वेदांता हॉस्पिटल, आजमगढ़ ने मरीज की मौत के मामले में लगे आरोपों को सिरे से खारिज किया। प्रेसवार्ता में निदेशक डॉ. शिशिर जायसवाल ने वीडियो साक्ष्यों के साथ सच को सामने रखा।
जगदम्बा उपाध्याय की रिपोर्ट
आजमगढ़। चिरैयाकोट निवासी एक मरीज की मृत्यु को लेकर वेदांता हॉस्पिटल, आजमगढ़ पर लगाए गए आरोपों पर अस्पताल प्रबंधन ने शनिवार को प्रेसवार्ता कर साक्ष्यों के साथ अपना पक्ष स्पष्ट किया। अस्पताल के निदेशक डॉ. शिशिर जायसवाल ने कहा कि “वेदांता हॉस्पिटल एक विश्वसनीय संस्था है जो सदैव मानव मूल्यों की रक्षा को प्रतिबद्ध रही है।”
उन्होंने यह भी बताया कि “हम न केवल आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं, बल्कि डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के सपनों को साकार करने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। हमारे यहां मरीज की जान बचाना पहली प्राथमिकता होती है।”
वीडियो साक्ष्य से किया खंडन
मरीज की मौत के बाद उत्पन्न विवाद पर बोलते हुए डॉ. जायसवाल ने कहा कि यह पूरी तरह से “पूर्वनियोजित साजिश” थी। उन्होंने बताया कि अस्पताल के पास घटना के वीडियो साक्ष्य मौजूद हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि मरीज को जीवित हालत में एम्बुलेंस में भेजा गया था।
उन्होंने आरोप लगाया कि “कुछ लोग इलाज का पैसा न देने की नीयत से जानबूझकर संस्थान को बदनाम कर रहे हैं। यदि किसी को गुणवत्ता पर संदेह है, तो वह कानूनी जांच करवा सकता है। हम हर जांच के लिए तैयार हैं।”
लेडीज स्टाफ के साथ दुर्व्यवहार की बात
प्रेसवार्ता में डॉ. जायसवाल ने खुलासा किया कि उत्पात के दौरान महिला स्टाफ के साथ भी दुर्व्यवहार किया गया। “हमारा अस्पताल बिना किसी सुरक्षा गार्ड या हथियारों के चलता है। मारपीट के आरोप निराधार हैं।”
सामाजिक जिम्मेदारी और सेवाभाव
डॉ. जायसवाल ने उजाला यादव के एक परिचित के इलाज का जिक्र करते हुए बताया कि “उसे आयुष्मान योजना के तहत निशुल्क इलाज मिला और वह स्वस्थ होकर अपने घर गया। बाद में लोहिया अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई, लेकिन हमारे अस्पताल को गलत तरीके से जोड़ा गया।”
आपातकालीन सेवाओं में अग्रणी भूमिका
उन्होंने यह भी जोड़ा कि “गनशॉट, प्वाजनिंग, हैंगिंग, मारपीट जैसे मेडिको-लीगल केस में हमारा रिजल्ट शानदार रहा है। हमने कोविड काल में 3,000 मरीजों का इलाज किया। कुछ की जान नहीं बच पाई, पर अनेक लोगों को नया जीवन दिया गया।”
अंत में उन्होंने कहा
“हमारा उद्देश्य मरीजों की जान बचाना है, न कि बेवजह थानों और अदालतों में समय गंवाना। कुछ लोगों की मानसिकता नहीं बदल सकती, लेकिन हमारा काम समाज के प्रति हमारी जवाबदेही को निभाना है।”