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स्मृति

राज कपूर : वो जोकर, वो आवारा, वो महानायक, एक कलाकार, एक युग, एक विरासत

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प्रदीप सरदाना

सौ बरस पहले 14 दिसंबर 1924 को जब पेशावर में राज कपूर का जन्म हुआ, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि वह बालक विश्वभर में इतना मशहूर हो जाएगा। दुनिया उसकी जन्म शताब्दी धूमधाम से मनाएगी। दिलचस्प यह भी है कि राज कपूर को सिनेमा से अपार लोकप्रियता मिली। हालांकि तब सिनेमा में काम करना अच्छा नहीं माना जाता था लेकिन नीली आंखों वाले राज कपूर ने अपनी विलक्षण प्रतिभा से, समस्त नीले आकाश को ऐसा जगमग किया कि फिल्मों में काम करने वाले कलाकार सितारे कहलाने लगे। आने वाली पीढ़ियां ही नहीं, पिछली पीढ़ियां भी उसी राज कपूर के नाम से रोशन हो गईं।

इसकी हालिया मिसाल कपूर परिवार की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चर्चित मुलाकात भी है। यह पहला मौका था जब देश के किसी प्रधानमंत्री ने फिल्म संसार के किसी एक परिवार के सारे सदस्यों के साथ इतनी आत्मीयता एवं सम्मान से भेंट की। साथ ही, मोदी ने राज कपूर की ‘सॉफ्ट पावर’, उनकी फिल्मों और उनके योगदान का जिक्र किया तो कपूर परिवार अभिभूत हो गया।

फिल्मों में कपूर परिवार की नींव 1927 में यूं तो पृथ्वीराज कपूर ने रखी। लेकिन बड़े बेटे राज ने फिल्म उद्योग के सबसे बड़े परिवार के रूप में ख्याति दिलाई। राज कपूर स्वयं तो फिल्मों में आए ही, अपने भाई शम्मी-शशि, बेटे रणधीर, ऋषि और राजीव को भी इंडस्ट्री में लेकर आए। यहां तक कि अपने दादा बशेश्वरनाथ कपूर और पिता पृथ्वीराज को भी अपनी ‘आवारा’ फिल्म में साथ काम करवाया। बाद में करिश्मा, करीना और रणबीर कपूर ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया।

राज कपूर की अपार ख्याति का कारण यह है कि उन्होंने एक अभिनेता ही नहीं निर्माता-निर्देशक के रूप में भी पहचान बनाई। राज कपूर ने करीब 60 फिल्मों में अभिनय किया। अपने आरके बैनर से 18 फिल्मों का निर्माण किया। अपने निर्देशन में बनी सिर्फ 6 फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया। लेकिन अपने निर्देशन में बनी 10 फिल्मों से ही वह शताब्दी के फिल्मकार बन गए।

अपने अभिनय जीवन की शुरुआत राज ने पिता से प्रेरित होकर ही की थी। वही राज कपूर के गुरु थे। हालांकि पिता और पुत्र की उम्र में मात्र 18 बरस का फासला था। राज ने 5 बरस की उम्र में एक नाटक ‘द टॉय कार्ट’ में अभिनय किया तो उसके लिए उन्हें प्रथम पुरस्कार मिला। बस तभी से उन्हें लगा कि अभिनय ही उनका जीवन है। इसलिए पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान न देकर वह रंगमंच और फिल्मों में काम करने के लिए मचल उठे।

यूं थोड़ा बड़ा होने पर राज ने स्कूल के एक नाटक में काम किया तो वह कुछ ऐसा कर गए कि निर्देशक ने उन्हें गले से पकड़ कर कहा तुम गधे हो, यहां फिर कभी न आना। इसके कुछ बरस बाद सीखने के लिए राज, फिल्मकार केदार शर्मा के सहायक बने तो वहां शॉट से पहले क्लैप को इतने जोर से दबाया कि अभिनेता की दाढ़ी ही उसमें फंस गई। इस पर केदार ने उन्हें जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। सन 1948 में जब राज ने अपनी पहली फिल्म ‘आग’ बनाई तो वह बुरी तरह फ्लॉप हो गई। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था।

बड़ी बात यह थी कि राज ने अपने बल पर सिर्फ 24 साल की उम्र में निर्माता-निर्देशक बनकर ऐसा इतिहास रचा जिसकी गूंज आज तक सुनाई देती है। 1949 में ‘बरसात’ से उन्हें जो सफलता मिली, उसी से संकेत मिल गए कि भारतीय सिनेमा को एक मसीहा मिल गया है। 1951 में ‘आवारा’ ने उन्हें ग्रेट शोमैन का खिताब दिलवाया। ‘आवारा’ के कारण ही राज देश की ऐसी पहली फिल्म हस्ती बने, जिनकी लोकप्रियता विदेशों में पहुंची। रूस में भी वह आज तक महानायक माने जाते हैं।

राज कपूर की फिल्मों की खूबियां देखें तो उनमें कथानक, अभिनय के साथ संगीत भी बेहद खूबसूरत रहा। अपने बचपन में सफेद साड़ी पहने एक महिला की छवि उनके अन्तर्मन में ऐसे बसी कि अपनी सभी नायिकाओं को उन्होंने सफेद साड़ी जरूर पहनाई। राज की जोड़ी कई नायिकाओं के साथ जमी, लेकिन नरगिस उसमें सर्वोपरि रहीं। उनके साथ राज ने 16 फिल्में कीं।

राज कपूर ने जहां श्री 420, संगम, मेरा नाम जोकर, बॉबी, सत्यम शिवम सुंदरम, प्रेम रोग और राम तेरी गंगा मैली जैसी भव्य फिल्में बनाईं। वहीं, विभिन्न समस्याओं पर बूट पालिश, जागते रहो, जिस देश में गंगा बहती है और अब दिल्ली दूर नहीं जैसी कलात्मक फिल्में भी दीं।

राज कपूर की फिल्में जहां व्यावसायिक दृष्टि से बहुत सफल रहीं वहीं फिल्मफेयर और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों से भी इनकी झोली भरती रही। भारतीय सिनेमा के शिखर पुरस्कार ‘दादा साहब फाल्के’ को लेने राज कपूर जब 2 मई 1988 को दिल्ली आए, तो समारोह के दौरान ही उन्हें अस्थमा का भयावह दौरा पड़ा। इसे संयोग कहें कि उनके भरे-पूरे परिवार के होते हुए भी उस अंतिम समय में, उनकी पत्नी कृष्णा कपूर के साथ मैं ही था। मैं ही उन्हें राष्ट्रपति भवन की एंबुलेंस में सिरी फोर्ट से एम्स ले गया। जहां मैं लगातार उनके साथ रहा। रात को उनकी तबीयत बिगड़ी तो आईसीयू में उनके पलंग के एक ओर मैं तो दूसरी ओर कृष्णा जी थीं। राज कपूर मेरे साथ अपने व्यक्तिगत जीवन का अंतिम संवाद करते हुए कोमा में चले गए। मेरे साथ उनके अंतिम शब्द थे- ‘मुझे आराम नहीं आ रहा है। मैं अब ठीक नहीं हो सकूंगा, लेट मी डाई।’ इसके बाद वह सदा के लिए मौन हो गए। एक माह तक अचेतावस्था में रहने के बाद उनका निधन 2 जून को हुआ।

आज राज कपूर चाहे शरीर के साथ हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन अपनी फिल्मों और संस्मरणों से वह सदियों तक हमारे बीच रहेंगे।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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