी जाना जाता है और आयुर्वेद में इसका विशेष स्थान है। यह न केवल प्रोटीन और फाइबर से भरपूर होता है, बल्कि इसमें कई महत्वपूर्ण खनिज और एंटीऑक्सीडेंट भी पाए जाते हैं। इसे स्वास्थ्यवर्धक स्नैक के रूप में खाया जाता है, जो वजन घटाने, मधुमेह नियंत्रण और हृदय स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है।

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कमलगट्टे की प्रोसेसिंग और निर्यात

ताल से कमलगट्टे को इकट्ठा करने के बाद उन्हें सुखाया और प्रोसेस किया जाता है। इसके बाद यह उत्पाद स्थानीय और बाहरी बाजारों में भेजे जाते हैं। इस प्रक्रिया में कई ग्रामीण महिलाएं और परिवार जुड़े हुए हैं, जिससे उन्हें भी रोजगार का साधन मिल रहा है।

प्रोसेसिंग प्रक्रिया के मुख्य चरण:

1. फूलों की कटाई: तालाब से कमल के फूलों की कटाई की जाती है।

2. बीज निकालना: फूलों से गट्टों (बीज) को निकालकर अलग किया जाता है।

3. सुखाना: इन गट्टों को धूप में सुखाया जाता है ताकि उनकी गुणवत्ता बनी रहे।

4. पैकेजिंग: सुखाने के बाद इन्हें पैक करके स्थानीय मंडियों और निर्यात के लिए तैयार किया जाता है।

स्थानीय व्यापार का नया केंद्र

ताल सलोना के कारण आजमगढ़ धीरे-धीरे कमल और कमलगट्टे के उत्पादन का केंद्र बनता जा रहा है। स्थानीय किसानों ने इसकी खेती को एक व्यावसायिक अवसर के रूप में अपनाया है। इससे आजमगढ़ का नाम अब सिर्फ शिक्षा और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए ही नहीं, बल्कि कृषि उत्पादों के लिए भी जाना जाने लगा है।

बनारस और कोलकाता में इसकी बड़ी मंडियां हैं, जहां से यह उत्पाद देश के अन्य हिस्सों के साथ-साथ चीन, थाईलैंड और अन्य एशियाई देशों में निर्यात किए जाते हैं। स्थानीय व्यापारी इस तालाब से सीधा जुड़कर अपने उत्पाद को अंतरराष्ट्रीय बाजार में भेज रहे हैं, जिससे जिले की अर्थव्यवस्था को भी बल मिल रहा है।

तालाब के पर्यावरणीय लाभ

ताल सलोना के आसपास के क्षेत्रों में तालाब का एक बड़ा पर्यावरणीय लाभ भी है। यह जल स्तर को बनाए रखने में मदद करता है और क्षेत्रीय जलवायु को संतुलित करता है। साथ ही, तालाब के चारों ओर जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है, जिससे पक्षी, मछलियां और अन्य जलचर जीवों का संरक्षण होता है।

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चुनौतियां और भविष्य की संभावनाएं

हालांकि ताल सलोना ने क्षेत्र में रोजगार और आर्थिक विकास के कई नए अवसर पैदा किए हैं, लेकिन इस क्षेत्र में कुछ चुनौतियां भी हैं। तालाब की सफाई, जल स्तर का रखरखाव और बढ़ते प्रदूषण के खतरे से इसे बचाना एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि ताल सलोना की प्राकृतिक संपदा को लंबे समय तक संरक्षित रखा जा सके।

ताल सलोना के प्रबंधन में सुधार करके इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की भी संभावनाएं हैं। इस क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं का विकास करके, इसे ग्रामीण पर्यटन का केंद्र बनाया जा सकता है, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था को और मजबूत करेगा।

ताल सलोना आजमगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए वरदान साबित हो रहा है। यह तालाब न केवल जल का स्रोत है, बल्कि यहां के किसानों और ग्रामीणों के लिए कमलगट्टे की खेती के माध्यम से आर्थिक समृद्धि का एक नया द्वार खोल रहा है। भविष्य में सही दिशा में प्रयास किए जाने पर, यह क्षेत्र न केवल आत्मनिर्भर बन सकता है, बल्कि एक उदाहरण के रूप में उभर सकता है, जहां परंपरा और आधुनिकता का संगम हो।

ताल सलोना न केवल जल का स्रोत है, बल्कि यह ग्रामीणों के लिए आजीविका का एक महत्वपूर्ण आधार बन चुका है। यहां की जलवायु और मिट्टी कमल की खेती के लिए अनुकूल हैं, जिससे न सिर्फ स्थानीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी आजमगढ़ के कमलगट्टों की मांग बढ़ी है। ऐसे में यह ताल क्षेत्रवासियों के लिए वरदान साबित हो रहा है, जो उनके जीवन स्तर को सुधारने में अहम भूमिका निभा रहा है।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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