📝 आगरा के पनवारी जातीय दंगे मामले में 34 साल बाद कोर्ट ने सुनाया फैसला। 36 दोषी करार, 15 बरी। जानिए 1990 में हुए इस बड़े हादसे की पूरी कहानी और इसके असर।
ब्रजकिशोर सिंह की रिपोर्ट
🔍 आखिरकार 34 साल बाद आगरा के बहुचर्चित पनवारी कांड में कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है। 1990 में हुए इस जातीय दंगे के मामले में 80 आरोपियों में से 36 को दोषी करार दिया गया है, जबकि 15 लोगों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया। वहीं, 27 अन्य आरोपियों की पहले ही मृत्यु हो चुकी है।
क्या हुआ था पनवारी कांड में?
यह मामला 21 जून 1990 का है। आगरा के सिकंदरा थाना क्षेत्र के गांव पनवारी में चोखेलाल जाटव की बेटी मुंद्रा की बारात आई थी। दूल्हा नगला पद्मा गांव से आया था, लेकिन बारात की चढ़त जाट समुदाय के मोहल्ले से होकर जानी थी।
जैसे ही बारात चढ़ने लगी, जाट समुदाय के लोग विरोध में घरों के बाहर आ गए और चढ़त को रोक दिया। इसी बात को लेकर तनाव बढ़ गया।
🔥 दंगे की चिंगारी कैसे बनी आग?
अगले दिन, यानी 22 जून को, पुलिस ने बारात की चढ़त कराने का प्रयास किया। लेकिन भीड़ बेकाबू हो गई। बताया गया कि 5-6 हजार लोगों की भीड़ ने बारातियों को घेर लिया। पुलिस ने हालात काबू में लाने के लिए बल प्रयोग किया, लेकिन भीड़ ने पथराव और फायरिंग शुरू कर दी।
इसी दौरान सोनी राम जाट की गोली लगने से मौत हो गई। यही घटना दंगे का टर्निंग पॉइंट बनी।
जाटव परिवारों के घरों में लगाई गई आग
जैसे ही मौत की खबर फैली, पूरे शहर में तनाव फैल गया। जाटव समुदाय के कई घरों को आग के हवाले कर दिया गया। स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि आगरा में 10 दिनों तक कर्फ्यू लगाना पड़ा। इस जातीय हिंसा की आंच दिल्ली और लखनऊ तक महसूस की गई। हालात का जायजा लेने के लिए खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को आगरा आना पड़ा।
दंगे में नेताओं की भी हुई थी भूमिका
इस मामले में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री रामजी लाल सुमन खुद बारात की चढ़त कराने पहुंचे थे। इसके अलावा, फतेहपुर सीकरी से विधायक रहे चौधरी बाबूलाल का नाम भी सामने आया था।
उस वक्त के डीएम अमल कुमार वर्मा और एसएसपी कर्मवीर सिंह ने हालात को नियंत्रित करने के लिए आम लोगों और समुदायों के साथ बैठकें की थीं।
⚖️ कोर्ट का फैसला: न्याय की दिशा में एक कदम
डीजीसी हेमंत दीक्षित के अनुसार, इस मामले में 80 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी। इनमें से 27 की मृत्यु हो चुकी है। बचे 53 में से 36 को दोषी पाया गया, जबकि 15 को बरी कर दिया गया। तीन आरोपी अब भी फरार हैं, जिनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया है।
चौंकाने वाली बात यह है कि दोषियों में एक 115 साल का बुजुर्ग भी शामिल है।
📌पनवारी कांड ने न सिर्फ आगरा, बल्कि पूरे उत्तर भारत को हिला दिया था। दशकों तक पीड़ितों को न्याय का इंतज़ार करना पड़ा। अब जब कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है, तो यह न्यायपालिका की ताकत और कानून के प्रति आस्था का प्रमाण है।