चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
गोंडा जिले के कौड़िया थाना क्षेत्र के ग्राम पंचायत जेठपुरवा के छोटे से गांव गोसाई पुरवा में आज खुशी और आश्चर्य का अनोखा मिश्रण देखने को मिला।
51 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद त्रिजुगी नारायण अपने घर लौटे हैं, जिनके लौटने की आस परिवार ने कब की छोड़ दी थी।
समय ने उनके परिवार को यह मानने पर मजबूर कर दिया था कि वे शायद अब इस दुनिया में नहीं हैं। पर जब त्रिजुगी घर से निकले थे, तब वे एक 17 वर्षीय नवयुवक थे, और अब जब लौटे हैं तो 68 साल के वृद्ध बन चुके हैं, जिनके चेहरे पर अनुभव और संघर्ष की झुर्रियां स्पष्ट दिखती हैं।
उन दिनों त्रिजुगी की जिंदगी में एक नया मोड़ तब आया जब वे अचानक घर से गायब हो गए। वर्षों तक उनके परिजनों ने उन्हें खोजा, परंतु उनका कोई पता न चल सका।
धीरे-धीरे उम्मीदें धुंधली होती गईं और उनके नाम का सिर्फ स्मृतियों में एक धुंधला सा अक्स बाकी रह गया। इस बीच, उनका जीवन दिल्ली के व्यस्त गलियों और फिर श्रीलंका के सुदूर समुद्री तटों पर बसर हुआ।
त्रिजुगी बताते हैं कि दिल्ली की भीड़ में एक अजनबी से मुलाकात ने उनकी किस्मत को मोड़ दिया। वह अजनबी उन्हें पानी के जहाज से श्रीलंका ले गया, और फिर वहीं त्रिजुगी का जीवन किसी खानाबदोश की तरह बीतने लगा।
श्रीलंका की उस पराई जमीन पर त्रिजुगी का जीवन एक अनजान कहानी की तरह लिखा गया, जहां समुद्र की लहरें उनकी साथी थीं और एक अजनबी संसार ने उन्हें अपने भीतर समेट लिया था।
वहां न उन्हें किसी चीज की कमी थी, न कोई बड़ी परेशानी, पर अपने घर, अपनी मिट्टी की यादें हमेशा उनके दिल को कचोटती रहीं। उन्होंने रातों को अपने परिवार और भाईयों को याद कर आंसू बहाए, लेकिन समुद्र के विस्तार ने उन्हें अपने घेरे में इस कदर बांध लिया था कि वह चाहकर भी लौट नहीं सकते थे।
वर्षों बाद, जब उनकी किस्मत ने एक बार फिर करवट ली, तब श्रीलंका में उन्हें एक भारतीय व्यक्ति मिला जिसने उनकी व्यथा सुनी और सहृदयता से उन्हें अपने साथ आंध्र प्रदेश के हैदराबाद तक ले आया। परंतु त्रिजुगी का मन अब भी अशांत था।
कुछ समय तक हैदराबाद की गलियों में भटकने के बाद उन्होंने दिल्ली की राह पकड़ी। दिल्ली में किस्मत ने फिर से उनकी सहायता की।
एक व्यक्ति ने उनकी बोली सुनकर पहचान लिया कि वे गोंडा जिले के हो सकते हैं। जब उसने पूछा, तो त्रिजुगी ने अपने गांव का नाम बताया और अपनी घर लौटने की इच्छा प्रकट की। वह व्यक्ति उन्हें स्टेशन तक छोड़ गया और ट्रेन में बैठा दिया।
गोंडा पहुंचकर स्टेशन पर जब त्रिजुगी के आगमन की सूचना उनके परिवार को मिली, तो जैसे समय ने एक झटका खाया।
वर्षों की प्रतीक्षा एक ही पल में समेटी गई, जब उनका परिवार उन्हें घर ले आया। 51 वर्षों के लंबे इंतजार, संघर्ष, और अनकही कहानियों के बाद त्रिजुगी नारायण का गांव लौटना किसी चमत्कार से कम नहीं था।
उनकी आंखों में अब भी समुद्र की अनंत गहराइयों की झलक थी, लेकिन उनके चेहरे पर अपने गांव की मिट्टी का स्पर्श था।
त्रिजुगी नारायण की यह अद्भुत यात्रा केवल उनके जीवन की कहानी नहीं है, बल्कि यह उम्मीद, साहस और असंभव को संभव बना देने की ज्वलंत मिसाल है।