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खाकी से खादी और पुलिस से पॉलिटिक्स, ब्यूरोक्रेट्स का नया वर्जन

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सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट 

कोई अधिकारी नौकरी तभी छोड़ता है जब उसके पास सेकेंड ऑप्शन मौजूद हो। ऑप्शन मतलब जब दूसरे करियर के विकल्प हों। करियर शिफ्ट होने की इस प्रोसेस में ये अधिकारी संविधान का पालन करते होंगे या किसी नेता के ऑर्डर का, इसको समझना और बताना मुश्किल नहीं है।

शुरुआत करते हैं सबसे पहले पुलिस महानिरीक्षक यानी IG के पद से रिटायर हुए कवींद्र प्रताप सिंह से। वह अभी तीन महीने पहले ही रिटायर हुए हैं। उन्हें विश्व हिंदू परिषद काशी प्रांत का प्रेसिडेंट बनाया गया है। वो अब हिंदुत्व की राजनीति करेंगे।

इसी तरह से पिछले साल यानी 1 फरवरी 2022 को अचानक से सनसनीखेज वाली खबर आती है। इनफोर्समेंट डायरेक्टरेट यानी ईडी के जॉइंट डायरेक्टर राजेश्वर सिंह भारतीय जनता पार्टी जॉइन करने वाले हैं। उस समय तक यूपी विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा हो चुकी थी।

VRS मंजूर होने के दिन ही तय हो गया कि राजेश्वर सिंह लखनऊ के सरोजनीनगर विधानसभा चुनाव से बीजेपी कैंडिडेट होंगे। यही हुआ भी। उन्होंने चुनाव जीत लिया। आज वो विधानसभा में भाजपा के सदस्य हैं। उनकी वाइफ लक्ष्मी सिंह हाल ही में नोएडा की पुलिस कमिश्नर बनाई गई हैं।

इन दोनों घटनाओं का कोई कनेक्शन हो ये जरुरी नहीं है। राजेश्वर सिंह ने ईडी में रहते हुए कॉमनवेल्थ गेम्स, टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला, सहारा-सेबी केस, एयरसेल-मैक्सिस डील जैसे मामलों की जांच की जिस पर कई दफा जमकर सियासी हंगामा भी मचा।

इनमें कुछ जांचों में कौन लोग निशाने पर थे या वो किस पार्टी से ताल्लुकात रखते थे, किस पॉलिटिकल पार्टी को इससे कितना फायदा पहुंचा, ये सब भी पब्लिक डोमेन में है। लेकिन, यहां बात सिर्फ राजेश्वर सिंह या केपी सिंह की नहीं है।

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यह मात्र एक संयोग नहीं है कि 2 जनवरी को राजेश्वर जैसी एक और खबर आती है। प्रयागराज और अयोध्या में आईजी रहे कविंद्र प्रताप सिंह विश्व हिंदू परिषद यानी विहिप में शामिल हो गए हैं। उन्हें काशी प्रांत का अध्यक्ष भी बना दिया गया है।

सोनभद्र के रहने वाले केपी सिंह सिर्फ तीन महीने पहले ही रिटायर हुए हैं। राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि उनके कुंभ मेला मैनेजमेंट से मुख्यमंत्री योगी बहुत खुश थे। उन्हें इसके लिए सम्मानित भी किया गया था।

राजेश्वर सिंह UPPSC से पुलिस अधिकारी बने तो केपी सिंह आईपीएस हैं। एक, दो नहीं आपको ऐसे कई मामले देखने को मिलेंगे जब सत्ता के करीब रहे IAS-IPS अफसरों ने किसी खास पॉलिटिकल पार्टी को जॉइन कर लिया और कुछ घंटों में खाकी से सफेदपोश ड्रेस में आ गए।

बिहार के डीजीपी रहे गुप्तेश्वर पांडे की उन्होंने अपने करियर में दो बार VRS लिया। पहली बार 11 साल पहले 2009 में। और दूसरी बार रिटायरमेंट से ठीक पहले 2020 में। रिटायरमेंट के बाद भी उन्हें किसी पार्टी ने कैंडिडेट नहीं बनाया।

मामला था लोकसभा चुनाव का। उनकी नजर बक्सर लोकसभा सीट पर थी। वो बीजेपी से टिकट चाहते थे। लेकिन भाजपा ने उनको टिकट न देकर लालमुनि चौबे पर भरोसा जताया। गुप्तेश्वर पांडेय कुछ दिन तक बाबा बनकर रहे और फिर वापस पॉलिटिक्स की तरफ मुड़ गए।

टिकट कटने के बाद राज्य सरकार उनकी VRS याचिका स्वीकार नहीं करती है और वो वापस पुलिस सेवा में बहाल हो जाते हैं। बीजेपी से टिकट की चाह रखने वाला अफसर अगले दस साल तक उस निष्पक्षता के धर्म को कैसे निभाएगा जिसकी कसम ट्रेनिंग के दौरान दिलाई जाती है।

