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November 23, 2024 3:38 am

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जहां पंडित रामप्रसाद बिस्मिल समाधिस्थ हैं तो देवराहा बाबा की स्मृतियों में आज तक लोग खोए हुए हैं…आइए जानते हैं उस पवित्र स्थल को

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सर्वेश द्विवेदी और राकेश तिवारी की खास रिपोर्ट 

1994 में जनपद कुशीनगर को देवरिया जिले के उत्तर-पूर्व भाग को लेकर बनाया गया। जनपद देवरिया उत्तर में जनपद कुशीनगर, पूर्व में जनपद गोपालगंज और सिवान (बिहार राज्य), दक्षिण में मऊ और बलिया तथा पश्चिम में गोरखपुर जनपद से घिरा है। देवरिया जनपद का मुख्यालय गोरखपुर से सड़क मार्ग से 53 किमी दुरी पर पूर्व में स्थित है। घाघरा, राप्ती और छोटी गंडक इस जनपद की मुख्य नदियां हैं.देवरिया जनपद 16 मार्च 1946 को गोरखपुर जनपद का कुछ पूर्व-दक्षिण भाग लेकर बनाया गया। 

देवरिया को मुख्यतः देवनगरी या देवस्थान कहा जाता है देवराहा बाबा की जन्म भूमि देवरिया शहीद पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की समाधि के लिए भी विख्यात है जो बरहज के आश्रम विद्यालय में है। कुछ विद्वान ‘देवरिया’ की उत्पत्ति ‘देवारण्य’ या ‘देवपुरिया’ से मानते हैं। माना जाता है कि इस क्षेत्र में कभी बहुत घने वन हुआ करते थे जिसमें देवताओं का वास था।वस्तुत: यह क्षेत्र अत्यन्त प्राचीन काल से देवों और आर्यों की सम्मिलित भूमि रही है, उसी कारण इसे ‘देवार्य’ क्षेत्र या भूमि कहते आयें है, जो कालान्तर में अपभ्रंश रूप ‘देवरिया’ के रूप में जाना जाने लगा।

दुर्गा मंदिर

देवरिया में सोमनाथ मंदिर के पास कसिया रोड पर एक ‘दुर्गा मंदिर’ पाया जा सकता है। यह एक देवी दुर्गा मंदिर है जहाँ यह माना जाता है कि आपकी हर मनोकामना पूरी होती है। देवराही मंदिर, देवरिया अपने प्रियजनों के साथ क्वालिटी टाइम बिताने के लिए एक आदर्श स्थान है। इस प्रसिद्ध मंदिर के आशीर्वाद और आकर्षण का आनंद लें। अपनी इंद्रियों को लुभाने के लिए और आपको परम अवकाश प्रदान करने के लिए, देवराही मंदिर, देवरिया में रोमांच की भावना से सराबोर हो जाएं।

श्री हनुमान जी मंदिर देवरिया 

Shri Hanuman Ji Mandir Deoria

श्री हनुमान जी मंदिर देवरिया शहर का प्रसिद्ध मंदिर है। यह एक सिद्ध मंदिर है। इस मंदिर को मनोकामना पूर्ति मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है, कि इस मंदिर में आकर मनोकामना मांगने से जरूर पूरी होती है। यहां पर आपको हनुमान जी के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। यह मंदिर बहुत ही सुंदर है। मंदिर के पास में एक तालाब भी देखने के लिए मिलता है। इस तालाब में बहुत सारी मछलियां हैं। मंदिर के बाहर हनुमान जी को चढ़ाने के लिए लड्डुओं की दुकान भी देखने के लिए मिलती है। यहां पर हनुमान जी की प्रतिमा बहुत सुंदर है। यहां पर मंगलवार और शनिवार के दिन बहुत सारे लोग घूमने के लिए आते हैं। आप यहां पर आकर अपना बहुत अच्छा समय व्यतीत कर सकते हैं। यह मंदिर पूरे देवरिया जिले में प्रसिद्ध है। यह मंदिर देवरिया जिले में राघव नगर में स्थित है। 

