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आगरा

निकाय चुनाव ; बसपा की रणनीति लगा सकती है ‘किले’ में सेंध, भाजपा की राह नहीं आसान

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ठाकुर धर्म सिंह ब्रजवासी की रिपोर्ट 

आगरा: तीन दशकों से आगरा की सरकार पर कब्जा जमाए बैठी बीजेपी की राह इस बार आसान नहीं दिख रही। टिकट के बंटवारे से नाराज खटीक समाज (परंपरागत बीजेपी सपोर्टर) में बगावत के सुर बुलंद हो रहे हैं। इसके साथ ही बीएसपी का वाल्मीकि कार्ड पार्टी को मजबूती प्रदान कर रहा है। बीएसपी की प्रत्याशी लता वाल्मीकि समाज में पैठ बनाने में जुट गई हैं। आगरा में ये बीजेपी का वोट माना जाता है, जो इस बार बीएसपी की ओर मुड़ सकता है। जानकारों के अनुसार खटीक समाज की बेरुखी और वाल्मीकि, जाटव और मुस्लिम गठजोड़ निकाय चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर सकता है।

आगरा में यूपी निकाय चुनाव 2023 के पहले चरण में 4 मई को मतदान होगा। दलित बाहुल्य आगरा की मेयर सीट सुरक्षित है। बीएसपी अपने कैडर वोट जाटव के साथ-साथ वाल्मीकि और खटीक समाज पर पूरा फोकस कर रही है। बीजेपी में मेयर सीट के लिए नामांकन करने वाली गुंजन राजौरा का टिकट कटने और पार्षद पद पर भी टिकट नहीं देने से खटीक समाज में रोष है। यही वजह है कि सोमवार को खटीक पाड़ा में चुनाव बहिष्कार का पोस्टर लगाया दिया गया। इधर, पोस्टर की खबर मिलते ही बीजेपी के नेताओं में हड़कंप मच गया। खटीक समाज के कुछ नेताओं को साथ लेकर उन्हें साधने का प्रयास तो किया, लेकिन शहर की राजनीति में भागीदारी मांग रहे खटीक समाज को नजरअंदाज करना बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।

क्या हैं जातिगत आंकड़े

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आगरा की नगर निगम सीमा में 16. 67 लाख वोटर हैं। दलितों की संख्या करीब 40 से 45 फीसद है, जिनमें सबसे अधिक जाटव अनुमानित 4 से 4.50 लाख है। वहीं 80 हजार से 1 लाख वाल्मीकि समाज, 70 से 80 हजार खटीक समाज इसके अलावा अन्य जातियों के वोटर शामिल हैं। वहीं वैश्य 2 से 2.50 लाख, ब्राह्मण समाज के 1 लाख के करीब वोटर हैं। इसके साथ ही मुस्लिम समाज का एक से 1.50 लाख वोट हैं।

आंकड़ों में फंसी है बीजेपी

पिछले निकाय चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी नवीन जैन 2.17 लाख वोट लेकर विजयी हुई थे। उन्होंने बीएसपी के दिबंगर सिंह धाकरे को हराया था। सामान्य सीट होने के चलते धाकरे को 1.43 लाख वोट मिले थे। जानकार मानते हैं कि ये वोट बीएसपी का कैडर वोटर था। इसके अलावा मुस्लिम कैंडीडेट चौधरी बशीर ने 35,243 वोट हासिल किए थे। बीजेपी ने हेमलता दिवाकर कुशवाहा को टिकट दिया है, जबकि दिवाकर समाज के वोट काटने के लिए आम आदमी पार्टी ने सुनीता दिवाकर को मैदान में उतारा है।

मुस्लिम फैक्टर का क्या?

राजनीति के जानकार कहते हैं कि पिछले चुनाव में चौधरी बशीर ने समाजवादी पार्टी और बीएसपी को नुकसान पहुंचाया था। इसके अलावा एक निर्दलीय प्रत्याशी विमल कुमार को करीब 10,986 वोट मिले थे। ये दलित वोट बताए जाते हैं। मुस्लिम समुदाय के लोगों में चर्चाएं हैं कि वे उसी कैंडीडेट को वोट देने वाले हैं, जो बीजेपी को शिकस्त दे सकता है। कयास है कि वाल्मीकि और जाटवों के गठजोड़ में मुस्लिम समुदाय बीजेपी को हराने के लिए बीएसपी की ओर मुड़ सकता है। सुरक्षित सीट होने से इस बार मुस्लिम प्रत्याशी भी मैदान में नहीं है, जो मुस्लिम मतदाताओं को प्रभावित कर सके।

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Author: samachardarpan24

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