आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
रात के अंधेरे में वो दबे पांव आ सकते हैं आपके घर, एक के पीछे एक करीब 5 से 10 लोग। उनके हाथ में हाथ में डंडे, कुल्हाड़ी, चाकू या बंदूक कुछ भी हो सकती है। उनके शरीर में सिर्फ कच्छा और बनियान होगा, लेकिन चेहरा एक कपड़े से ढका हुआ होगा। शरीर के हर हिस्से में ढेर सारा तेल लगा हुआ होगा और फिर वो अंधेरे में ही आपके ऊपर वार कर सकते हैं, यहां तक की मौत भी दे सकते हैं। उनका मकसद है आपके घर का कीमती सामान चुराना।
फिर शुरू हो चुकी है कच्छा-बनियान गिरोह की दहशत
हम आपको डराना नहीं चाहते, लेकिन ये सच है। 90 के दशक में जो लोग शहरों में रहते थे उन्हें शायद याद होगा कच्छा बनियान गिरोह। उन्हें याद होगी वो दहशत जो गिरोह ने मचाई थी। रात होते ही लोग अपने घरों के दरवाजे खिड़कियां बंद कर लेते थे ताकि इस गैंग के लोग हमला न कर दे। वही गैंग अब एक बार फिर एक्टिव हो चुका है। कुछ सालों तक ऐसा लगा था कि शायद ये गिरोह खत्म हो चुका है, लेकिन अब इसने दहशत फैलानी शुरू कर दी है।
जून महीने में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में इस गिरोह के 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इन्होंने आसपास के इलाके में डकैती की थी। इनके पास से पुलिस को 8 लाख रुपये के गहने, एक लाख रुपये कैश और एक चाकू बरामद हुआ था। पिछले कुछ सालों में ये गैंग पूरी तरह से खत्म हो चुका था, लेकिन अब एक बार फिर इस गैंग के लोग डकैतियों को अंजाम दे रहे हैं।
मध्यप्रदेश के इंदौर में 6-7 घरों को इस गैंग के लोगों ने निशाना बनाया है। इनमें से एक रिटायर्ड आईएएस ऑफिसर रेणु पंत का घर भी है। जहां इस गैंग के लोग रविवार की रात घुसे। पूरे परिवार को बंधक बनाया और घर से सारा सोना-चांदी, फॉरेन करंसी, सोने के मेडल और दूसरा कीमती सामान लूटकर ले गए। बाद में सीसीटीवी फुटेज की को खंगाला गया तो सामने आई कच्छा बनियान गिरोह की तस्वीरें। कुछ दिन पहले ही इस गिरोह ने इंदौर हाइवे के पास बने कुछ घरों को अपना निशाना बनाया था।
कैसे बना ये गैंग?
सबसे पहले जान लीजिए ये गैंग कैसे बना। ये कोई संगठित गैंग नहीं है, लेकिन अलग-अलग राज्यों के कुछ लोग एक ही अंदाज में चोरी, डकैतियों के अंजाम देते चले गए। इसमें गुजरात, राजस्थान और बिहार के ज्यादा लोग शामिल रहे हैं। इस गैंग के ज्यादातर लोग आदिवासी थे। उस दौर में हाईवे के आसपास कम कॉलोनियां हुआ करतीं थी जो कि शहरों से थोड़ा दूर होती थी। पैसे की कमी की वजह से इन्होंने ऐसे घरों में लूटपाट शुरू की।
क्यों पड़ा कच्छा-बनियान गैंग नाम?
ये लोग सिर्फ कच्छा-बनियान पहनकर चोरी-डकैती को अंजाम देते थे और इसकी दो वजह थीं। एक तो ये ज्यादातर आदिवासी लोग थे जिनके पहनावा ही कुछ इस तरह का होता था। दूसरा कच्छा बनियान पहनकर इन्हें अपनी पहचान छुपाना आसान रहता था। ये अपने काम पर निकलने से पहले पूरे शरीर में तेल लगाते थे, ताकि अगर ऐसे हालात बने तो ये भाग सकें और किसी की पकड़ में ना आएं। चेहरे को ये कपड़े या मास्क से ढक लेते हैं। सारे एक ही तरह के कच्छा-बनियान में होने की वजह से इनको पहचानना पुलिस के लिए भी मुश्किल हो जाता है।
क्या है इस गैंग के काम करने का तरीका?
इस गैंग के लोग सुबह-सुबह अपने गांव से निकल आते हैं और शहरों में बस अड्डे के आसपास इकट्ठा हो जाते हैं। दिन भर मजदूर या भिखारी बनकर ये ये उन घरों के आसपास घूमते रहते और रेकी करते हैं जहां इन्हें लूट करनी होती है। फिर रात में जब घरों के लोग सो जाते हैं तब ये 5-10 लोग मिलकर उन घरों की तरफ निकलते हैं। कच्छा बनियान पहनकर हाथों में डंडे, कुल्हाड़ी, चाकू या फिर बंदूक लेकर ये लोग दबे पांव घरों में घुस जाते हैं। ये घरों के लोगों को बंधक बना देते हैं या फिर मौत के घाट उतार देते हैं। अगर किसी ने चीखने-चिल्लाने की कोशिश की तो ये हथियारों से हमला करते हैं। इसके बाद ये उस घर में मौजूद सारा कीमती सामान चुरा कर रफू चक्कर हो जाते हैं।
90 के दशक में कच्छा-बनियान गैंग का सबसे ज्यादा आतंक दिल्ली-एनसीआर, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान में था। मुंबई में भी इस गैंग के कुछ लोगों ने कुछ वारदातों को अंजाम दिया था, लेकिन राजधानी दिल्ली के आसपास तो ये गैंग अक्सर ही लूट-पाट की घटनाओं को कर रहा था। उस दौर में ये गैंग काफी ताकतवर हो गया था। दिल्ली पुलिस ने इस गैंग से निपटने के लिए कई ऑपरेशन्स भी चलाए थे।
कच्छा-बनियान गिरोह पर पिछले साल नेटफ्लिक्स पर एक सीरीज भी आई थी जिसमें दिखाया गया था कि कैसे दिल्ली पुलिस ने इस गैंग से निपटने के लिए काम किया। ऐसा लगा था कि कुछ समय के लिए इस गैंग के लोग गायब हो चुके हैं, लेकिन अब एक बार फिर ये गिरोह जाग चुका है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."