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विचार

क्या अब कोई चुनाव नरेंद्र मोदी के चेहरे पर नहीं लड़ा जाएगा?

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प्रदीप द्विवेदी

हरियाणा विधानसभा चुनाव में पहली बार ऐसा देखने को मिला कि चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर नहीं लड़ा गया। यह सवाल अब उठने लगा है कि क्या भाजपा अब आगे के चुनावों में भी नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे नहीं रखेगी? हरियाणा चुनाव के दौरान ही यह स्पष्ट हो गया था कि प्रधानमंत्री मोदी को चुनाव प्रचार से दूर रखा जाएगा। इसके पीछे प्रमुख कारण थे किसान आंदोलन, अग्निवीर योजना, और महिला पहलवानों से जुड़े विवाद, जो सीधे-सीधे मोदी सरकार से संबंधित थे और जिनसे भाजपा को आगामी चुनावों में बड़ा नुकसान होने की संभावना थी।

संघ के प्रति मोदी टीम की रणनीति में एक बड़ी चूक तब हुई, जब भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने संघ के बारे में बयान दिया, जिसने संघ के भीतर असंतोष को जन्म दिया। यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक यात्रा के लिए हानिकारक साबित हो सकता है, और इसे देखते हुए अब कयास लगाए जा रहे हैं कि मोदी की राजनीतिक स्थिति भी लालकृष्ण आडवाणी की तरह कमजोर हो रही है।

कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में नितिन गडकरी को उप-प्रधानमंत्री बनाकर अगले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश कर सकती है। मोदी के कार्यकाल में गुजरात को राजनीतिक दृष्टि से अन्य राज्यों से अलग-थलग कर दिया गया है, और महाराष्ट्र से कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट गुजरात की ओर शिफ्ट किए गए हैं। इसका असर आगामी महाराष्ट्र चुनाव में भाजपा के प्रदर्शन पर पड़ सकता है।

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महाराष्ट्र अब पीएम पद के लिए सबसे बड़ा दावेदार माना जा रहा है, लेकिन अमित शाह का नाम भी संभावित उम्मीदवारों में शामिल है। नरेंद्र मोदी के लिए सबसे बड़ी चिंता यही है कि जब कोई नेता संघ की ‘गुड बुक’ से बाहर हो जाता है, तो उसे राजनीतिक रूप से दरकिनार कर दिया जाता है।

प्रधानमंत्री मोदी के तेवर भी हाल के दिनों में बदले-बदले नजर आ रहे हैं। मोहन भागवत के बयानों के बाद से नरेंद्र मोदी की शैली में भी बदलाव देखा जा रहा है। अब वे न तो दिन में कई बार पोशाक बदलते हैं, न ही “मैं अकेला” जैसे बयान दे रहे हैं, और न ही धार्मिक प्रतीकों वाली विचित्र वेशभूषा धारण कर रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा और संघ किस तरह से नरेंद्र मोदी को धीरे-धीरे राजनीतिक किनारे करते हैं, और उनका भविष्य क्या होगा।

इस बदलते राजनीतिक परिदृश्य में यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या नरेंद्र मोदी की अब तक की सारी उपलब्धियां इतिहास के पन्नों से गायब हो जाएंगी, या संघ उनके योगदान को सम्मानपूर्वक स्मरण करेगा।

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