google.com, pub-2721071185451024, DIRECT, f08c47fec0942fa0
खास खबर
Trending

मलियाना ; जब आंखों के सामने अपने तोड़ रहे थे दम, चारों ओर मची थी चीख-पुकार…

IMG-20250425-WA1484(1)
IMG-20250425-WA0826
IMG-20250502-WA0000
Light Blue Modern Hospital Brochure_20250505_010416_0000
IMG_COM_202505222101103700

कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट 

मलियाना नरसंहार में 36 साल बाद मथुरा जिला कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए 41 आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट का कहना है कि भीड़ में मौजूदगी मात्र से कोई आरोप नहीं बन जाता है। 31 मार्च को एडीजे लखविंदर सिंह सूद की अदालत ने कहा कि आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत उपलब्ध नहीं हैं और सबूतों की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह पैदा होता है। वहीं, घटना के पीड़ितों ने अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया है।

23 मई, 1987 को हुई इस घटना में 68 मुस्लिमों की जानें गई थीं। मलियाना गांव मेरठ के बाहरी हिस्से में पड़ता है। इस घटना के बाद यहां से कई लोगों ने पलायन कर लिया, जबकि कुछ ने वहीं रुकने का फैसला किया। इस हिंसा में 106 घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। हर तरफ चीखपुकार का माहौल था। लोगों ने अपने अपनों को आंखों के सामने दम तोड़ते देखा। इस हादसे के गवाह आज भी इस दर्दनाक घटना को भूल नहीं पाए हैं।

याकूब अली बताते हैं कि उस दिन वे पास की ही एक मस्जिद में नमाज पढ़ रहे थे, तभी उन्हें गोलियों की अवाज सुनाई दी और वह जान बचाने के लिए अपने घर की तरफ भागे। उन्होंने बताया कि कुछ लोग ओपन फायरिंग कर रहे थे और कई घरों में आग लगा दी गई थी। इस समय याकूब की उम्र 63 साल है। उन्होंने बताया कि इस दौरान उनके पैर में चोट लगी थी। इसके बाद पीएसी का एक जवान उन्हें पुलिस स्टेशन ले गया, तब जाकर उनकी जान बची। उन्होंने कहा, “इस हिंसा में मेरे भतीजे की जान चली गई। उसकी गर्दन में गोली मारी गई थी…” कोर्ट के फैसले पर उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा कि 36 साल बाद केस पर सुनवाई क्यों हुई अगर किसी ने हमें नहीं मारा तो। अपनों की मौत पर उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि तो किसने उन्हें मारा और हमारे घर किसने जलाए।

वकील अहमद सिद्दीकी एक टेलर हैं और इस नरसंहार के पीड़ित हैं। इस हादसे में उनकी जमी-जमाई दुकान में आग लगा दी गई थी, जिसे दोबारा शुरू करने में उन्हें कई साल लग गए। वह बताते हैं कि उनके घर में एक शख्स ऐसा नहीं था, जिस पर हमला ना किया गया हो। उन्होंने कहा कि मुझे आज भी याद है, चारों तरफ सिर्फ चीख-पुकार, खून और लाशें पड़ी थीं। इस हादसे में उन्हें भी पेट और हाथ में गोली लगी थी।

आप को यह भी पसंद आ सकता है  अपने मौलाना प्रेमी के साथ मिलकर इस औरत ने जो उठाया खौफनाक कदम वो सुनकर आप सन्न रह जाएंगे

इस हिंसा में किसी ने अपने माता-पिता खोए तो किसी के अपने लापता हो गए। 61 वर्षीय रहीज अहमद के पिता कानुपर से उसी दिन लौटे थे और हिंसा में लापता हो गए। रहीज ने बताया कि हमने उन्हें सब जगह ढूंढा लेकिन वह कहीं नहीं मिले। उन्होंने बताया कि मामले के ट्रायल के दौरान कई पीड़ितों की मौत हो गई और कई परिवार गांव छोड़कर चले गए। रहीज का कहना है कि वह गांव छोड़कर नहीं गए और वह अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। मेहताब आज भी वह दृश्य नहीं भूल पाए हैं, जब खून में लिपटी उनके पिता की लाश जमीन पर पड़ी थी। उन्होंने बताया कि उनके पिता को गर्दन में गोली मारी गई थी। उन्होंने कहा, “वह (पिता) नमाज से लौटे थे और अपने घर की छत पर खड़े थे। वह सबसे शांति बनाए रखने की अपील कर रहे थे, तभी उन्हें गोली मार दी गई। हम उन्हें अस्पताल ले गए, उनको खून बह रहा था। मैं बस दो कदम की दूरी पर था और वह चले गए। हम इंसाफ पाने के लिए लड़ते रहेंगे।”

हादसे के एक और पीड़ित और चश्मदीद नवाजुद्दीन ने इस हिंसा में अपने माता-पिता दोनों को ही खो दिया था। उन्हें घर के बाहर चौक पर दोनों के जले हुए शव मिले थे। वहीं, यामीन ने भी इस हादसे में अपने पिता को खो दिया था। यामीन ने बताया कि हिंसा के दिन उनके पिता ने सभी घरवालों को अपने दलित पड़ोसी के घर भेज दिया था, लेकिन उनको दंगईयों ने मारा डाला।

78 पाठकों ने अब तक पढा
samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

आप को यह भी पसंद आ सकता है  बी0आर0सी0 तरकुलवा में मेडिकल ,एसेसमेंट कैम्प का हुआ आयोजन

[embedyt] https://www.youtube.com/embed?listType=playlist&list=UU7V4PbrEu9I94AdP4JOd2ug&layout=gallery[/embedyt]
Tags

samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की
Back to top button
Close
Close