टिक्कू आपचे की रिपोर्ट
सरकार कोई भी हो और किसी भी दल की हो, उसका स्वभाव वैसा ही होता है जैसा आम जनता बहुत पहले से जानती, समझती है। सिर्फ़ कहती नहीं है। बोलती नहीं है। है तो है। कौन कहे किसी सरकार को- निष्ठुर। निर्दयी।निरंकुश। भाव शून्य। बिना कान, नाक और आँखों वाली। निर्भया को कौन नहीं जानता! पूरे देश ने उस बच्ची के लिए सड़कों पर संघर्ष किया था। निर्भया के नाम पर केंद्र सरकार ने निर्भया फण्ड बनाया था।
महाराष्ट्र सरकार की तेज- तर्रार मुंबई पुलिस ने इसी निर्भया फण्ड से तीस करोड़ की लागत से जून 2022 में 220 बोलेरो, 35 अर्टिगा, 313 पल्सर बाइक और 200 एक्टिवा गाड़ियाँ ख़रीदीं। जून में ख़रीदी गईं इन गाड़ियों को अगले ही महीने यानी जुलाई में अलग- अलग पुलिस थानों को भेज दिया गया। उद्देश्य यह था कि इनसे मुंबई पुलिस, महिलाओं की सुरक्षा करेगी। इसी महीने महाराष्ट्र में सरकार बदल गई।
भारतीय जनता पार्टी की मदद से शिवसेना के दो फाड़ हुए और उसका एक टुकड़ा भाजपा के सहयोग से राज्य में सरकार बनाने में कामयाब हो गया। सहयोग से तो क्या कहें, भाजपा और शिवसेना के टूटे धड़े की मिली जुली सरकार वजूद में आ गई। भाई लोगों ने अपने मंत्रियों और विधायकों को वाय प्लस विद एस्कॉर्ट्स सुरक्षा दी और इसके तहत निर्भया फण्ड से ख़रीदी गईं ज़्यादातर फ़ोर वीलर्स को इसमें लगा दिया।
यानी महिलाओं की सुरक्षा के लिए ख़रीदी गईं गाड़ियाँ अब महाराष्ट्र के मंत्रियों, विधायकों के आगे- पीछे घूम रही हैं। निर्भया फण्ड क्यों बनाया गया था? उसका उद्देश्य क्या था? उससे कितनी महिलाओं की सुरक्षा हो पाती, ये तमाम प्रश्न नेपथ्य में चले गए। किसी को कोई मतलब नहीं। सरकार की तरफ़ से गाड़ियाँ भेजने का फ़रमान आया। किसी पुलिस अफ़सर, किसी अन्य ज़िम्मेदार ने कोई विचार नहीं किया कि महिलाओं की सुरक्षा के उद्देश्य को इस तरह तहस- नहस कैसे किया जा सकता है? सरकार को अगर किसी को सुरक्षा देनी ही है तो बेशक दे। अपने फण्ड का इस्तेमाल करे। नई गाड़ियाँ ख़रीद ले!
निर्भया फण्ड को इस तरह बर्बाद करने का हक़ किसी सरकार को आख़िर किसने दिया? हालाँकि सरकारों में यह बहुत पुराना रोग है। वे किसी विभाग का फण्ड, कहीं इस्तेमाल करके काम चलाती रहती हैं। लेकिन इतने भावुक और संवेदनशील मामले में कोताही बरतना बहुत ही निंदनीय है। दरअसल, जनता के रोष को शांत करने किए इस तरह के फण्ड सरकारें बनाती हैं। लोग समझते हैं सरकार संवेदनशील है। लेकिन कुछ ही महीनों में जनता सबकुछ भूल जाती है और सरकारें फिर इन फ़ण्ड्स का इस तरह दुरुपयोग करती रहती हैं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."