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कुल्लूहिमाचल

यहां बीमार होना भी अभिशाप है: उखड़ती सांसों को पीठ का सहारा और नहीं कोई चारा

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मनोज उनियाल की रिपोर्ट

कुल्लू। जिला कुल्लू के कई दुर्गम क्षेत्रों के लोग आज भी नरकीय जीवन जीने को विवश हैं। सडक़ सुविधा न होने के कारण जहां लोगों को हर जरूरी सामान पीठ पर ढोकर लाना पड़ता है, वहीं बिमारी की हालत में जीवन और भी कठिन हो जाता है। अधिकतर लोगों की सांस की डोर पैदल चलते ही छूट जाती है।

इसी कड़ी में गुरुवार देर रात भारी बर्फबारी के बीच एक महिला बबली देवी के पेट में तीखी दर्द निकली और परिवार के लोग बेहद परेशान थे। बबली देवी के जीवन को बचाने के लिए परिवार के लोगों ने साहस दिखाते हुए उसे पीठ पर ढोकर भारी बर्फबारी के बीच मुख्य सडक़ तक पहुंचाया। बर्फ के बीच न तो रास्ता नजर आ रहा था और न मंजिल। फिर भी परिवार के लोगों ने हिम्मत नहीं हारी और बबली देवी को आठ किलोमीटर पीठ पर ढोकर ही सडक़ तक पहुंचाया और उसके बाद सडक़ मार्ग द्वारा 70 किलोमीटर दूर कुल्लू पहुंचाया, जहां एक निजी अस्पताल में अब गुड्डी देवी उपचाराधीन है।

बबली के भाई संतोष ने बताया कि जब भी चुनाव आते हैं, तो नेता आश्वासन देते हैं कि उनके गांव तक सडक़ पहुंचाई जाएगी, लेकिन चुनाव खत्म होते ही उनके दुखदर्द को भूल जाते हैं। उन्होंने बताया कि उनकी पंचायत के एक गांव को भी सडक़ सुविधा नहीं है, जिस कारण यहां के लोग सदियों से नरकीय जीवन जीने को विवश है। उन्होंने बताया कि बिमारी की हालत में मरीजों को कभी कुर्सी पर, कभी चारपाई पर तो कभी पीठ पर उठाकर लाना पड़ता है। लिहाजा देश आजादी का 75 वां महोत्सव मना रहा है, लेकिन जिला कुल्लू के इस गांव के लोगों तक आजादी की एक लौ भी नहीं पहुंची है।

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