अष्टभुजा माता मंदिर देवरिया Ashtabhuja Mata Temple Deoria

अष्टभुजा माता मंदिर देवरिया शहर का प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर देवरिया जिले में अगस्तपार में स्थित है। यह मंदिर मां दुर्गा को ही समर्पित है। इस मंदिर में नवरात्रि के समय बहुत भीड़ लगती है। यहां नवरात्रि के समय मेला लगता है, जिसमें बहुत सारे लोग शामिल होते हैं। मंदिर के पास में ही आपको यज्ञशाला देखने के लिए मिलती है। यहां पर आकर बहुत अच्छा लगता है और बहुत शांति मिलती है। 

दुग्धेश्वर नाथ मंदिर देवरिया Dugdheshwar Nath Temple Deoria

दुग्धेश्वर मंदिर देवरिया जिले का प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर शिव भगवान जी को समर्पित है। यह मंदिर मुख्य देवरिया शहर से 22 किलोमीटर दूर रुद्रपुर स्थित है। इस मंदिर को छोटा काशी या नाथ शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में आपको शिव भगवान जी के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। यह मंदिर बहुत प्राचीन है और मंदिर में विराजमान शिवलिंग करीब 11 वीं शताब्दी का है। यहां पर सावन सोमवार के समय बहुत ज्यादा भीड़ लगती है। बहुत सारे भक्त कावड़िया लेकर भगवान शिव को जल चढ़ाने के लिए आते हैं। मंदिर के पास में आपको तालाब भी देखने के लिए मिलता है, जो बहुत सुंदर लगता है। आप यहां पर घूमने के लिए आ सकते हैं। आपको अच्छा लगेगा। यह मंदिर मुख्य रुद्रपुर शहर से करीब 2 किलोमीटर दूर है। 

दुग्धेश्वर नाथ मंदिर के पास में आपको और भी बहुत सारे प्राचीन मंदिर देखने के लिए मिल जाते हैं। यहां पर मां काली जी का मंदिर, श्री साईं बाबा जी का मंदिर, विश्वकर्मा जी का मंदिर, राधे कृष्ण जी का मंदिर देखने के लिए मिलता है। यहां पर एक और तालाब देखने के लिए मिलता है, जिसके चारों तरफ सीढ़ियां बनी हुई है और बीच में मंदिर बना हुआ है। यहां पर आकर बहुत अच्छा लगता है। 

दीर्घेश्‍वरनाथ मंदिर देवरिया Dirgheshwarnath temple Deoria

दीर्घेश्‍वरनाथ मंदिर देवरिया जिले का प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर देवरिया जिले में सलेमपुर के पास स्थित है। यह मंदिर शिव भगवान जी को समर्पित है। यहां पर प्राचीन शिवलिंग के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है, कि मंदिर की स्थापना अश्वत्थामा और गुरु द्रोणाचार्य ने की थी। यह गुरु द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा की तपोस्थली है और कहा जाता है कि यहां पर अश्वत्थामा सुबह के समय पूजा करने के लिए आते हैं और शिव भगवान की पूजा करके चले जाते हैं। 

यह मंदिर एक और कारण से प्रसिद्ध है, कहा जाता है कि यहां आकर, जो भी व्यक्ति पूजा करता है। उसकी उम्र लंबी होती है। यह मंदिर परिसर बहुत सुंदर है और शिव जी की शिवलिंग भी बहुत सुंदर है। यहां पर शिवरात्रि और सावन के समय बहुत बड़ा मेला भरता है, जिसमें बहुत सारे लोग सम्मिलित होते हैं। आप भी यहां पर घूमने के लिए आ सकते हैं और शिव भगवान जी के दर्शन कर सकते हैं। यहां पर शिव भगवान जी के अलावा आपको दुर्गा जी के भी दर्शन करने के लिए मिल जाते हैं। 

