अनिल अनूप
पंजाब के विधानसभा चुनावों में अभूतपूर्व विजय प्राप्त करने के बाद आम आदमी पार्टी की नजर अब पड़ोसी राज्य हिमाचल पर आ टिकी है। आम आदमी पार्टी पूरी ईमानदारी से हिमाचल पर विजय पाने की सोच रही है। यही नहीं गुजरात में भी आम आदमी पार्टी अपनी सरकार बनाना चाहती है। आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अपनी दस साल पुरानी पार्टी को लेकर बहुत आशावान हैं। उनका सीधा लक्ष्य हरियाणा, हिमाचल में अपनी सरकार बनाना है। पंजाब की सफलता को वह हिमाचल के आने वाले चुनावों में भी दोहराना चाहते हैं। हिमाचल ऐसा पहाड़ी राज्य है जहां पर अधिकतर दो पार्टियां ही चुनाव लड़ती आ रही हैं। हालांकि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस से निष्काषित या अप्रसन्न नेताओं ने अपने-अपने दल गठित कर चुनाव भी लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए। उनमें मंडी के पंडित सुखराम, जो केंद्र में कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रहे और विवादों से घिरे भी रहे, ने अपनी पार्टी का गठन किया जिसका नाम था हिमाचल विकास कांग्रेस। वर्ष 1998 में गठित इस पार्टी ने चुनाव लड़ा और पंडित सुखराम ही जीत पाए और पार्टी हार गई। कुल्लू के राजा महेश्वर सिंह ने भी 2012 में हिमाचल लोकहित पार्टी का गठन किया, चुनाव लड़ा और फिर पार्टी को 2016 में भंग कर दिया और भारतीय जनता पार्टी में लौट आए। कांगड़ा के राजन सुशांत भी भारतीय जनता पार्टी से पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के कारण निष्कासित किए गए। उन्होंने भी अपना एक दल बनाया, लेकिन सफलता नहीं मिली।
बहुत से लोगों का मानना है कि हिमाचल में केवल दो पार्टी सिस्टम है। पांच साल एक पार्टी सरकार में रहेगी और पांच साल दूसरी पार्टी। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी पांच-पांच साल सत्ता में रहती हैं। लेकिन इस बार यह स्थिति बदल सकती है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में फिर से भारतीय जनता पार्टी की सरकारें बहुमत से बनी हैं। हिमाचल के कर्मठ और लोकप्रिय मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का यह भरसक प्रयास रहेगा कि उन्हें फिर से हिमाचल की जनता का विश्वास प्राप्त हो, भले ही उन्हें कुछ समय पूर्व हुए उपचुनावों में कोई भी सफलता नहीं मिली हो। उपचुनावों की हार के बाद उन्होंने विकास कार्यों को बड़ी गंभीरता से लिया है। भले ही कोरोना काल के लगभग दो वर्ष के समय में सरकार कोरोना से निपटती रही और विकास कार्यों की तरफ ध्यान नहीं दे पाई, लेकिन मंडी में 27 दिसंबर 2021 को हुई बड़ी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता को विश्वास दिलाया कि हिमाचल की प्रगति में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी जाएगी। इसका सीधा इशारा यह भी था कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को जो भी मदद केंद्र से चाहिए, दी जाएगी। उधर आम आदमी पार्टी ने कुछ समय पूर्व दिल्ली के अपने स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को हिमाचल भी भेजा।
उन्होंने प्रेस वार्ता कर यह सर्वविदित किया कि आम आदमी पार्टी हिमाचल में चुनाव लड़ेगी। पार्टी ने हिमाचल के लिए सदस्यता अभियान भी शुरू किया और कुछ लोग पार्टी में शामिल होने के लिए दिल्ली भी आए। आम आदमी पार्टी के दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने यह कहा है कि जितनी ताकत से उन्होंने पंजाब में चुनाव लड़ा है, उतने ही जोश के साथ वह हिमाचल और गुजरात में चुनाव लड़ेंगे। हिमाचल एक छोटा राज्य है, लेकिन पहाड़ी है और कुछ क्षेत्र दुर्गम भी हैं और हर वोटर तक पहुंचना इतना आसान नहीं है, उस पार्टी के लिए जो पहली बार हिमाचल में बड़े पैमाने पर चुनाव लड़ने की सोच रही है। लेकिन आजकल चुनावों में आभासी मीडिया का बहुत प्रयोग किया जाता है। कोरोना के चलते बहुत सारी रैलियां वर्चुअली ही संबोधित की गईं। सोशल मीडिया ने भी एक बड़ी भूमिका निभाई लोगों को आपस में जोड़ने और तोड़ने में। पिछले कुछ दिनों से हिमाचल के मुख्यमंत्री हर प्रेस वार्ता में आम आदमी पार्टी के बारे में पूछे गए प्रश्नों का केवल एक ही उत्तर देते हैं कि हिमाचल के लोगों को ‘बाहर’ का कोई राजनीतिक दल नहीं बहका सकता। हिमाचल में लगभग सभी चुनाव दो पार्टियों में हुए हैं।
तीसरी पार्टी के लिए हिमाचल में कोई जगह नहीं है। हिमाचल की अधिकतर जनता का भी यही मानना है, लेकिन राजनीति और क्रिकेट में ‘कुछ नहीं कहा जा सकता’ का फार्मूला चलता है। वोटर किसी भी पार्टी के किसी भी काम से या वादे से प्रभावित होकर उन्हें वोट दे सकता है। किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि पंजाब जैसे राज्य, जहां कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल का कब्जा था, में ये दल इस तरह से हार जाएंगे, उस पार्टी से जो सिर्फ दस साल पुरानी है और अभूतपूर्व विजय हासिल करेगी। यहां तक कि बहुत सारे दिग्गज नेता अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। आम आदमी पार्टी की इस घोषणा ने कि अब पार्टी हिमाचल में अपनी जीत दर्ज करना चाहती है, हिमाचल के बागी नेताओं, कुछ युवा राजनीतिज्ञों और अवसरवादी नेताओं को अवसर के नए द्वार खोल दिए हैं। लेकिन क्या हिमाचल की जनता उन्हें इस नए रूप में स्वीकार करेगी और यह बदलाव जनता के वोट हासिल कर पाएगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। हिमाचल की जनता को किसी प्रलोभन में न आकर इस पूरी प्रक्रिया का सही मूल्यांकन करना होगा क्योंकि हिमाचल की राजनीति और बाकी राज्यों की राजनीति थोड़ी अलग है और लोगों की समझबूझ भी। उन्हें ‘बाहर’ की पार्टी पसंद आएगी, क्या वे उसका चयन करेंगे, यह तो आने वाला समय ही बता सकता है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."