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भारत रत्न डॉ. मनमोहन सिंह: सादगी, ईमानदारी और आर्थिक क्रांति के युगपुरुष को श्रद्धांजलि

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वल्लभ लखेश्री

स्वच्छ छवि, सादगी और ईमानदारी का त्रिवेणी व्यक्तित्व उस विराट व्यक्तित्व को बयां करने के लिए शब्दों का पिटारा भी मोहताज हैं। जी हां हम दुनिया की उस शख्सियत करने मरणोपरांत शब्दांजलि देने का सहास जुटा रहे हैं। जिनका जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में 26 सितम्बर 1932 को ,सेक्टर 11 मकान चंडीगढ़,पंजाब(पाकिस्तान) में हुआ और अपने सार्थक जीवन के बेमिसाल 92 वर्षीय कांरवा को प्रकृति के आगोश में समा कर 26 दिसंबर 1924 को दुनिया से अलविदा हो गए।

आज दुनिया में अपनी अमिट छाप को छोड़ते हुए अपने नाम मनमोहन सिंह जो “यथो नाम तथो गुण” की कहावत को चरितार्थ करते हुए दुनिया भर के प्रबुद्धजनों के मन को मोहन करने वाला सिंह साबित हुआ हैं। यहां ये उल्लेखनीय बात है कि उनकी काबिलियत की चर्चा की शुरुआत किस प्रसंग से करें। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह जगत के वित्तीय मामलों महान क्रांति लाने वाले महानायक थे। उनका यह हुनर बहुत देर तक और बहुत दूर तक जाना जाएगा। जब सारी दुनिया मंदी के दौर से गुजर रही थी उसे समय भारत के इस आर्थिक शिल्पकार जो 2004 से 2014 तक भारत के दो बार लगातार प्रधानमंत्री रहते हुए उस मंदी के सिलसिले में न केवल भारत को ही उबार में सफल रहे बल्कि दुनिया को एक नई किरण का उजास भी दिया। 

उनकी शैक्षणिक योग्यता और विद्वता की चर्चा करें तो देश के महान अर्थशास्त्री 1956 से 1966 तक पंजाब के चंडीगढ़ विश्वविद्यालय के प्राध्यापक रहे। 1967 से 1971 दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विषय के प्रोफेसर रहे।1982 से 1985 तक रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया के गवर्नर रहे। भारत का ये अल्पभाषी बौद्धिक सितारा विश्व के एजुकेशन हब माने जाने वाले क्रेम्बीज और ऑक्सफोर्ड से अर्थशास्त्र में पीएचडी धारक होल्डर थे। 

देश के अनेक प्रधानमंत्रियों के आर्थिक सलाहकार रहने के साथ-साथ योजना आयोग के सदस्य ,उपाध्यक्ष और अध्यक्ष पद को भी सुशोभित कर चुके थे। 

इस अर्थ जगत के कोहिनूर की काबिलियत को पहचान कर राजनीति के चाणक्य भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिंहराव ने असम से राज्यसभा का सदस्य चुनकर इन्हें अपनी सरकार में वित्त मंत्री बनाया, उस समय सोना गिरवी रखने की नोबत से देश गुजर रहा था। तब मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री रहते हुए आर्थिक उदारवाद के चमत्कार ने देश को बहुत बड़ा सम्बल देकर उस मंदी के दौर से निजात दिलाना कोई जादूई करिश्मे से कम नहीं था।

डॉ मनमोहन सिंह अम्बेडकर साहब के केवल कानूनी पहलू पर भी ध्यान नहीं दिया बल्कि बाबा साहब जो विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री थे, को अपना गुरु मानकर डॉक्टर अंबेडकर के अर्थशास्त्र से संबंधित पुस्तकों का गहन अध्ययन किया। जिन्हें स्वयं पढ़ा और दूसरों को भी खूब पढ़ाया। 

यूं ही कोई संयुक्त राष्ट्र संघ का वित्तीय सलाहकार नहीं बन सकता ।बिना काबिलियत कोई जिनेवा साउथ कमीशन में सेक्रेटरी का कार्य नहीं कर सकता। यूं ही कोई ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में उनके नाम अलग से चेयर नहीं बनाते।

दिवंगत प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहनसिंह अल्पमत सरकार में रहते हुए भी उन्होंने अपनी सूझबूझ और रणनीति के सहारे सबके प्यारे और अजात शत्रु रहे। देश के प्रधानमंत्री के पद के गौरव को अक्षुण रखते हुए संविधान और लोकतंत्र को सदैव सर्वोपरि माना उनके कार्यकाल में ‘आधार पहचान’, ‘मनरेगा’, ‘राइट टू फूड’, ‘राइट टू एजुकेशन’, सूचना का अधिकार जैसे अनमोल तोहफे इस राष्ट्र को मिलें।

वह भारत के हित में परमाणु संधि पर अमेरिका के दबाव में कभी नहीं आए लोगों के विरोध के बावजूद भी देश हित में अडिग रहे।इस मुद्दे पर अटल बिहारी वाजपेई और सोमराज चटर्जी का साथ परमाणु संधि को लेकर के जो मिला वह जग जाहिर है। संसद पर हमले के दौरान उस कृत्य के तार पाक से जुड़े होने के कारण पाकिस्तान की यात्रा को टालते रहे, वे नियन्त्रण पर भी अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में कभी पाकिस्तान की तरफ मुंह नहीं किया।

डॉ मनमोहन सिंह अपनी सादगी और वाणी की गरिमा की सीमा को कभी पार नहीं किया। अपने राजनीतिक विरोधियों और उनके विरोध से न कभी घबराए न कभी झुके ।उन पर कोयला , 2G ,3G घोटाला जैसे आरोप बहुत लगे लेकिन आखिरकार उन झूठे आरोपों के सामने पाक साफ साबित हुए। अपने 10 साल के प्रधानमंत्रीत्व के दौरान किसी प्रकार का मीडिया पर दबाव, हस्तक्षेप, सरकारी तंत्र का दुरुपयोग या संवैधानिक संस्थाओं का गलत इस्तेमाल जैसे आरोप कभी नहीं लगे। पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रेस के सामने जाने से कभी नहीं हिचकिचाए वै अपने कार्यकाल के दौरान 217 बार प्रेस के सामने रूबरू हुए। 

दुनिया के महान नेता होने के बावजूद भी वे अपनी सादगी का साथ कभी नहीं छोड़ा। प्रधानमंत्री रहते दौरान उन्हें कई बार पंजाब जाना पड़ा लेकिन वे कभी होटल में नहीं रुके। उन्होंने देखा कि प्रधानमंत्री के काफिले के दौरान आम लोगों को बहुत परेशानी होती है। तो उन्होंने फरमान जारी किया कि प्रधानमंत्री या किसी मंत्री की यात्रा के दौरान आम लोगों को परेशानी नहीं होनी चाहिए। नहीं किसी को रोका जाना चाहिए।

लोग उनके बारे में चाहे जैसी सोच रखें लेकिन हकीकत यह है कि पहले उनके सफरनामे को एक बार पढ़ ले। ताकि असलियत का पता चल सके। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि “वह आसमान था जो हमेशा झुक कर चलता था”।यह अटल सत्य है कि देश हमेशा उनका कर्जदार रहेगा। अंत में साहिल लुधियाना की दो पंक्तियां कहनी पड़ेगी:-

जिश्म की मौत कोई मौत नहीं होती। जिश्म मिट जाने से इंसान नहीं मिटता

एक बार पुनः इस श्रद्धांजलि, शब्दांजलि और भावांजलि के साथ उस महान सपूत को यह देश शत-शत नमन करता हैं।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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