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November 22, 2024 7:13 pm

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मौसम की बेरुखी कहीं कहर न बरपा दे…सूखे का डर सताने लगा है बुंदेलों को

14 पाठकों ने अब तक पढा

आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि इस सावन के मास में जहाँ चारों ओर “हरियाली” का आलम होता है तथा इसी माह में किसान अपने आने वाले कल को संवारने को लेकर तरह तरह की परिकल्पना करते हुये दिन रात मेहनत कर अपने “खेतों” की जुताई बुआई आदि कार्य जहाँ बड़ी उम्मीदों के साथ करता है वहीं इस वर्ष भी “कुदरत की मार” झेल रहा “अन्नदाता” मौसम की इस कदर बेरूखी के चलते आज बुन्देलखण्डवासी किसानों को सूखे का भय सताने लगा है।

विगत दिनों किसानों ने बड़ी उम्मीदों के साथ अपने-अपने संसाधनों से “धान” की खेती के लिए रोपा ( बेड़) बो दिए, जो अब खेतों में लहलहाती हुयी लगने के लिए तैयार खडी है। बहुत से किसानों ने “दलहन” एवं “तिलहन” की फसल भी बो रखी है। किंतु वर्तमान में वर्षा ना होने से अन्नदाताओं के चेहरो में “मायूसी” के साथ-साथ अपने एवं परिवार के “पालन पोषण” को लेकर उनके माथे पर चिंता की लकीरों ने डेरा जमा दिया है।

विगत दिनों 14 जून को बोई हुई बेडे़ ( धान का पौधा) “मुर्झाने” लगी हैं “सब्जियों” के पौधे कुम्हलाने लगे हैं धरती पुत्र किसान पानी के लिये आसमान की ओर निहार रहा है । “इंद्रदेव” से आज प्रार्थना कर रहा है कि हे प्रभु आसमान में मंडरा रहे काले भूरे बादलों को आदेश दो कि वह हमारी इस “जीवनदायिनी” धरती माँ को अपने “अमृतरुपी” जल से सिंचित करें। जिससे हम अपने परिवार सहित अपने दरवाजे पर आए हुए “अतिथि को भोजन दे सकें। भूखे इंसान की भूख मिटा सकें तथा इसके बाद अपनी “जरूरतों” को पूरा कर सके। किंतु लगता है कि शायद “मजबूर” एवं निराश “अन्नदाताओं” की पुकार भी वहाँ तक नहीं पहुंच रही।

आज समूचे बुन्देलखण्ड का किसान “बरसात” को लेकर चिंतित है। एक तरफ इंद्रदेव नहीं सुन रहे तो दूसरी तरफ “विद्युत” विभाग भी “कोढ़” में “खाज” की तरह काम कर रहा है अघोषित कटौती, लो वोल्टेज की मार झेलता किसान त्राहि माम कर रहा है। किन्तु उसकी गुहार सुनने वाला शायद कोई नहीं! अगर वही उसे पर्याप्त विद्युत सप्लाई दे दे ताकि जिससे वह ट्यूबबेल के जरिये अपनी खेती का कार्य प्रारंभ कर सके। इसके अलावा हर किसान इस उम्मीद के साथ आज भी आस लगाये बैठा है कि देर से ही सही शायद ईश्वर उनकी प्रार्थना सुनले और अपने मेघों को भेज कर सूखे के अंदेशा को समाप्त कर इस “जीवनदायिनी मातृभूमि” बसुन्धरा को वर्षा कर हरा भरा कर दें।

ऐसे में देखना यह है कि अन्नदाताओं की पुकार ईश्वर पहले सुनता है या फिर आजकी सरकार?

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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