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नीतीश कुमार कैबिनेट में मंत्री सुनील कुमार भी IPS रहे हैं। सुनील रिटायरमेंट के 29 दिन बाद ही नीतीश की पार्टी जेडीयू में आ गए थे।

खाकी से खादी वाले अफसर

अब हम आपको इंडिया में कुछ ऐसे IPS और IAS अफसरों के नाम बता रहे हैं जिनको पॉलिटिक्स से प्यार हो गया।

कोई अधिकारी नौकरी तभी छोड़ता है जब उसके पास सेकेंड ऑप्शन मौजूद हो। ऑप्शन मतलब जब दूसरे करियर के विकल्प हों। करियर शिफ्ट होने की इस प्रोसेस में ये अधिकारी संविधान का पालन करते होंगे या किसी नेता के ऑर्डर का, इसको समझना और बताना मुश्किल नहीं है।

आइए अब अधिकारियों के नाम जानते हैं

के. अन्नामलाई – 2011 बैच के आईपीएस अफसर को नौ साल ही नौकरी पसंद आई। 2020 में बीजेपी जॉइन किया और पार्टी ने उन्हें तमिलनाडु का अध्यक्ष भी बना दिया है।

सत्यपाल सिंह – महाराष्ट्र कैडर के आईपीएस अफसर रहे बाद में मुंबई के पुलिस कमिश्नर भी बने। साल 2014 में बीजेपी जॉइन किए और यूपी के बागपत सीट से सांसद बने। अभी लगातार दूसरी बार जीतकर वो बागपत से ही सांसद हैं।

आर नटराज – आर नटराज एक IPS अधिकारी थे। सर्विस में रहते इन्होंने पुलिस और प्रशासनिक रिफार्म के लिए बहुत काम किया। नटराज ने साल 2014 में पॉलिटिक्स में एंट्री ली और AIADMK के नेता बने।

निखिल कुमार – बिहार के रहने वाले निखिल कुमार पूर्व सीएम सत्येंद्र नारायण सिन्हा के बेटे हैं। ये कांग्रेस से ही जुड़े रहे साथ नागालैंड केरल के राज्यपाल भी रहे।

जो कल तक IAS थे, बाद में नेता बनकर मुख्यमंत्री के कुर्सी तक पहुंचे

अब बात करते हैं कुछ ऐसे IAS अफसरों की जो अपने करियर में सफल राजनेता भी रहे। जिसमें पहला नंबर अजीत जोगी का है। अफसर से नेता बनने के बाद वो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने। अजित जोगी, राजीव गांधी के बेहद करीबी माने जाते थे।

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दूसरे मणिशंकर अय्यर, यशवंत सिन्हा, मीरा कुमार, नटवर सिंह जैसे नेताओं ने केंद्रीय कैबिनेट में अहम जिम्मेदारियां निभाईं। मीरा कुमार बाद में लोकसभा अध्यक्ष भी बनीं, लेकिन पिछले दो दशकों में अफसर से नेता बनने के क्रेज ने स्पीड पकड़ी है।

VRS लेकर अफसर से नेता बनने का प्रोसेस इलेक्शन से पहेल और तेज हो जाता है। जैसे, 2019 चुनाव से पहले 1994 बैच की IAS अफसर अपराजिता सारंगी बीजेपी में शामिल हो गईं।

चुनाव से ही पहले रायपुर के जिला कलेक्टर ओपी चौधरी इस्तीफा देते हैं और बीजेपी जॉइन कर टिकट पा जाते हैं। ये अलग बात है कि चौधरी की तेज चाल उलटी पड़ गई क्योंकि वो चुनाव हार गए।

लगभग सभी स्टेट का यही हाल है। इसके लिए किसी खास पार्टी या नेता को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता, लेकिन ऑल इंडिया सर्विसेज के अधिकारी अगर नौकरी के बीच राजनीति के दंगल में रुचि लेने लगे तो एडमिनिस्ट्रेटिव स्ट्रक्चर भी बिगड़ेगा और कानून-व्यवस्था भी गर्त में जाएगी।

राजस्थान का एग्जांपल तो हैरान करने वाला है। क्राइम ब्रांच के SP मदन मेघवाल साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर खजुवाला से चुनाव लड़ना चाहते थे। उन्होंने टिकट मिलने वाले दिन से एक दिन पहले VRS का आवेदन किया।

उनका टिकट लिस्ट में नाम नहीं आया तो अगले ही दिन VRS वापस लेने की अर्जी दे दी। यह समझने में देर नहीं लगनी चाहिए कि क्या ऐसा अफसर अपनी कुर्सी और पद के साथ न्याय कर सकता है?

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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