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हास परिहास

‘गोली’ सह लेता ‘गाली’ खा लेता पर ‘गाय’ से डर लगता है साहब….

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पी.ए. सिद्धार्थ

गाय, गाली और गोली में दो समानताएं हैं। पहला, इन तीनों का आरम्भाक्षर ग है। दूसरा, समय, मौत और ग्राहक की तरह ये न तो किसी का इन्तज़ार करती हैं और न किसी से पूछ कर आती हैं। गाय कहीं भी और कभी भी आपके पेट में सींग घुसा सकती है या आपके खेतों में घुस कर उन्हें उजाड़ सकती है। गाली किसी को भी, कभी भी और कहीं भी दी जा सकती है और गोली पर तो बिल्कुल भरोसा नहीं करना चाहिए। क्या पता चार महीनों से मणिपुर हिंसा में चलाई जा रही गोलियों की तरह कोई गोली कभी भी, किसी भी दिशा से आकर आदमी में छेद कर जाए। ख़ासकर, पुलिस की गोली से तो और भी बच कर रहना चाहिए, जो चलती है पाँव की तरफ और लगती आकर सिर में है। लेकिन अन्य प्रदेशों की पुलिस की दम्बूक से चलने वाली गोली फिर भी इतनी ख़तरनाक नहीं, जितनी कि योगी की उत्तम प्रदेश पुलिस के मुँह से चलने वाली गोली है। बेचारा भयभीत अपराधी बिना गोली लगे ही यमलोक सिधार जाता है। लेकिन वर्तमान में गाय, गाली और गोली से ज़्यादा ख़तरनाक हो उठी है। यक़ीन न हो तो आप उन लोगों की आत्माओं से पूछ सकते हैं जिन्हें गो माँस रखने या तस्करी के आरोपों में पीट-पीट कर मार दिया गया या फिर जि़न्दा जला दिया गया। मैं जब भी किसी गाय को देखता हूँ तो दबंग फिल्म का सोनाक्षी सिन्हा का डायलॉग याद आ जाता है, थप्पड़ से नहीं प्यार से डर लगता है।

इसी तरह मुझे शेर से नहीं, गाय से डर लगता है। हो सकता है शेर आपको छोड़ भी दे लेकिन आप अगर गाय पालने के लिए भी ले जा रहे हों तो किसी गोभक्त की नजऱ पडऩे पर आप वीरगति को प्राप्त हो सकते हैं। मेरे एक मित्र कहते हैं कि शायद चीनी सीमा पर जाने से आदमी बच भी जाए लेकिन गाय के पास जाने के दो ख़तरे हैं- एक तो आप गाय के द्वारा सिंगयाए जा सकते हैं, दूसरे किसी गोभक्त द्वारा पीटे जा सकते हैं। हां, इस काल खंड में गाय का इतना लाभ अवश्य हुआ है कि जब से भाजपा सरकार के आने के बाद देश में भाजपा समर्थकों की नस-नस में गोभक्ति फूट-फूट कर बहने लगी है, सडक़ों पर माताओं और पिताओं की संख्या इतनी बढ़ गई है कि वे फ्लोटिंग स्पीड ब्रेकर का काम करने लगे हैं। इससे लोग घायल हों तो हों या किसी दुर्घटना में मारे जाएं, पर वाहनों की गति पर नियंत्रण साधने में उनकी भूमिका महती हो उठी है।

अगर सरकार थोड़े से प्रयास करे तो योग दिवस की तरह विश्व में अन्तरराष्ट्रीय गाय दिवस की शुरुआत की जा सकती है। इससे गोभक्तों को साल में एक बार संयुक्त मंच पर एकत्रित होने का मौक़ा मिलेगा और शायद सडक़ पर भटकती गायों को साल में एक दिन, एक बार पेट भर चारा खाने को मिल जाए। सरकार को इसका सबसे बड़ा लाभ होगा कि सभी गोभक्तों के एक मंच पर आने से उसे तमाम मोंटू मानेसरों और बिट्टू बजरंगियों की ऐसी सूची बनाने में मदद मिलेगी, जिन्हें गो रक्षा के लिए देश भर में तैनात करने के अलावा किसी भी स्थान पर नूह की तजऱ् पर यात्राएं निकालने के लिए भेजा जा सकेगा। जहां तक हिन्दुओं और गोभक्तों का सवाल है वे गोमाता को नकारा होने के बाद किसी चौराहे या सडक़ पर भटकने के लिए खुला छोड़ दें, कोई हजऱ् नहीं। बात गाय को मारने-पीटने या खुला छोडऩे की नहीं, भावनाओं की है। गाय को हम किसी कसाई को बेचें, सडक़ पर छोड़ दें, पर बात भावना की है। गाय सडक़ों पर गन्दगी खाती रहे तो खाए, हमारी बला से। लेकिन हमारी भावनाएं उससे जुड़ी हैं। उसे कभी किसी विधर्मी द्वारा काटा नहीं जाना चाहिए। यही हमारे गो रक्षा अभियान का मूलमंत्र और सम्बल है। ऐसी ही भावनाएं मां-बाप से जुड़ी हैं। बोझ लगने पर भले उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ दें, पर बात भावनाओं की है। मरने के बाद उनका श्राद्ध ज़रूरी है। (लेखक स्वतंत्र रूप से लेखन करते हैं)

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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