मां भांगड़ा भवानी मंदिर देवरिया 

Maa Bhangra Bhavani Temple Deoria

मां भांगड़ा भवानी मंदिर देवरिया शहर का एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर देवरिया जिले में मझौली राज में स्थित है। यह मंदिर प्राचीन है। इस मंदिर का निर्माण मझौली राज के राजा ने करवाया था। मां भांगड़ा भवानी दुर्गा जी का ही स्वरूप है। कहा जाता है, कि यहां पर आकर सभी की मनोकामनाएं पूरी होती है। आप भी यहां पर घूमने के लिए आ सकते हैं। नवरात्रि में यहां पर बहुत ज्यादा भीड़ रहती है। 

उत्तर प्रदेश में देवरिया जिले के सलेमपुर क्षेत्र में स्थित सोहनाग धाम का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि यहां भगवान परशुराम ने जनकपुर से लौटते समय रुक कर तप किया था। आज यह स्थान लोगों की आस्था का केन्द्र है। परशुराम जयंती के अवसर पर इस स्थान पर हर साल भव्य मेले का आयोजन होता है। किंवदंती है कि भगवान परशुराम जनकपुर से धनुष यज्ञ संपन्न होने के बाद लौटते समय मार्ग में इस रमणीय स्थल को देख यहां विश्राम के लिये रुके थे। उन्हें यह स्थल इतना रास आया कि कुछ दिनों तक वह यहीं रुके और यहां तप भी किया। आज भी इस स्थल पर अक्षय तृतीया के दिन से पूजन के साथ ही भव्य मेला का आयोजन किया जाता है।

कहा जाता है कि इस स्थल पर घना जंगल हुआ करता था। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने जब जनकपुर में धनुष विखंडित किया तो भगवान परशुराम जनकपुर वायु मार्ग से पहुंच गए। इस दौरान लक्ष्मण व भगवान परशुराम के बीच संवाद हुआ। भगवान श्रीराम के बीच में आने के बाद ऋषि परशुराम जनकपुर से वापस चले आये तथा यहां रूककर तप किया। इसी वजह से इस स्थल का पौराणिक महत्व बढ़ गया और आज यह लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। 

सोहनाग में भगवान परशुराम के मंदिर के ठीक पूरब की ओर करीब दस एकड़ की भूमि में एक पवित्र तालाब है। जिसका महत्व धार्मिकता के साथ ही वैज्ञानिक भी है। कहा जाता है कि कई सौ वर्ष पूर्व नेपाल के राजा सोहन तीर्थाटन को निकले थे। इसी स्थल पर तालाब को देख वह विश्राम करने के लिये रूक गये थे। कहा जाता है कि जब राजा ने इस तालाब के पानी का प्रयोग किया तो पानी के प्रयोग से उनका कुष्ठ रोग समाप्त हो गया। इससे प्रभावित होकर उन्होंने इस पोखर की खुदाई कराई तो उसमें से भगवान परशुराम, उनकी माता रेणुका, पिता जमदग्नि, भगवान विष्णु की बेशकीमती पत्थर की मूर्ति निकली। उसके बाद उन्होंने यहां मंदिर का निर्माण करवाया तथा बाद में इस स्थान का नाम राजा सोहन के चलते सोहनाग हो गया।     

जनकपुर से लौटते समय देवर्षि परशुराम ने यहां रूककर किया था तप

इस स्थान पर अक्षय तृतीया के दिन से सवा महीने तक चलने वाले भव्य मेले का आयोजन होता था। पूर्वांचल के इस महत्वपूर्ण मेले में दूर दूर से लोग शिरकत करने आते हैं। समय के साथ अब मेले की अवधि घटकर महज एक सप्तसह भर रह गयी है। मान्यता है कि भगवान परशुराम का जन्म 6 उच्च ग्रहों के योग में हुआ, इसलिए वह तेजस्वी, ओजस्वी और वर्चस्वी महापुरुष बने। उनक जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम प्रहर में उच्च के ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के स्थित रहते माता रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ था। अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम का जन्म माना जाता है। विद्वानों के मतानुसार इस तिथि को प्रदोष व्यापिनी रूप में ग्रहण करना चाहिए क्योंकि भगवान परशुराम का प्राकट्य काल प्रदोष काल ही है। 

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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